कोरोना काल में मानवीय संवेदनाएं इस तरह कुंद हो गई हैं कि लोग अपने निकटतम परिजनों, यहाँ तक कि माता-पिता तक को, बेसहारा छोड़ दे रहे हैं। कोरोना की वजह से मारे गए माता पिता या दूसरे रिश्तेदारों का अंतिम संस्कार नहीं करने की कई घटनाएं सामने आई हैं।
बेटे ने छोड़ा बेसहारा
पर एक ऐसा मामला भी सामने आया है, जिसमें 70 साल की एक बुजुर्ग महिला को तीन बेटों और एक बेटी के भरे-पूरे परिवार के बावजूद दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं। लेकिन मानवता बची हुई है, यह उम्मीद इससे जगती है कि इस परित्यक्त बेसहारा वृद्ध महिला को बिल्कुल अनजान व्यक्ति ने सहारा दिया।लीलावती को मुंबई में उनके ऑटो ड्राइवर बेटे ने बेसहारा छोड़ दिया। कपड़ों का एक बैग और बिस्कुटों का एक पैकेट हाथ में लिए हुए वह बांद्रा रेलवे स्टेशन पर दिल्ली आने वाले श्रमिक स्पेशल का इंतजार करती पाई गईं।
इस बीच काफी कुछ हुआ। मुंबई से दिल्ली आने के बाद उन्हें किसी ने राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में दाखिल कराया। स्वस्थ होकर वहाँ से आने के बाद दिल्ली के ही एक परिवार ने उन्हें अपनाया। वह उस परिवार में भी कुछ दिन रहीं। लेकिन उसके बाद अज्ञात कारणों से वह परिवार अपने साथ उन्हें रखने को तैयार नहीं है।
दिल्ली से मुंबई
लीलावती ने कहा कि वह लॉकडाउन शुरू होने के पहले ही अपने बड़े बेटे के पास मुंबई चली गईं। वह बीमार था। लेकिन जब वह ठीक हो गया तो उसे माँ की ज़रूरत नहीं रही। उसने उन्हें घर से बाहर कर दिया।
उनका एक बेटा दिल्ली में रहता है, पर अपने साथ नहीं रखना चाहता। उनकी बेटी ने उनसे मुलाक़ात की है और हालचाल पूछा है।
ऐसे में सामने आए आप नेता संजय सिंह। लीलावती उनके साथ ही रहती हैं। संजय सिंह और उनकी पत्नी अनीता देवी उनका ख्याल रखती हैं। उनका कहना है कि लीलावती अब उनके परिवार का हिस्सा हैं।
घर की बुजुर्ग
संजय सिंह के नज़दीकी अजित त्यागी ने सत्य हिन्दी से कहा, 'जिन लोगों ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया, हम उन्हें उनके पास जाने को कैसे कह सकते हैं? इसलिए वह अब यहीं इसी घर में रहेंगी।'
उन्होंने कहा कि लीलावती घर के बुजुर्ग की तरह हैं, 'वह अब स्थायी तौर पर संजय सिंह के साथ ही वहीं रहेगी, जैसे किसी घर में बुजुर्ग होते हैं। उनका पूरा ख्याल रखा जाएगा और उनकी पूरी तरह से सेवा की जाएगी।'
यह अहम इसलिए भी है कि कोरोना काल में अपने लोगों द्वारा छोड़ दिए जाने की कई घटनाएं सामने आई हैं। कहीं किसी ने अपने माता-पिता को छोड़ दिया तो कहीं माता पिता ने बच्चों को ही छोड़ दिया। एक घटना में कई सौ किलोमीटर पैदल चल कर घर पहुँची बेटी को उसकी माँ ने ही घर में नहीं घुसने दिया। एक दूसरी घटना में बेटे ने पिता की मृत्यु के बाद शव लेने और अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया।
लीलावती के मामले में भी उनके बच्चों ने उन्हें नहीं रखा। बड़े बेटे ने घर से निकाल दिया तो दूसरे बेटे ने उनकी खोज खबर नहीं ली। बेटी ने खोज खबर ली तो अपने साथ लेकर नहीं गई। ऐसे में किसी अनजान तीसरे व्यक्ति के सामने आने और पूरे सम्मान के साथ अपने घर में रखने से यह यह उम्मीद जगती है कि मानवता ख़त्म नहीं हुई है। माँ को घर से निकालने वाले हैं, तो इसी समाज में दूसरे की माँ को सम्मान के साथ अपने घर में घर में रखने वाले भी हैं।
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