दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। हालात इस कदर ख़राब हैं कि दिल्ली, नोएडा के बाद गुरुग्राम और फरीदाबाद में भी स्कूलों को बंद करना पड़ा है। दिल्ली में प्रदूषण की वजह से बनी कोहरे की चादर का असर विमान सेवाओं पर भी पड़ा है। प्रदूषण कम करने को लेकर केंद्र और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के अपने-अपने दावे हैं लेकिन सवाल यह है कि फिर भी राजधानी की हवा जानलेवा क्यों होती जा रही है। दिल्ली सरकार का कहना है कि पंजाब, हरियाणा में पराली जलाये जाने के कारण दिल्ली की आबो-हवा में जहर घुल रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, राजधानी में रविवार शाम को एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 494 था और यह पिछले तीन साल में सबसे ज़्यादा था। इससे पहले 6 नवंबर, 2016 को यह 497 था।
दिल्ली-एनसीआर में लगातार ख़राब हो रही हवा को देखते हुए ही राजधानी में ऑड-ईवन फ़ॉर्मूले को लागू किया गया है। यह फ़ॉर्मूला 15 नवंबर तक जारी रहेगा। प्रदूषण के कारण दिल्ली में मेडिकल इमरजेंसी घोषित करनी पड़ी है। यदि हवा की गुणवत्ता 48 घंटे से अधिक समय तक ‘बेहद गंभीर’ या आपात श्रेणी में बनी रहती है तो ऑड-ईवन फ़ॉर्मूले को लागू करना, शहर में ट्रकों के प्रवेश पर रोक, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध और स्कूलों को बंद करने जैसे आपातकालीन कदम उठाये जाते हैं।
प्रदूषण से लगातार बिगड़ रही दिल्ली-एनसीआर की स्थिति पर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने रविवार शाम को दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की थी। प्रधान सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिये थे कि वे हालात पर नज़र बनाये रखें।
दिल्ली एयरपोर्ट की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण बनी कोहरे की चादर की वजह से दृश्यता का स्तर काफ़ी कम हो गया है और इस वजह से 37 फ़्लाइट्स का रुट डायवर्ट करना पड़ा है।
अस्पतालों में बढ़े मरीज
रविवार को नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में भी प्रदूषण का स्तर 400 से 709 के बीच रिकॉर्ड किया गया। ख़बरों के मुताबिक़, डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर मरीज गले में जलन, आँखों से पानी आना, साँस लेने में दिक्कत, अस्थमा से परेशान हैं। डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली में एक्यूआई के ख़राब होने के कारण मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है और इससे बच्चे और वृद्ध सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।
201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। एक्यूआई 500 से ज़्यादा होने पर इसे बेहद गंभीर माना जाता है।
दिल्ली और इससे सटे नोएडा, गुड़गाँव, ग़ाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में हवा पहले से ही काफ़ी ख़राब थी लेकिन दीपावली में पटाखों के प्रदूषण के बाद यह बदतर हो गई है। छोटी दीपावली वाले दिन यानी शनिवार को दिल्ली का एक्यूआई 300 से ज़्यादा था। लेकिन दीपावली की रात को यह बेहद ख़राब हो गया और 999 तक पहुंच गया था। इन इलाक़ों में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, आरके पुरम, पटपड़गंज, सत्यवती कॉलेज आदि थे। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है।
दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कई बार तलब किया है और कहा है कि इस दिशा में ठोस क़दम उठाये जायें, लेकिन साल दर साल हालात और ख़राब होते जा रहे हैं।
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट यानी ईपीआईसी ने वायु प्रदूषण से उम्र पर पड़ने वाले असर को देखने के लिए एयर क्वालिटी लाइफ़ इंडेक्स यानी एक्यूएलआई तैयार किया है। इस एक्यूएलआई से पता चलता है कि सिंधू-गंगा समतल क्षेत्र यानी मोटे तौर पर उत्तर भारत में 1998 से 2016 तक प्रदूषण में 72% की वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में भारत की क़रीब 40% आबादी रहती है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 1998 में ख़राब हवा से लोगों के जीवन जीने की औसत उम्र 3.7 वर्ष कम हो गई होगी।
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