हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता कानून में कोई भी बाधा दिखाने में विफल रहा जो गिरफ्तार सीएम को पद संभालने से रोकता है। सीजे ने मौखिक रूप से कहा, "हमें दिखाओ, निषेध कहां है। हमें कोई कानूनी बाधा दिखाओ जिसके बारे में आप प्रचार कर रहे हैं।" यानी अदालत ने यह कहा कि अगर केजरीवाल ने किसी कानून को तोड़ा हो, रोका हो, गलत फैसला लिया हो, वैसा कोई उदाहरण दिखाओ।
बेंच ने कहा कि मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है और कार्यपालिका इस मुद्दे की जांच कर रही है। अदालत ने कहा-
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अगर कोई संवैधानिक विफलता है, तो राष्ट्रपति या राज्यपाल इस पर कार्रवाई करेंगे...क्या इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश है? एलजी इस मुद्दे की जांच कर रहे हैं। यह राष्ट्रपति के पास जाएगा। यह एक अलग विंग का है। वहां इसमें न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
-दिल्ली हाईकोर्ट, 28 मार्च 2024 सोर्सः लाइव लॉ
यादव ने जनहित याचिका में कहा था कि केजरीवाल के पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होगी और न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी, बल्कि राज्य में संवैधानिक मशीनरी भी ध्वस्त हो जाएगी क्योंकि केजरीवाल संतुष्ट नहीं हैं।
यादव ने दलील दी थी कि जेल में बंद मुख्यमंत्री किसी भी काम को करने में असमर्थ हैं, जिसका कानून उन्हें आदेश देता है और यदि उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाती है, तो किसी भी सामग्री को, चाहे उसकी गोपनीय प्रकृति कुछ भी हो, जेल अधिकारियों द्वारा पहले पूरी तरह से स्कैन किया जाना चाहिए। केजरीवाल तक अगर कोई फाइल पहुँचती है तो इस तरह का कृत्य सीधे तौर पर संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत सीएम को दिलाई गई गोपनीयता की शपथ का उल्लंघन होगा।
यादव ने एक अन्य जनहित याचिका भी दायर की है जिसमें केजरीवाल को ईडी की हिरासत में निर्देश या आदेश जारी करने से रोकने की मांग की गई है। याचिका अभी सूचीबद्ध नहीं हुई है। दोनों ही याचिकाओं का मकसद केजरीवाल को बतौर सीएम रोकना है।
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