22 वें विधि आयोग ने पोक्सो अधिनियम के तहत सहमति की उम्र 18 से 16 वर्ष करने के मामले में कानून मंत्रालय को अपनी सिफारिश सौंप दी है।
आयोग ने सरकार को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत सहमति की मौजूदा न्यूनतम उम्र के साथ छेड़छाड़ नहीं करने की सलाह दी है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक विधि आयोग ने सहमति की मौजूदा उम्र कम न करने की सिफारिश की है। आयोग ने कहा है कि, 16 -18 आयु वर्ग के बच्चों की मौन स्वीकृति से जुड़े मामलों में सजा को जजों के न्यायिक विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
पोक्सो के तहत सहमति से संबंध की उम्र को लेकर चल रही बहस के बीच विधि आयोग की यह सिफारिश बेहद अहम मानी जा रही है।
यह अहम इसलिए भी है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में, कई हाईकोर्ट ने चिंता व्यक्त की है कि बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए बनाए गए 2012 के कड़े कानून के तहत किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध माना जा रहा है।
दिसंबर 2022 में, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी विधायिका से सहमति से यौन गतिविधियों में शामिल होने वाले किशोरों के अपराधीकरण पर "बढ़ती चिंता" पर गौर करने को कहा था।
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सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक विधि आयोग ने ऐसी सहमति के मामलों में पोक्सो कानून में कुछ संशोधन लाने की जरूरत बताई है। आयोग ने न्यायिक विवेक का सुझाव दिया है। ऐसे मामले जहां यह "सहमति से" है और "मौन स्वीकृति" है, उन्हें उतनी गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है जितनी कि आम तौर पर पॉक्सो के अंतर्गत आते हैं।आयोग का मानना है कि पोक्सो अधिनियम के तहत सहमति की मौजूदा उम्र के साथ छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। आयोग ने कहा कि सभी विचारों और सुझावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद आयोग यह आवश्यक समझता है कि उन मामलों को सुधारने के लिए पोक्सो अधिनियम में कुछ संशोधन लाने की आवश्यकता है, जिनमें वास्तव में मौन स्वीकृति है, हालांकि कानून में सहमति नहीं है।
विधि आयोग ने कहा है कि, हमारी राय में ऐसे मामलों को उतनी गंभीरता से निपटाए जाने की आवश्यकता नहीं है जितनी उन मामलों की कल्पना की गई थी जो आदर्श रूप से पोक्सो कानून के तहत आते हैं। इसलिए आयोग ऐसे मामलों में सजा के मामले में निर्देशित न्यायिक विवेक लागू करना उचित समझता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कानून संतुलित हो और इस प्रकार बच्चों के हितों की रक्षा होगी।
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नाबालिगों की सहमति से बना संबंध भी अपराध है
पॉक्सो कानून 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच सभी यौन कृत्यों को आपराधिक बनाता है। इसके मुताबिक नाबालिगों के बीच या नाबालिग के साथ सहमति से भी संबंध बनता है तब भी वह अपराध है। इसको लेकर कानून की धारणा यह है कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच कोई सहमति नहीं होती है।एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 22वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पॉक्सो कानून के तहत आपसी सहमति से यौन संबंध की उम्र 18 से 16 नहीं की जानी चाहिए। ऐसा करने से कानून के दुरुपयोग की आशंका बढ़ेगी। रिपोर्ट में आयोग ने कानून की बुनियादी सख्ती बरकरार रखने की हिमायत की है, यानी आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की न्यूनतम उम्र 18 साल बनाए रखने की बात कही गई है।
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने यौन संबंध बनाने वाले नाबालिगों के बीच सहमति के बावजूद इस बात पर गौर करने को कहा है कि दोनों के बीच उम्र का अंतर अधिक न हो। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर उम्र का फासला तीन साल या उससे अधिक है तो इसे अपराध की श्रेणी में मानना चाहिए।
इस कानून में संसोधन की बात इसलिए उठ रही है क्योंकि कई लोगों का मानना है इसका गलत इस्तेमाल मर्जी से विवाह करने के फैसले लेने वाली लड़कियों के अभिभावक करते है। इसके कारण सहमति से संबंध रखने वाले कई युवकों को इस कानून का शिकार होना पड़ा है।
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