पूर्व आईएएस, आईपीएस और सिविल सोसाइटी के महत्वपूर्ण सदस्यों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिख कर दिल्ली पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इस ख़त में उत्तर पूर्वी दिल्ली में इस साल फरवरी में हुए दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया गया है।
ख़त में कहा गया है कि इन दंगों में पुलिस की मिलीभगत थी, कई जगहों पर पुलिस वालों ने ही पत्थर फेंके थे और हिंसा की थी, पुलिस ने भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया, पुलिस हिरासत में यंत्रणाएं दी गईं और यह सब करने वाले पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ सबूत होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
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वीडियो में आया पुलिस का सच
राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि उत्तर पूर्व दिल्ली में मौजपुर मेट्रो के पास ज़मीन पर पड़े युवकों को पुलिसकर्मी बेहरमी से पीटते हुए देखे गए। एक वीडियो सामने आया जिसमें पुलिस वाले इन युवकों से राष्ट्रगान गाने को कहते हैं और फिर बुरी तरह पीटते हैं।चिट्ठी में कहा गया है कि इनमें से एक 23 वर्षीय फ़ैजान को ग़ैरक़ानूनी तरीके से 36 घंटे तक पुलिस हिरासत में रखा गया, यंत्रणाएं दी गईं, जिससे उसकी मौत हो गई। पुलिस ने उसके इलाज का कोई इंतजाम तक नहीं किया।
ख़त के मुताबिक़, इस मामले की प्राथमिकी यानी एफ़आईआर में फ़ैजान की पिटाई की कोई चर्चा नहीं है, न ही किसी पुलिसकर्मी का नाम है, न ही किसी को अभियुक्त बनाया गया है।
हिंसा में शामिल पुलिसकर्मी?
राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी में कहा गया है कि पुलिस वाले हिंसा में शामिल हुए थे, उन्होंने पत्थर फेंके थे और मारपीट की थी। यह भी दावा किया गया है कि इसके वीडियो सबूत हैं। इसके भी सबूत हैं कि ऐसी ही एक वारदात के बाद पुलिस वालों ने ही खुरेजी में सीसीटीवी कैमरे को तोड़ दिया ताकि उनकी गतिविधियाँ कैमरे में क़ैद न हो सके।इस चिट्ठी में अंग्रेजी पत्रिका 'द कैरेवन' के हवाले से कहा गया है कि 'कम से कम एक डिप्टी पुलिस कमिश्नर, दो एडिशनल कमिश्नर और दो थाना प्रभारी दंगों के दौरान लोगों को डराने धमकाने, बेवजह गोली चलाने, आगजनी और लूटपाट करने में शामिल थे।'
इस वारदात के 4 महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद किसी पुलिसकर्मी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर अब तक नहीं लिखी गयी है। सच तो यह है कि बीजेपी का एक नेता लोगों को भड़काने वाली बातें कहता रहा और उसके बगल में दिल्ली पुलिस का एक अफ़सर खड़ा रहा।
पुलिस हिरासत में यंत्रणा
रामनाथ कोविंद को लिखी चिट्ठी में प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने लोगों को हिरासत में यंत्रणाएं दीं। पुलिस ने ख़ालिद सैफ़ी को खुरेजी में 26 फरवरी को गिरफ़्तार किया, दो दिन बाद जब उसे अदालत में पेश किया गया तो उसके दोनों पैर टूटे हुए थे।शाहरुख़ को दंगा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया और हिरासत में उसे इस तरह पीटा गया कि उसकी आँखें ख़राब हो गईं, उसकी आँखों की 90 प्रतिशत दृष्टि चली गई। उसे क़बूलनामा पर दस्तख़त करवा लिया गया जो वह नहीं पढ़ सकता था क्योंकि उसकी आँख खराब हो चुकी थीं।
क़बूलनामे पर ज़बरन दस्तख़त
वह 'पिंजड़ा तोड़ आन्दोलन' की देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जानता तक नहीं, लेकिन उससे उस कबूलनामे पर दस्तख़त करवाया गया जिसमें उन दोनों के नाम लिए गए।राष्ट्र्पति को लिखे ख़त में कहा गया है कि पुलिस जाँच और पूछताछ में भेदभाव किया गया और इसकी वजह उसकी ख़राब नीयत है। यह कहा गया है कि 'हम भारत के लोग' नामक संस्था से जुड़े लोगों को पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया, जिसका मक़सद उन्हें परेशान करना है।
इस संस्था से जुड़ी तमाम जानकारियाँ और तसवीरें उसके वेबसाइट पर हैं, कुछ भी गोपनीय नहीं है, पर पुलिस उन्हें पेरशान इसलिए कर रही है कि उन्होंने नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध यह कह कर किया कि वह भेदभावपूर्ण है।
इस चिट्ठी पर पूर्व सचिव, पूर्व उप सचिव, सरकार के सलाहकार, पूर्व आयकर आयुक्त, उपायुक्त, पूर्व राजदूत, कई राज्यों के पूर्व पुलिस प्रमुख, प्रसार भारती के पूर्व प्रमुख जैसे लोगों ने दस्तख़त किए हैं। इसके अलावा सिविल सोसाइटी के दूसरे सदस्यों ने भी इस ख़त पर दस्तख़त किए हैं।
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