दिल्ली दंगा चार्जशीट में अब स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव का नाम भी घसीटा गया है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले में दाखिल चार्जशीट में छात्र नेता कवलप्रीत कौर और एडवोकेट डी एस बिंद्रा के साथ योगेन्द्र यादव के नाम का भी ज़िक्र है। हालाँकि ये तीनों ही 17 आरोपियों की सूची में शामिल नहीं हैं।
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 8 जून को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राकेश कुमार रामपुरी के समक्ष चार्जशीट दायर की। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार चार्जशीट में कहा गया है कि ‘(चांद बाग़) प्रदर्शन के आयोजकों के लिंक डीएस बिंद्रा (एआईएमआईएम), कवलप्रीत कौर (एआईएसए), देवांगना कलिता (पिंजड़ा तोड़), सफूरा, योगेन्द्र यादव आदि से जुड़े होने से ये अपने आप हिंसा के पीछे छिपे एजेंडे का संकेत देते हैं।' बता दें कि रतन लाल की हत्या के 17 आरोपी 18 से 50 साल की उम्र के बीच के हैं, जबकि ज़्यादातर चांद बाग़ के रहने वाले हैं, कुछ प्रेम नगर, मुस्तफाबाद और जगतपुरी जैसे पड़ोसी इलाक़ों से भी हैं।
दिल्ली दंगे के मामले में एक के बाद एक चार्जशीट दाखिल किए जा रहे हैं। इनमें जेएनयू, जामिया के छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चुनिंदा कार्रवाई किए जाने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे ही आरोप तब और जोर शोर से लगे जब जम्मू-कश्मीर के निलंबित डीएसपी देवेंद्र सिंह को आतंकवादियों से कथित संबंध के मामले में पुलिस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई और उन्हें जमानत मिल गई।
बहरहाल, दिल्ली दंगा चार्जशीट के अनुसार, 24 फ़रवरी को ‘पूर्वोत्तर दिल्ली में गंभीर सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें 750 से अधिक मामले दर्ज किए गए, 53 लोगों ने अपनी जान गँवाई, जिसमें दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल भी शामिल थे।'
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, चार्जशीट में यादव का नाम चांद बाग़ विरोध स्थल से एक गवाह के बयान में भी आता है: '… यहाँ विरोध शुरू हुआ। बाहर से लोगों को बुलाया जाता था और भानु प्रताप, बिंद्रा, यादव और जेएनयू, जामिया व डीयू के कई छात्र आते थे, जो सरकार और एनआरसी के ख़िलाफ़ बोलते थे और कहते थे कि मुसलमानों को चिंतित होना चाहिए। यह 50 दिनों के लिए जनवरी से 24 फ़रवरी तक जारी रहा।'
आरोपियों में से एक की भूमिका और उसके ख़िलाफ़ सबूत का उल्लेख करने वाली धारा के तहत आरोप पत्र में कहा गया है, 'वह कवलप्रीत कौर, देवांगना कालिता, सफूरा, योगेन्द्र यादव आदि से परिचित है, जो विरोध स्थल पर जाते रहते थे और नफ़रत फैलाने वाले भाषण देते और जनता को हिंसक होने के लिए उकसाते थे।'
इन आरोपों पर योगेन्द्र यादव ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया, 'मैंने जो कुछ भी बोला वह सब पब्लिक डोमेन में है। कृपया एक उदाहरण बताएँ जहाँ मैंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी तरह की हिंसा को उकसाया है।' कवलप्रीत कौर ने कहा कि वह 'चार्जशीट को देखेंगी और फिर टिप्पणी करेंगी'।
चार्जशीट में अधिवक्ता बिंद्रा का 'षड्यंत्रकारियों में से एक' के रूप में ज़िक्र किया गया है। इसके अनुसार, 'यह पता चला है कि उन्होंने पहली बार चांद बाग़ में एक सामुदायिक रसोई लंगर लगा रखा था। उसमें कुछ स्थानीय निवासी भी शामिल थे जिन्हें हम स्थानीय आयोजक कह सकते हैं...।'
बिंद्रा ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया, 'मैं पाँच साल से लंगर का आयोजन कर रहा हूँ, और मुझे चांद बाग़ के लिए एक अनुरोध मिला था… मुझे तारीख़ याद नहीं है। मैं केवल लंगर का आयोजन करता हूँ, मैं हिंसा के लिए कैसे ज़िम्मेदार हूँ?'
बता दें कि आरोप पत्र में कहा गया है- 'रतन लाल, एसीपी (गोकलपुरी) और डीसीपी (शाहदरा) और कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ, चांद बाग़ में विरोध स्थल के सबसे क़रीब मौजूद थे। जाहिर तौर पर भीड़ द्वारा हमले के दौरान वह वजीराबाद रोड पर पाँच फ़ीट ऊँचे डिवाइडर पर नहीं कूद सकते थे, और गोली लगने और पत्थरों से मारे जाने के बाद वह वहीं गिर गये।'
चार्जशीट में कहा गया है कि रतन लाल को रॉड और लाठियों से पीटा गया था। इसके अनुसार, 'पोस्टमार्टम से पता चला कि बंदूक की गोली की वजह से उनकी मौत हुई थी। कुल मिलाकर, उनके शरीर पर 21 चोटें लगी थीं।'
पुलिस के अनुसार, चांद बाग़ का विरोध प्रदर्शन जनवरी के मध्य से चल रहा था।
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