टीआरपी बटोरने के लिए टीवी चैनलों ने सुशांत मामले में उनकी एक्स गर्लफ़्रेंड रिया चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ जिस तरह की रिपोर्टिंग अपने मातहत पत्रकारों से करवाई है, उसके ख़िलाफ़ अब आवाज़ उठने लगी है। रिया सही है या ग़लत, उसने कोई जुर्म किया या नहीं, इस सबका फ़ैसला जांच अदालत ही करेगी।
लेकिन टीवी चैनल के स्टूडियो में बैठकर रिया और उसके परिवार को अपराधी साबित करने पर तुले कुछ नामी-गिरामी पत्रकारों को उनके ही रिपोर्टर्स ने आइना दिखाया है। ऐसी ही एक महिला पत्रकार जिनका नाम शांताश्री सरकार है, उन्होंने अपने चैनल पर रिया के ख़िलाफ़ ‘एजेंडा पत्रकारिता’ करने का आरोप लगाते हुए इससे अपना पिंड छुड़ा लिया है। शांताश्री सरकार रिपब्लिक चैनल में प्रिंसिपल कॉरेस्पोन्डेन्ट थीं।
शांताश्री सरकार ने ट्विटर पर जो कुछ लिखा है, उसे लोग री-ट्वीट कर रहे हैं और उनकी हिम्मत की दाद भी दे रहे हैं कि उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धातों की हिफ़ाजत के लिए नौकरी ही छोड़ देना बेहतर समझा।
शांताश्री ने लिखा, ‘मैं इसे सोशल मीडिया पर डाल रही हूं कि मैंने रिपब्लिक चैनल को छोड़ दिया है और नैतिक वजहों से ऐसा किया है। मैं अभी भी नोटिस पीरियड पर हूं लेकिन मैं रिपब्लिक की ओर से रिया चक्रवर्ती को अपमानित करने के लिए चलाए जा रहे ‘एजेंडे’ का विरोध करने से ख़ुद को नहीं रोक सकती।’ शांताश्री ने लिखा है कि यह बोलने का वक्त है।
शांताश्री अगले ट्वीट में लिखती हैं, ‘मुझे पत्रकारिता में सच को सामने लाने की बात सिखाई गई थी। सुशांत मामले में मुझसे सारी बातों की जानकारी लाने के लिए कहा गया सिर्फ़ सच को छोड़कर। जांच के दौरान मुझे दोनों परिवारों के क़रीबी सूत्रों से पता चला कि सुशांत डिप्रेशन से गुजर रहा था लेकिन यह मेरे चैनल के ‘एजेंडे’ को सूट नहीं करता था।’
शांताश्री आगे लिखती हैं, ‘मुझसे इस मामले में पैसे के लेन-देन को लेकर जांच करने को कहा गया। लेकिन रिया की अकाउंट डिटेल्स से जो जानकारी सामने आई वह मेरे चैनल यानी रिपब्लिक द्वारा सुशांत के पैसे में हेराफेरी को लेकर चलाई जा रही ख़बरों से पूरी तरह उलट थी।’
इस पूरे मामले के दौरान कई ऐसे वीडियो भी सामने आए जिसमें टीवी चैनलों के पत्रकारों ने रिया के अपार्टमेंट की ओर जाने वाले लोगों को बुरी तरह घेर लिया। इसमें एक पिज्जा डिलीवरी ब्वॉय का वीडियो ख़ूब वायरल हुआ था। शांताश्री सरकार ने अपने अगले ट्वीट में इसे लेकर ही बात कही है।
शांताश्री लिखती हैं कि उन्होंने देखा कि उनके साथी पत्रकार रिया के अपार्टमेंट की ओर जाने वाले किसी भी शख़्स का उत्पीड़न कर रहे थे। शांताश्री के मुताबिक़, ऐसे पत्रकारों ने यह सोचा कि चिल्लाना और एक महिला के कपड़े खींचना चैनल में उन्हें पहचान दिला देगा।
शांताश्री लिखती हैं कि वह इस सब से बेहद परेशान थीं कि किस तरह ख़बर को ग़लत ढंग से रिपोर्ट किया जा रहा है और एक महिला को सरेआम अपमानित किया जा रहा है। शांता ने यह भी लिखा कि उन्हें एकतरफा स्टोरी नहीं लाने की सजा लगातार काम करने के रूप में दी गई। वह लिखती हैं कि उन्होंने लगातार 72 घंटे तक काम किया।
वह आगे लिखती हैं, ‘रिपब्लिक चैनल में पत्रकारिता मर चुकी है और मैंने आज तक जो भी स्टोरी कीं, वे एकतरफा नहीं थीं। लेकिन जब एक औरत को अपराधी साबित करने के लिए मुझे अपना जमीर बेचने की नौबत आई तो मैंने रिया के हक़ में सीधा स्टैंड लिया।’ शांताश्री लिखती हैं कि एक बंगाली और एक महिला होने के नाते, वे इस बात पर शर्मिंदा हैं कि देश ने सच के प्रति अपने सब्र को खो दिया है।
सुशांत की मौत का मामला सामने आने के बाद कुछ चैनल्स ने पहले यह आरोप लगाने की कोशिश रिया ही असली अपराधी है और उसके ऊपर हत्या में शामिल होने तक के इशारे किये गये। हालाँकि अभी तक की सीबीआई की जाँच में इस तरह का एक भी सबूत हाथ नहीं लगा है कि रिया का सुशांत की मौत में कोई हाथ है। जबकि सीबीआई कई बार घंटों तक उससे पूछताछ कर चुकी है।
सुशांत के पिता की एफ़आईआर के आधार पर सुशांत के खाते से 15 करोड़ रुपये रिया द्वारा अपने खाते में ट्रांसफ़र करने की ख़बर भी जोर-शोर से चलाई गई। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को अब तक इस बाबत कोई सबूत नहीं मिला है।
उसके बाद रिया पर ड्रग्स लेने के आरोप लगाए गए लेकिन एनसीबी की रिमांड कॉपी और रिया के ख़ुद का ड्रग टेस्ट कराने की बात दमदार तरीक़े से कहने के बाद इन चैनलों को इस मामले में भी मुंह की खानी पड़ी। रिमांड कापी में इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है कि वो ड्रग लेती थी या ड्रग बेचती थी। नारकोटिक्स ब्यूरो ने रिया पर सिर्फ सुशांत के लिए ड्रग ख़रीदने का आरोप लगाया है।
जाहिर है कि रिया को जेल भिजवाने का एजेंडा चला रहे कुछ चैनल्स को इस मामले में मुँह की खानी पड़ी है। रिया को बस ड्रग ख़रीदने के आरोप में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
रिया ग़लत है या सही, इसका फ़ैसला अदालत को करना है। लेकिन इस पूरे मामले ने पत्रकारिता के मानदंडों पर गहरे सवाल खड़े कर दिये हैं।
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