अपने ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को लेकर मोदी सरकार को दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने इस संबंध में दायर एक याचिका को सोमवार को ख़ारिज कर दिया। अन्या मल्होत्रा और सोहैल हाशमी की ओर से दायर याचिका में अनुरोध किया गया था कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के काम को रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें काम कर रहे कर्मचारियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने का ख़तरा है।
अदालत ने सख़्त रूख़ दिखाते हुए याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी ठोक दिया।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत एक नए संसद भवन के साथ ही प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के आवास के साथ कई मंत्रालयों के कार्यालय और केंद्रीय सचिवालय भी बनाया जाएगा। यह प्रोजेक्ट 20 हज़ार करोड़ का है।
हाई कोर्ट ने कहा, कोरोना संक्रमण के बीच इस वजह से कि मजदूर कार्यस्थल (साइट) पर हैं, इस प्रोजेक्ट को रोके जाने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।
अदालत ने कहा कि इस प्रोजेक्ट का काम शपूरजी, पलोनजी ग्रुप को दिया गया है और इसका काम नवंबर तक पूरा किया जाना है, ऐसे में इसे जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।
अदालत ने कहा, “यह राष्ट्रीय महत्व का ज़रूरी प्रोजेक्ट है। यह बेहद अहम है।”
अदालत ने कहा, “जब से कर्मचारी कार्यस्थल पर हैं, वहां कोरोना प्रोटोकॉल के नियमों का पालन किया जा रहा है, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि अदालत अनुच्छेद 226 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करके इस प्रोजेक्ट को रोक दे। अदालत ने कहा कि यह याचिका ‘मोटिवेटेड’ है।
मोदी सरकार अड़ी
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर केंद्र सरकार की ख़ासी आलोचना हो रही है क्योंकि ऑक्सीजन, बेड्स, दवाओं की कमी के कारण लाखों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। आलोचकों का तर्क है कि इस पैसे को अस्पतालों और दवाइयों के इंतजाम में लगाया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर का ख़तरा बना हुआ है। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने इस काम को चालू रखने की पैरवी अदालतों में दमदार ढंग से की।
पिछले महीने भी इस संबंध में दायर याचिका को लेकर केंद्र सरकार ने अदालत से कहा था कि ऐसी याचिका क़ानून का दुरुपयोग है और इस प्रोजेक्ट को रोकने की कोशिश है। तब केंद्र ने अदालत से गुहार लगाई थी कि वह इस याचिका को खारिज कर दे और याचिकाकर्ता पर जुर्माना भी लगाए।
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