केजरीवाल सरकार एक और मुश्किल में फंसने जा रही है। वो मामला 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद का है। इस मामले में भी कर्टेल बनाकर करप्शन करने की बात सामने आई है। एक सरकारी रिपोर्ट में कर्टेल वाली बात कही गई है। सीबीआई ने पहली बार रविवार को कहा कि उसने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और पीई (शुरुआती जांच) दर्ज कर ली है। इस मामले की जांच आगे बढ़ने पर मुख्यमंत्री केजरीवाल के कई करीबी लोग संकट में फंस सकते हैं।
दरअसल, लो फ्लोर बस स्कैम मामले की जांच का आदेश पिछले साल दिया गया था। इसके बाद दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी जुलाई में पूरे ट्रांसपोर्ट विभाग, उसकी नीति और डीटीसी के तमाम मामलों की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को सौंपी थी। एसीबी की जांच भी केजरीवाल के लिए बड़े संकट की वजह बन सकती है।
सीबीआई ने पीई, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) के 2021 के पत्र के बाद दर्ज की है। जिसमें 1,000 लो-फ्लोर एसी बस की खरीद और वार्षिक रखरखाव अनुबंध (एएमसी) से संबंधित दिल्ली परिवहन निगम सौदे की सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी। इस सौदे में तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा गठित समिति ने विभिन्न खामियों को बताया था।
क्या है आरोप
बसों की खरीद अनुबंध जहां 850 करोड़ रुपये का था, वहीं 12 साल की एएमसी 3,412 करोड़ रुपये की थी। यानी खरीद से कहीं ज्यादा उसके रखरखाव पर खर्च किया गया। खरीद टेंडर जेबीएम ऑटो और टाटा मोटर्स को 70:30 के अनुपात में दिया गया था, जबकि जेबीएम ऑटो भी एएमसी टेंडरिंग में भी बोलीदाता के रूप में सामने आई थी। इस मामले में कांग्रेस और बीजेपी का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने इस सौदे में 4288 करोड़ की धांधली की है।
दिल्ली सरकार का तर्कः यह विवाद इसलिए बढ़ा, क्योंकि डीटीसी ने पिछले साल 1,000 लो-फ्लोर एसी बसों और उनकी एएमसी की खरीद के लिए दो अलग-अलग टेंडर जारी किए। डीटीसी ने तर्क दिया था कि दोनों सौदों के लिए एक टेंडर में बोलीदाता दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे। इसलिए उसने सौदे की प्रक्रिया को अलग-अलग करने का निर्णय लिया।
संदेह बढ़ा
मामला तब संदेह के घेरे में आ गया जब तीन सदस्यीय समिति ने बताया कि एएमसी टेंडर में तय पात्रता मानक ने बोलियों को अलग-अलग करने के मकसद को फेल कर दिया। इस समिति में प्रधान सचिव (परिवहन) आशीष कुंद्रा, प्रमुख सचिव (सतर्कता) के आर मीणा और पूर्व आईएएस ओपी अग्रवाल थे। समिति का गठन 16 जून को हुआ था।
अपनी 11 पन्नों की रिपोर्ट में, समिति ने कहा था कि एएमसी "कार्टेलाइजेशन" (गिरोहबंदी) और एकाधिकार मूल्य निर्धारण को बढ़ाती है। इसमें खरीद और एएमसी टेंडरिंग की एक सीक्वेंसिंग भी शामिल थी, जिसमें कहा गया था कि ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां दोनों बोलीदाताओं को पता था कि वे इस खेल में एकमात्र खिलाड़ी थे। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उसने अपना ध्यान केवल बसों की एएमसी की खरीद प्रक्रिया पर केंद्रित किया।
हालांकि दिल्ली सरकार शुरू से ही सभी आरोपों से इनकार कर रही है। दिल्ली सरकार का दावा है कि मामले की गहन जांच के लिए पहले ही एक समिति गठित कर दी गई थी, जिसने क्लीन चिट दे दी थी। सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कहा गया कि यह आम आदमी पार्टी के खिलाफ राजनीति से प्रेरित साजिश है। बीजेपी दिल्ली के लोगों को नई बसें लेने से रोकना चाहती है।
मुसीबतों का अंत नहीं
केजरीवाल सरकार का ट्रांसपोर्ट विभाग भी जांच का सामना कर रहा है। यह जांच भी दिल्ली सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाली है। 30 जुलाई 2022 को दिल्ली के एलजी विनय कुमार सक्सेना ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को बुराड़ी परिवहन प्राधिकरण में ऑटो फाइनेंसरों / अनधिकृत डीलरों और दलालों के साथ परिवहन विभाग के अधिकारियों के कथित भ्रष्टाचार और मिलीभगत की जांच करने का निर्देश दिया था।
ऑटो रिक्शा यूनियन की शिकायत पर भी जांच हो रही है
यह निर्देश कई ऑटो-रिक्शा यूनियनों द्वारा दायर एक आपराधिक रिट याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के मद्देनजर आया है, जिसमें आरटीओ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और ड्राइवरों को परेशान करने का आरोप लगाया गया था।
एसीबी अधिकारियों ने कहा, एलजी ने जांच पूरी करने और एक महीने के भीतर व्यापक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। वो एक महीने इसी अगस्त में पूरे हो जाएंगे। सतर्कता निदेशालय ने इस मामले की जांच की और पाया कि याचिकाकर्ताओं ने आरटीओ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं और साथ ही ऐसी गलतियां की हैं जो ऑटो चालकों को प्रभावित कर रही हैं।
गंभीर आरोप : अधिकारियों ने कहा कि ऑटो चालकों ने आरोप लगाया है कि एमएलओ और आरटीओ अधिकारी ऋण के डिफ़ॉल्ट भुगतान पर परमिट को अवैध रूप से ट्रांसपोर्ट कर रहे हैं। आपराधिक रिट याचिका पर विचार करते हुए, हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस, परिवहन विभाग, जीएनसीटीडी और सतर्कता निदेशालय, जीएनसीटीडी को इस याचिका को शिकायत के रूप में मानते हुए मामले की जांच करने का निर्देश दिया।
सतर्कता निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि उक्त शिकायत प्रकृति में 'गंभीर' थी और इसलिए, इसे एसीबी को संदर्भित करने का प्रस्ताव किया गया था, जिसे मुख्य सचिव ने आगे सिफारिश के साथ बढ़ा दिया था।
केजरीवाल जब एक के बाद एक जांच का सामना कर रहे हैं, वो इस तरह प्रदर्शित कर रहे हैं कि उन्हें इसकी परवाह नहीं है। केजरीवाल और सिसोदिया सोमवार 22 अगस्त को गुजरात के दौरे पर हैं। दोनों नेता शुरू से ही आरोप लगा रहे हैं कि गुजरात में आम आदमी पार्टी का विजय रथ रोकने के लिए बीजेपी यह सब कर रही है। दोनों नेताओं ने इस सिलसिले में पीएम मोदी पर भी हमला किया था।
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