दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली दंगे मामले में एक्टिविस्ट उमर खालिद की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। अदालत ने उस याचिका की योग्यता को लेकर सवाल उठाए।
खालिद ने कड़कड़डूमा जिला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के आदेश के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का रुख किया था। कड़कड़डूमा कोर्ट ने खालिद की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति भटनागर द्वारा लिखे गए फ़ैसले ने निचली अदालत के फ़ैसले को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि खालिद के ख़िलाफ़ आरोप 'प्रथम दृष्टया सच' हैं।
इस मामले की न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें इसमें कोई योग्यता नहीं मिली। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 52 पेज के फ़ैसले में हाई कोर्ट ने माना है कि दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर विघटनकारी चक्का जाम और पूर्व नियोजित विरोध करने के लिए एक 'पूर्व नियोजित साजिश' मालूम पड़ता है। इस टकरावपूर्ण चक्का जाम, हिंसा को भड़काने और दंगों में बदलने के लिए खास तारीख़ें तय की गई थीं।
इसमें कहा गया है कि योजना बनाई गई, यह विरोध लोकतंत्र में सामान्य विरोध नहीं था, बल्कि एक और अधिक विनाशकारी और हानिकारक था, जो बेहद गंभीर परिणामों की ओर था।
इससे पहले अप्रैल महीने में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने उमर खालिद को लेकर सख्त टिप्पणी की थी। इसने कहा था कि उमर खालिद के द्वारा फरवरी, 2020 में अमरावती में दिया गया भाषण नफरत से भरा हुआ था। तब भाषण को सुनने के बाद अदालत ने उमर के वकील से कहा था,
“
यह आक्रामक है, बेहूदा है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि यह लोगों को उकसाता है। जैसे- उमर खालिद ने कहा था आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, क्या आपको नहीं लगता कि यह आपत्तिजनक है।
दिल्ली हाई कोर्ट, 22 अप्रैल 2022 को
बता दें कि इससे पहले सत्र न्यायाधीश ने भी कड़ी टिप्पणी की थी और जमानत देने से इनकार कर दिया था। आख़िरी बार इसने इसी साल मार्च में याचिका को खारिज किया था। यह चौथी बार था। कड़कड़डूमा कोर्ट में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत 8 महीने से जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी और पहले भी तीन बार जमानत देने से इनकार कर चुकी थी।
अपनी राय बतायें