दिल्ली दंगा जाँच पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, पीड़ित परिवारों को दिए जाने वाले राहत को लेकर भी कई शिकायतें आई हैं। दंगे के छह महीने बाद भी सबको राहत नहीं मिल पाई है। दिल्ली सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि प्रभावित परिवारों को राहत मिलने में देरी हुई, जितना नुक़सान हुआ व जितनी भरपाई की गई उसमें भारी अंतर है, हर्जाने की माँग वाले कई आवेदन ग़लत तरीक़े से खारिज़ किए गए हैं। इनमें से कई मुद्दों को दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने भी उठाया है। इसने राज्य के राजस्व विभाग को मामले की समीक्षा करने को कहा है।
यह मुद्दा दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति बुधवार को बैठक में उठाया गया। यह समिति दंगों से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है। इसी बैठक में पाँच अलग-अलग मामलों में एक सम्मान एफ़आईआर का मुद्दा भी उठा था।
दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने राजस्व विभाग से कहा है कि उन 30 मामलों की समीक्षा करें जिनमें नुक़सान और हर्जाना के लिए दी गई मंजूरी में अंतर है। इसके साथ ही उन 50 मामलों की समीक्षा करने को भी कहा गया है जिनको खारिज कर दिया गया है। बता दें कि अब तक 3200 दावों में से क़रीब 900 खारिज किए जा चुके हैं। सरकार ने अब तक 1526 दावों का निस्तारण किया है और क़रीब 19 करोड़ रुपये हर्जाने के रूप में पीड़ितों को दिए हैं। लेकिन हर्जाने के लिए किए गए दावों और हर्जाने के लिए मंजूर की गई रक़म में भारी अंतर की वजह से ही दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने इस मुद्दे को उठाया। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, समिति के सदस्य और मुस्तफ़ाबाद से आप के विधायक हाजी यूनुस ने बैठक में अधिकारियों से कहा, 'सीएम और डेपुटी सीएम के निर्देश के बावजूद कोई काम हुआ ही नहीं...'।
उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा पीड़ितों को राहत किस तरह मिली है और कैसी शिकायतें आ रही हैं इसको लेकर 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इस पर रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के अनुसार, गोकुलपुरी में उसमान अली किराए के मकान में एक रेस्तराँ चलाते हैं। दंगे के दौरान उनके रेस्तराँ को तबाह कर दिया गया था। वह कहते हैं, 'जब मैं एसडीएम कार्यालय गया तो मुझे बताया गया कि मुआवजा मेरे खाते में स्थानांतरित कर दिया गया है। लेकिन मेरे बैंक स्टेटमेंट से पता चला कि मुझे 750 रुपये दिए गए थे।'
दंगा पीड़ित उसमान कहते हैं कि 3 लाख रुपये हर्जाने की माँग की थी, लेकिन मिले 750 रुपये। 24 फ़रवरी को हुई हिंसा के बाद ली गई तसवीरों में उनके रेस्तरां में फर्नीचर, ओवन और अन्य सामान टूटे हुए बिखरे पड़े थे और फर्श लकड़ी, प्लास्टिक और कागज के टुकड़ों से पटे हुए थे।
गामरी गाँव में ज़रार अली पॉल्ट्री शॉप चलाते हैं। हिंसा में उनकी शॉप तबाह कर दी गई थी। उन्होंने थाने में दी गई शिकायत में दो एलुमिनियम गेट, एक एलुमिनियम बोर्ड, गीजर, कीड़े मारने की मशीन, एक गैस सिलेंडर, वाश बेसिन, दो तराजू, 40 मुर्गियाँ, 45 हज़ार नक़द और बच्चों के गुल्लक से 10 हज़ार रुपये का नुक़सान बताया था। सरकार से उन्हें 8500 रुपये दिए गए। ज़रार अली के पास में रेस्तरां चलाने वाले आसिफ़ अली कहते हैं कि 3 लाख से अधिक का सामान लूट लिया गया, उनके रेस्तराँ को जला दिया गया, 75 हज़ार की स्कूटी जला दी गई। वह कहते हैं कि लेकिन सरकार ने उन्हें 70 हज़ार रुपये का मुआवजा दिया।
रिपोर्ट के अनुसार, 25 फ़रवरी को मोहसिन अली नाम के व्यक्ति का जला हुआ शव खजूरी खास पुलिस थाने से कुछ दूरी पर मिला था। तब उनकी पत्नी गर्भवती थीं। उन्होंने मंगलवार को ही एक बच्चे को जन्म दिया है और वह आईसीयू में है। मोहसिन के बड़े भाई शहनवाज़ कहते हैं, 'हर्जाने की रक़म इसलिए नहीं दी गई क्योंकि मोहसिन का मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं था... इसमें इसलिए देरी हुई क्योंकि लॉकडाउन था। अब हमलोगों ने सभी कागजात जमा कर दिए हैं लेकिन हर्जाना अब तक नहीं मिला है।'
दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने जिन लोगों का मुद्दा उठाया उसमें यमुना विहार क्षेत्र के विनोद जोशी का नाम भी शामिल था जिन्होंने 30 हज़ार रुपये हर्जाना माँगा था। ज़िला प्रशासन की सूची के अनुसार उन्हें 574 रुपये मिले हैं। लेकिन अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, फ़ोन पर बात करने पर जोशी ने बताया कि उन्हें पूरा हर्जाना मिल गया है।
सरकार ने वादा किया था कि जिस व्यावसायिक प्रतिष्ठान का बीमा नहीं हो उसके नुक़सान पर 5 लाख रुपये, पूरी तरह लूटपाट की स्थिति में 1 लाख और आँशिक लूटपाट में 50 हज़ार रुपये का मुआवजा दिया जाएगा।
रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी ने समिति को कहा, 'वास्तविकता में 3 लाख रुपये की पूरी लूट का दावा करने वाले व्यक्ति को 1 लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन अगर कोई व्यक्ति कहता है कि उसकी दुकान में आंशिक रूप से 6 लाख रुपये लूटे गए थे, तो उसे केवल 50,000 रुपये मिलेंगे। इस तरह से नीति का मसौदा तैयार किया गया है।'
बता दें कि दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने उस बैठक में ही पाँच एफ़आईआर के एक समान होने के मुद्दे को प्रमुख सचिव (सतर्कता) राजीव वर्मा के संज्ञान में लाया था। अधिकारियों के अनुसार राजीव वर्मा प्रमुख सचिव (गृह) बीएस भल्ला की जगह पर बैठक में शामिल हुए थे। दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने प्रमुख सचिव (सतर्कता) राजीव वर्मा को यह भी निर्देश दिया कि पुलिस आयुक्त से 24 वर्षीय फैज़ान की मौत की जाँच की स्थिति के बारे में पूछें। दंगों के दौरान पुलिसकर्मियों के एक समूह द्वारा फैज़ान और दो अन्य लोगों को कथित रूप से राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत गाने के लिए मजबूर किया गया था और मारपीट की गई थी।
वर्मा ने बैठक में कहा, 'यहाँ उठाए गए मुद्दों को मैं पुलिस कमिश्नर को लिखूँगा, लेकिन हम पुलिस जाँच में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।' उन्होंने यह भी कहा है कि पुलिस विभाग ने राज्य सरकार को लिखा है कि दंगों से संबंधित सभी 754 प्राथमिकी को संवेदनशील बताया गया है।
इस पर समिति के अध्यक्ष और आप के विधायक अमानतुल्ला ख़ान ने वर्मा को निर्देश दिया कि वह पुलिस से पूछें कि किस अधिसूचना के तहत एफ़आईआर को संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ़ निर्देश जारी किए हैं कि एफ़आईआर को छुपाया नहीं जा सकता है।'
अपनी राय बतायें