दिल्ली-एनसीआर में हर तरफ़ धुआँ-धुआँ सा है। धुआँ क्या, पूरा का पूरा ज़हर सा है। दीपावली के एक दिन बाद जैसी स्थिति थी उसके अगले दिन यह और ख़राब हो गई। इस स्तर तक ख़राब कि यह जानलेवा हो गई है। लेकिन इसकी फ़िक्र किसे! न तो पटाखे जलने बंद हुए और न ही पराली। और सरकारी प्रयास तो पूरे 'चुनावी मोड' में हैं!
इस मौसम में पहली बार वायु प्रदूषण का स्तर सीवियर यानी गंभीर हो गया है। दिल्ली में बुधवार को शाम पाँच बजे हवा की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) औसत रूप से 419 तक पहुँच गया। उससे एक दिन पहले यानी मंगलवार को यह 400 तक था। 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं।
दिल्ली से सटे शहरों में भी हवा की गुणवत्ता गंभीर बनी रही। ग़ाज़ियाबाद में सबसे ज़्यादा स्थिति ख़राब रही और शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स औसत रूप से 478 तक पहुँच गया। हालाँकि गुरुग्राम में स्थिति गंभीर नहीं थी।
प्रदूषण इस स्तर तक कैसे बढ़ गया? क्या सिर्फ़ दीपावली के छोड़े जाने वाले पटाखे ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं? इसमें कोई संदेह नहीं है कि पटाखा छोड़ा जाना सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इसके साथ ही दूसरे कारण भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी वेदर फ़ोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफ़एआर) के अनुसार दिल्ली में 44 फ़ीसदी प्रदूषण आसपास के राज्यों में पराली जलाने के कारण है। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली में एक तिहाई प्रदूषण पराली जलाने के कारण है।
सड़क पर उड़ने वाले धूल-कण 'पीएम 2.5' और 'पीएम 10' प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार हैं। पूर्वी दिल्ली में इस तरह की ज़्यादा दिक्कत है। कूड़े-कचरे को जलाना भी एक बड़ी समस्या है। निर्माण कार्य के दौरान भी धूल कण ख़ूब उड़ते हैं। इसी कारण निर्माण कार्यों पर पाबंदी है। प्रशासन ने इस पाबंदी को चार घंटे बढ़ा दिया है और शाम को छह बेज से सुबह दस बजे तक निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है। यह दो नवंबर तक जारी रहेगा। लेकिन दिक्कत यह है कि ऐसे उपाय तब किए जाते हैं जब समस्या काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती है।
लेकिन सरकार का प्रदूषण पर नियंत्रण पाने पर प्रतिक्रिया भी अजीब रही। दिल्ली सरकार पहले से ही यह दावे करती रही कि सरकार द्वारा क़दम उठाए जाने से प्रदूषण का स्तर कम हुआ है। हालाँकि दीपावली से पहले हवा की गुणवत्ता में सुधार दिखी थी। लेकिन बीजेपी की ओर से कहा गया कि ईस्टर्न व वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे के निर्माण से प्रदूषण में कमी आई है। यानी प्रदूषण कम हुआ तो इसकी वाहवाही लूटने का प्रयास किया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी ऑड-ईवन योजना को भी प्रदूषण के नियंत्रण के लिए बड़ी उपलब्धि बताते रहे थे।
ऑड-ईवन
लेकिन ऑड-ईवन योजना पर केजरीवाल का रुख भी अजीब है। केजरीवाल ने सितंबर महीने में ही ऑड-ईवन लागू करने की तारीखें 4 से 15 नवंबर तक तय कर दीं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल को यह पहले से पता था कि प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर किस तारीख़ तक पहुँच जाएगा? और यदि ऐसा है तो प्रदूषण तय तारीख़ से पहले ही क्यों ख़तरनाक स्तर तक पहुँच गया?
एक सवाल यह भी है कि यदि फ़िलहाल प्रदूषण का स्तर गंभीर स्थिति में पहुँच गया है तो क्या ऑड-ईवन को अभी नहीं लागू किया जा सकता है?
प्रदूषण से जैसी गंभीर स्थिति बनी है उससे साँस लेना भी दूभर हो रहा है। वैसे तो दिल्ली में साफ़ हवा साल भर नहीं मिल पाती है, लेकिन दीपावली के बाद स्थिति काफ़ी ख़राब है। पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड जैसे प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक होते हैं। ये नाक या गले से फेफड़ों में जा सकते हैं और इससे अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। डॉक्टर कहते हैं कि इससे दमा, कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं। कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से हर रोज़ कम से कम 80 मौतें होती हैं। क्या यह चेतने के लिए काफ़ी नहीं है।
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