लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जारी भाजपा के घोषणापत्र में एनआरसी का जिक्र नहीं है। भाजपा के इस घोषणापत्र में एनआरसी लागू करने की बात नहीं कहे जाना चौंकाने वाला है। भाजपा के इस घोषणापत्र को 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली स्थित पार्टी कार्यालय में जारी किया था।
भाजपा ने अपने इस घोषणापत्र को भाजपा का संकल्प-मोदी की गारंटी, नाम दिया है। 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने की थीम पर इस घोषणापत्र को बनाया गया है।
एनआरसी भाजपा के 2019 के घोषणापत्र में एक प्रमुख चुनावी वादा था। इस बार एनआरसी की बात तो नहीं कही गई है लेकिन सीएए के कार्यान्वयन का उल्लेख इसमें किया गया है।
अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घोषणापत्र में कहा गया है कि हमने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) बनाने का ऐतिहासिक कदम उठाया है और सभी पात्र व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए इसे लागू करेंगे।
2019 में, पार्टी के घोषणापत्र में एनआरसी की बात कही गई थी। इसमें पार्टी ने कहा था कि अवैध आप्रवासन के कारण कुछ क्षेत्रों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान में भारी बदलाव आया है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों की आजीविका और रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 2019 के घोषणापत्र में भाजपा ने असम के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी चरणबद्ध तरीके से एनआरसी लागू करने का वादा किया था।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि असम एकमात्र राज्य है जहां 1951 में पहली बार एनआरसी तैयार किया गया था। अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसे अपडेट किया गया था।
गृह मंत्रालय ने बीते 11 मार्च को सीएए नियमों को अधिसूचित किया था। सीएए को संसद के दोनों सदनों द्वारा 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया था। संसद से पारित होने के करीब 4 वर्ष के बाद इसके नियमों को अधिसूचित किया गया था।
सीएए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले छह गैर-मुस्लिम समुदायों - हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करता है। इसका लाभ इस श्रेणी के उन लोगों को ही मिल सकता है जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि ऐसी आशंकाएं हैं कि सीएए, एनआरसी के देशव्यापी संकलन के बाद मुसलमानों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
असम में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख को एनआरसी से बाहर कर दिया गया है। एनआरसी से बाहर किए गए लोगों में से लगभग 11 लाख लोग हिंदू बताए जा रहे हैं, जिन्हें सीएए से फायदा होगा। इन लोगों का दावा है कि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले बांग्लादेश से आए थे।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि सीएए पारित होने के बाद दिसंबर 2019 से मार्च 2020 तक असम, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय और दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन और दंगों में 83 लोग मारे जा चुके हैं।
हिंसा के बाद सरकार ने संसद को बताया था कि 'अब तक उसने राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी तैयार करने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया है। सरकार इस बात से भी इंकार कर चुकी है कि सीएए और एनआरसी आपस में जुड़े हुए हैं।
अपनी राय बतायें