दिल्ली दंगा मामले में एकतरफ़ा जाँच के आरोपों को झेल रही दिल्ली पुलिस का अब एक ऐसा आदेश सामने आया है जो उन आरोपों को और गंभीर बनाता है। स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (अपराध) ने जाँच टीमों से कहा है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कुछ हिंदू युवाओं की गिरफ्तारी से हिंदू समुदाय में कुछ हद तक ग़ुस्सा है। उन्होंने कहा है कि उनकी गिरफ़्तारी के समय 'उचित ध्यान रखें और एहतियात बरतें'। इसके साथ ही उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों से जाँच अधिकारियों को 'उपयुक्त' मार्गदर्शन करने के लिए कहा है। इस मामले में स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (अपराध) ने आदेश तक निकाल दिया है।
अब इस आदेश से सवाल खड़े होते हैं कि क्या दिल्ली पुलिस बहुसंख्यक समुदाय के लोगों की गिरफ़्तारी में पक्षपात बरतेगी? क्या अपराध करने के आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई से पहले पुलिस इसका ध्यान रखेगी कि बहुसंख्यक समुदाय ग़ुस्सा तो नहीं होगा? अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की गिरफ़्तारी होने पर अल्पसंख्यक समुदाय में भी ग़ुस्सा था तो क्या तब ऐसा कोई आदेश निकाला गया था? ये वे सवाल हैं जिनके जवाब पुलिस को देने चाहिए।
हालाँकि यह आदेश किसी विशेष मामले को लेकर तो नहीं है, लेकिन यह आदेश तब आया है जब दिल्ली दंगा मामले में जारी जाँच के बीच दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ़्तारियाँ की जा रही हैं।
बता दें कि हाल ही में इसी महीने दंगों के मामले में दाखिल एक चार्जशीट में भारतीय जनता पार्टी के एक नेता का भी नाम आया है। एक शख्स को मारने गई भीड़ का नेतृत्व करने वाला यह नेता फ़िलहाल जेल में है। पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ 23 जून को चार्जशीट दाखिल की। इस नेता का नाम बृजमोहन शर्मा उर्फ गब्बर है। गिरफ़्तारी के समय तक वह ब्रह्मपुरी बीजेपी का महासचिव था।
स्पेशल कमिश्नर ऑफ़ पुलिस (अपराध) के इस आदेश पर 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने रिपोर्ट प्रकाशित की है। वैसे, दिल्ली दंगा मामले में एकतरफ़ा जाँच की शिकायतें काफ़ी पहले से आती रही हैं। कोर्ट तक ने पुलिस को इस पर फटकार लगाई थी।
मई महीने में सुनवाई के दौरान दिल्ली दंगा मामले में पुलिस की जाँच पर एक निचली अदालत ने खिंचाई की थी। कोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा था कि मामले की जाँच एकतरफ़ा है। हालाँकि कोर्ट ने यह नहीं कहा कि पुलिस ने किस पक्ष की तरफ़ यह जाँच की है और किस पक्ष के ख़िलाफ़। कोर्ट ने यह तब कहा था जब वह जामिया मिल्लिया इसलामिया के छात्र आसिफ़ इक़बाल तनहा की हिरासत के मामले में सुनवाई कर रहा था। हालाँकि कोर्ट ने तनहा को 30 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। उसी दौरान 'पिंजरा तोड़' की सदस्यों देवांगना, नताशा को भी दिल्ली में हुई हिंसा की साज़िश में संलिप्तता के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। ऐसा ही सफ़ूरा, मीरान, शिफ़ा, गुलफ़िशा और आसिफ़ के मामले में देखा गया। इन सबको फ़रवरी की दिल्ली हिंसा की साज़िश में संलिप्तता के आरोप में गिरफ़्तार किया गया।
लेकिन तब वास्तव में गिरफ़्तारी उन लोगों की हो रही थी जो दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर सीएए, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शनों में किसी न किसी रूप में शामिल थे। कोर्ट की टिप्पणी भी शायद इसी ओर इशारा कर रही थी।
ऐसी ही शिकायत तब दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने भी की थी। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बहुत ही साफ़ शब्दों में कहा था कि ये दंगे ‘सुनियोजित’, और ‘एकतरफ़ा’ थे और ‘मुसलमानों के घरों और दुकानों को ही अधिक नुक़सान हुआ है’ और उन्हें ‘स्थानीय लोगों की मदद से ही’ निशाना बनाया गया है। आयोग के मुताबिक़, ‘खजूरी ख़ास इलाक़े में लोगों ने उसे बताया कि 23 फ़रवरी को भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण के बाद हिंसा भड़की थी।’ इस रिपोर्ट में दंगा-ग्रस्त इलाक़ों से पीड़ितों को निकालने में दिल्ली पुलिस की भूमिका की तारीफ़ भी की गई थी।
ताज़ा मामला अब पुलिस के आदेश का है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, 8 जुलाई को विशेष सीपी (अपराध और आर्थिक अपराध शाखा) प्रवीर रंजन द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में पूर्वोत्तर दिल्ली के चंद बाग और खजुरी खास क्षेत्रों से कुछ हिंदू युवाओं के दंगा-संबंधी गिरफ्तारी के बारे में एक 'खुफिया इनपुट' का हवाला दिया गया है।
आदेश में कहा गया है कि 'समुदाय के प्रतिनिधि यह आरोप लगा रहे हैं कि ये गिरफ्तारियाँ बिना किसी सबूत के की गई हैं और यहाँ तक कि इस तरह की गिरफ्तारियाँ कुछ निजी कारणों से की जा रही हैं।'
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, आदेश में साफ़ तौर पर लिखा गया है, 'किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उचित ध्यान रखना होगा और सावधानी बरतनी होगी। प्रत्यक्ष और तकनीकी साक्ष्यों सहित सभी सबूतों का ठीक से विश्लेषण किया जाना होगा और यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी गिरफ्तारियाँ पर्याप्त सबूतों के आधार पर की गई हैं। किसी भी मामले में कोई मनमानी गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए और सभी सबूतों पर विशेष पीपी (सरकारी अभियोजक) के साथ चर्चा होनी चाहिए, जिन्हें प्रत्येक मामले की ज़िम्मेदारी सौंपी गई हो। पर्यवेक्षक अधिकारी एसीपी/डीसीपी - एसआईटी और अतिरिक्त सीपी/अपराध (मुख्यालय) आईओ (जाँच अधिकारियों) को उपयुक्त तरीक़े से मार्गदर्शन करें।'
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