ज़बरदस्त कोरोना संक्रमण की चपेट में आई दिल्ली में बेड कम पड़ने की समस्या के समाधान के लिए हाई कोर्ट ने एक अहम फ़ैसला दिया है। अदालत ने कहा है कि 33 निजी अस्पतालों में 80 फ़ीसदी आईसीयू बेड कोरोना मरीज़ों के लिए आरक्षित रखे जा सकते हैं। कोर्ट का फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब दिल्ली में हर रोज़ अब 8000 से ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले आने लगे हैं और ऐसी रिपोर्टें हैं कि अधिकतर अस्पतालों में आईसीयू मरीज़ों से क़रीब-क़रीब भरने वाले हैं।
कोरोना संक्रमण के बाद मरीज़ों के इलाज की स्थिति को संभालने के लिए लिए केजरीवाल सरकार आईसीयू बेड आरक्षित करने के पक्ष में रही है।
पहले दिल्ली के 33 बड़े निजी अस्पतालों के आईसीयू में 80 फ़ीसदी बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित करने के दिल्ली सरकार के फ़ैसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद संक्रमण के कारण ख़राब स्थिति को देखते हुए अरविंद केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के निजी अस्पतालों के आईसीयू बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित करने की माँग की थी।
लेकिन दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिल्ली हाई कोर्ट जाने को कहा था। साथ ही इसने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा था कि वह 12 नवंबर को मामले की सुनवाई करे।
लेकिन अब ताज़ा हालात को देखते हुए जस्टिस हिमा कोहली और सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने दिल्ली सरकार की अपील को मंजूर कर लिया कि वह 33 निजी अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों के लिए कम से कम 15 दिनों के लिए आईसीयू बेड 80 प्रतिशत आरक्षित कर सकती है।
बता दें कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने से आईसीयू बेड के कम पड़ने की आशंका है। दिल्ली के अस्पतालों में अब सिर्फ़ 13 फ़ीसदी आईसीयू बेड ही खाली हैं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कुल 1283 आईसीयू बेड में वेंटिलेटर की सुविधा है जिसमें से 1119 भरे हुए हैं। इसका मतलब हुआ कि क़रीब 87 फ़ीसदी बेड भरे हुए हैं।
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