रिजर्व बैंक द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार
विदेशी मुद्रा जोकि रिजर्व भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा है वह भी 1.747 बिलियन घटकर
496441 बिलियन रह गया है। साल 2022 की शुरुआत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 633
बिलियन डॉलर था। जबकि अक्टूबर 2021 में यह अपने उच्चतम स्तर 645 बिलियन ड़ॉलर पर
था। लगातार कम होते भंडार के सोने के भंडार में बढ़ोत्तरी हुई है। जो पहले के 461
मिलियन के मुकाबले 41.784 बिलियन हो गया है।
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तगातार घटते मुद्रा भंडार का प्रमुख कारण विदेशी
वस्तुओं के आयात की बढ़ती कीमतों के साथ ड़ॉलर के मुकाबले लगातार घटती रुपये की
वैल्यू को समझा जा रहा है। रिजर्व बैंक मोद्रिक तरलता के जरिए
बाजार को स्थिर रखने के लिए समय-समय पर हस्तक्षेप करता रहता है, उसमें डॉलर को बेचने
जैसा कदम भी उठाता है।
क्या केंद्रीय बैंक भारतीय मुद्रा भंडार में आ रही
गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व भंडार का उपयोग कर रहा है? सवाल का जवाब देते हुए
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में संसद को बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक
विदेशी मुद्रा बाजार की बारीकी से निगरानी करता है और केवल विनिमय दर में अत्यधिक
अस्थिरता को नियंत्रित करके व्यवस्थित बाजार की स्थितियों को बनाए रखने के लिए
हस्तक्षेप करता है, वह भी बिना किसी पूर्व-निर्धारित लक्ष्य के।
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विदेशी मुद्रा भंडार घटने का प्रमुख कारण रुस-युक्रेन
युद्ध को माना जा रहा है जिसके कारण विदेशों से आयात की जाने वाले सामान के दामों
में वृद्धि हुई है, जिसके कारण भारत को अपने मुद्रा भंडार से ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। लगातार
हो रही कमी का दूसरा प्रमुख कारण डॉलर के
मुकाबले कमजोर होते रुपये को भी समझा जा रहा है। भारत अपने आयात का सबसे ज्यादा
खर्च पेट्रोमियम पदार्थों को खरीदने में करता है, जिसके भुगतान के लिए
उसे डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
किसी भी देश के आर्थिक हालातों का आकलन करने के लिए
विदेशी मुद्रा भंडार को एक पैमाने के रूप में देखा जाता है। इस लिहाज से भारत अभी
बेहतर स्थिति में है लेकिन लगातार घट रहा विदेशी मुद्रा भंडार आने वाले समय में एक
चिंता का विषय हो सकता है। जिसका असर आने वाले बजट पर भी पड़ेगा।
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