मनीष सिसोदिया शनिवार को जेल से बाहर आ सकते हैं क्योंकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है। क़रीब 17 महीने पहले उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। पिछले साल 26 फ़रवरी को सीबीआई ने उनसे घंटों पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया था। दिल्ली आबकारी नीति मामले में रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। बाद में ईडी ने भी उनको गिरफ़्तार किया था। लेकिन अब तक इस मामले में ट्रायल भी शुरू नहीं हो पाया है। ट्रायल में इतनी देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसियों को फटकार लगाई।
तो सवाल है कि आख़िर मनीष सिसोदिया पर आरोप क्या हैं? केंद्रीय एजेंसियाँ क्या दावा करती रही हैं और क्या दलीलें देती रही हैं? शराब विक्रेताओं को रिश्वत देने के आरोपों का सामना कर रहे सिसोदिया को सीबीआई ने 26 फरवरी, 2023 को गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने सिसोदिया पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। बाद में ईडी ने भी उनको गिरफ़्तार किया, इस मामले में आरोप धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत हैं।
उनका नाम पहली बार चार्जशीट में उनकी गिरफ़्तारी के क़रीब दो महीने बाद आया था। अप्रैल महीने के आख़िर में दिल्ली आबकारी नीति मामले में दायर पूरक आरोपपत्र में सिसोदिया को आरोपी बनाया गया।
उससे भी पहले 2022 के नवंबर महीने में दिल्ली आबकारी नीति मामले में सीबीआई के बाद ईडी की चार्जशीट पेश की गई थी तो उसमें सिसोदिया का नाम नहीं था। हालांकि सीबीआई ने जब एफआईआर दर्ज की थी, तब उसमें सिसोदिया का नाम था। तब दोनों केंद्रीय जांच एजेंसियों की चार्जशीट में मनीष सिसोदिया का नाम नहीं होने पर कई सवाल उठाए गए थे।
तब पिछले साल ख़बर आई थी कि सीबीआई के अनुसार आप के संचार प्रभारी रहे विजय नायर, पर्नोड रिकार्ड के पूर्व कर्मचारी मनोज राय, ब्रिंडको स्पिरिट्स के मालिक अमनदीप ढाल और इंडोस्पिरिट्स ग्रुप के एमडी समीर महेंद्रू मुख्य आरोपियों में शामिल थे। वे कथित तौर पर दिल्ली आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में अनियमितताओं में सक्रिय रूप से शामिल रहे। तब एजेंसी ने दावा किया था कि बिचौलिया पांडे और राधा इंडस्ट्रीज के प्रमोटर दिनेश अरोड़ा मनीष सिसोदिया के करीबी सहयोगी रहे और सक्रिय रूप से शराब लाइसेंसधारियों से आरोपी लोक सेवकों को अनुचित आर्थिक लाभ के प्रबंधन में शामिल थे। सीबीआई का आरोप था कि पांडे ने विजय नायर की ओर से महेंद्रू से क़रीब 2 से 4 करोड़ रुपये की रक़म ली थी।
तब से जेल में रहे मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट ने काफ़ी अहम टिप्पणी की है। यह कहते हुए कि सिसोदिया ने बिना किसी मुक़दमे के लगभग 17 महीने जेल में बिताए हैं, अदालत ने माना कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का अधिकार) के तहत त्वरित सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।
सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें तर्क दिया गया कि ईडी और सीबीआई द्वारा अक्टूबर 2023 में आश्वासन दिए जाने के बावजूद मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है।
अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट दोनों को सिसोदिया के मामले में उनकी जमानत याचिका पर विचार करते समय लंबी अवधि की कैद पर विचार करना चाहिए था। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट अक्सर बताए गए नियम को पहचानने में विफल रहते हैं कि जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है।
अदालत ने अभियोजन पक्ष की दो आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। इस तर्क के जवाब में कि मामले की सुनवाई ट्रायल कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए, अदालत ने कहा कि किसी नागरिक को राहत पाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह दौड़ना नहीं पड़ सकता। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मामले में देरी इसलिए हुई क्योंकि सिसोदिया ने देरी के लिए बार-बार आवेदन दायर किए।
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