नाम 'शांति मार्च'। और नारे लगाए गए- 'किसी को मत माफ़ करो, जिहादियों को साफ़ करो', 'देश के गद्दारों को, गोली मारो ... को'। यह कैसा शांति मार्च! क्या बंदूक़ की गोली से कभी शांति आ सकती है? दिल्ली दंगे के बीच बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने शनिवार को यह शांति मार्च निकाला था। यह वही नेता हैं जिन्होंने पहली बार दिल्ली चुनाव के दौरान 'गोली मारो' वाले नारे का इस्तेमाल किया था और बाद में जिसे अनुराग ठाकुर ने भी लगाया था। और यह वही नेता हैं जिन्होंने दिल्ली हिंसा से पहले जाफ़राबाद में 'भड़काऊ' रैली निकाली थी और धमकी दी थी। तब उन्होंने चेताया था '...आप सबके (अपने समर्थक) बिहाफ़ पर यह बात कह रहा हूँ, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे यदि रास्ते खाली नहीं हुए तो... ठीक है?' कपिल मिश्रा के इस भाषण पर दिल्ली हाई कोर्ट ने भी शख्त नाराज़गी जताई थी। अब जब उनके शांति मार्च में 'गोली मारो ... को' का नारा लगेगा तो शांति बहाली होगी या लोग भड़केंगे?
माना जा रहा था कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे में भड़काऊ भाषण देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी। ऐसे भड़काऊ भाषण देने वालों में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का नाम सबसे ऊपर आया। तब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस मुरलीधर ने एफ़आईआर दर्ज करने को भी कह दिया था। लेकिन उनका तबादला हो गया और अब कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई अप्रैल महीने के लिए टाल दी है। दंगे में इतने बड़े पैमाने पर लोगों की मौत होने, घायल होने और संपत्ति के नुक़सान होने के बाद लग रहा था कि लोग इससे सबक़ लेंगे। चौतरफ़ा शांति की अपील भी की जा रही है। इसी बीच कपिल मिश्रा ने भी शांति मार्च निकालने की बात कही। तब कई लोगों को उनके शांति मार्च को लेकर संदेह भी हुआ। जैसा संदेह था वैसी ही अजीबोगरीब चीजें हुईं भी।
कपिल मिश्रा का यह शांति मार्च कई मामलों में अजूबा रहा। कपिल मिश्रा के इस मार्च में क़रीब 1200 लोग शामिल हुए। पुलिस से अनुमति नहीं ली गई। जंतर-मंतर से शुरू होकर यह कनॉट प्लेस और जनपथ जैसी जगहों से गुज़रा। 'मत माफ़ करो', 'साफ़ करो', 'गोली मारो' जैसे नारे लगते रहे। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सुरक्षाकर्मी भी साथ चल रहे थे।
अब इसे अजीबोगरीब नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए। इतनी बड़ी संख्या में लोग थे, अति सुरक्षित इलाकों से मार्च निकाला गया, लेकिन पुलिस से अनुमति नहीं ली गई। पुलिसकर्मी भी साथ चल रहे थे।
अब ऐसी जगहों से 'साफ़ करो' और 'गोली मारो' का नारा लगता है। यानी सरेआम कहा जा रहा है कि हत्या करो। न तो पुलिस और न ही कोर्ट में कोई सुनवाई। यानी सीधे गोली मारो। क्या दुनिया के किसी लोकतंत्र में इसकी इजाज़त है?
शांति मार्च क्यों?
कपिल मिश्रा के इस 'शांति मार्च' में एक और बड़ी बात देखी गई। कुछ लोगों के सर पर बैंडेज लगे हुए थे। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार उन्होंने दावा किया कि वे दिल्ली हिंसा में घायल थे। दरअसल, इस तरह के प्रदर्शन हिंसा को उकसाते हैं। दंगे की स्थिति में यदि घायलों और मृतकों को लेकर अजीब-अजीब दावे किए जाएँ तो लोगों की भावनाएँ भड़कती हैं। और इसके साथ यदि 'गोली मारो' जैसे नारे लगाए जाएँ तो क्या हाल होगा?
यह शांति मार्च सवालों के घेरे में इसलिए भी है क्योंकि जिस ‘गोली मारो’ नारे वाले ने पूरा नफ़रत का माहौल पैदा कर दिया उसे ही क्यों लगाया गया? इस नारे का इस्तेमाल सबसे पहली बार मॉडल टाउन से बीजेपी उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने चुनावी फ़ायदे के लिए प्रचार अभियान में किया था। हालाँकि इस मामले ने तब तूल पकड़ा था जब केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसी नारे को एक दूसरी चुनावी रैली में लगाया और लगवाया।
इन नफ़रत वाले नारों के बाद कई जगह पर गोलियाँ चलने की घटनाएँ हुईं। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान शाहीन बाग़ में एक के बाद एक गोली चलाने की कई घटनाएँ सामने आईं। इनमें से एक हमलावर ने हिरासत में लिए जाते वक़्त कहा था, ‘हमारे देश में सिर्फ़ हिन्दुओं की चलेगी।’ इससे पहले जामिया मिल्लिया इसलामिया के पास एक नाबालिग शख़्स ने गोली चला दी थी। इसे लेकर ख़ासा हंगामा हुआ था। इस शख़्स ने सरेआम रिवॉल्वर लहराते हुए ‘ये लो आज़ादी’ कहते हुए गोली चलाई थी और ‘दिल्ली पुलिस ज़िंदाबाद’ के नारे भी लगाए थे।
और अब यही नारा शांति मार्च में लगाया गया है। इसके साथ में दूसरे नारे भी लगाए गए। क्यों?
अपनी राय बतायें