दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देविंदर पाल भुल्लर के विरोधी हैं या उनके हमदर्द? यह सवाल तब उठ खड़ा हुआ जब दिल्ली के एलजी ने 'खालिस्तानी प्रोफ़ेसर देविंदर पाल भुल्लर की रिहाई' के लिए राजनीतिक फंड लेने का आरोप लगाते हुए अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ एनआईए जाँच की सिफारिश कर दी। उन्होंने जिस भुल्लर की रिहाई के लिए फंड देने का आरोप लगाया है उसी भुल्लर की रिहाई में अड़चन डालने का आरोप कुछ महीने पहले अरविंद केजरीवाल पर लगा था।
इसी साल जनवरी में विरोधी राजनीतिक दल शिरोमणि अकाली दल ने आरोप लगाया था कि पंजाब सीएम भगवंत मान के साथ मिलकर अरविंद केजरीवाल ने भुल्लर की समय पूर्व रिहाई में अड़चन डाली थी।
भुल्लर की रिहाई के लिए एक के बाद एक लगातार याचिकाएँ दायर की जाती रही हैं। अब तक ऐसा सात बार हो चुका है। जनवरी में समय से पहले रिहाई के लिए भुल्लर की याचिका सातवीं बार खारिज हुई थी। इसके खारिज होने के बाद ही शिरोमणि अकाली दल ने केजरीवाल पर 'सिख संगत के घावों पर नमक छिड़कने का आरोप लगाया था।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार शिरोमणि अकाली दल ने इसके बाद केजरीवाल और आप को दोषी ठहराया क्योंकि सजा समीक्षा बोर्ड का नेतृत्व दिल्ली के जेल मंत्री कैलाश गहलोत कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने एक्स पर लिखा था, 'दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और उनके कठपुतली भगवंत मान द्वारा मानवता के खिलाफ चौंकाने वाला जघन्य अपराध। प्रोफेसर देविंदर पाल सिंह भुल्लर की समय पूर्व रिहाई की याचिका को खारिज करने के लिए एकजुट होकर उन दोनों ने सिख संगत के घावों पर नमक छिड़का है।'
बादल के रिश्तेदार और एक अन्य अकाली दल नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को रिहाई में बाधा डालने का दोषी ठहराया था।
उन्होंने कहा था, 'पंजाबियों को यह जानने का अधिकार है कि याचिका को पिछले पांच वर्षों से लंबित क्यों रखा गया था और अब इसे क्यों खारिज कर दिया गया है। यह भुल्लर के मानवाधिकारों का उल्लंघन है।'
जिस भुल्लर की समय पूर्व रिहाई को बाधित करने का आरोप अरविंद केजरीवाल झेल रहे थे, अब इसके उलट उनपर आरोप लगा है। सोमवार को मीडिया रिपोर्टों में एलजी हाउस के सूत्रों के हवाले से कहा गया कि एक शिकायत के आधार पर एनआईए जांच की सिफारिश की गई थी कि आप को 'देविंदर पाल भुल्लर की रिहाई के समर्थन और खालिस्तान समर्थक भावनाओं को बढ़ावा देने' के लिए खालिस्तान समर्थक समूह से 16 मिलियन डॉलर मिले थे। यह शिकायत विश्व हिंदू महासंघ के आशू मोंगिया ने दर्ज कराई थी।
1995 से तिहाड़ जेल में बंद भुल्लर को अगस्त 2001 में नामित आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई थी, लेकिन 2014 में उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उनकी दया याचिका खारिज कर दी थी।
केंद्र ने गुरु नानक देव की 550वीं जयंती समारोह के दौरान उनकी समय पूर्व रिहाई के लिए सहमति दी थी। इसके बाद उनकी रिहाई तीन बार टाली गई और आख़िरकार बोर्ड ने खारिज कर दी।
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