दिल्ली की एक अदालत ने गुरूवार को जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में जमानत दे दी है। इस मामले में खजूरी खास में हुई हिंसा को लेकर एफ़आईआर दर्ज हुई थी।
अदालत ने कहा कि खालिद को अनिश्चित काल तक सिर्फ़ इसलिए जेल में नहीं रखा जा सकता क्योंकि एक दूसरा शख़्स जो किसी दंगाई भीड़ का हिस्सा था, उसकी पहचान हुई है और उसे इस मामले में गिरफ़्तार किया जा चुका है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पिछले साल 23 फरवरी को दंगे शुरू हुए थे और ये तीन दिन यानी 25 फ़रवरी तक चले थे। इस दौरान यह इलाक़ा बुरी तरह अशांत रहा और दंगाइयों ने वाहनों और दुकानों में आग लगा दी थी। जाफराबाद, वेलकम, सीलमपुर, भजनपुरा, गोकलपुरी और न्यू उस्मानपुर आदि इलाक़ों में फैल गए इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी और 581 लोग घायल हो गए थे।
उमर खालिद को पिछले साल अक्टूबर में खजूरी खास इलाक़े में हुई हिंसा के मामले में गिरफ़्तार किया गया था। आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन को भी इस मामले में अभियुक्त बनाया गया था। उमर खालिद पर सितंबर, 2020 में यूएपीए लगाया गया था।
दिल्ली दंगों के मामले में पुलिस ने 755 एफ़आईआर दर्ज की थीं और 1,818 लोगों को गिरफ़्तार किया था। हालात तब और बिगड़ गए थे जब कुछ ही दिन बाद कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था। इससे वे लोग जिनका मकान, दुकान खाक कर दिया गया था, मुसीबतों से घिर गए थे।
पुलिस पर उठाए थे सवाल
लेखिका व योजना आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा हमीद, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित कई बुद्धिजीवियों ने दिल्ली हिंसा में पुलिस की जांच पर सवाल उठाए थे। उन्होंने उमर खालिद की गिरफ़्तारी का विरोध किया था और कहा था कि विरोध की आवाज़ को आपराधिक बनाया जा रहा है और इसे दबाया जा रहा है। उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा की जांच को नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए विरोधी प्रदर्शनों की जांच में बदल दिया है।
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