विवादास्पद मुद्दों पर अभियुक्त का नाम आते ही या उसकी गिरफ़्तारी होते ही टीवी जिस तरह से बेबुनियाद खबरें चलाता है और बेसिरपैर की बहस करता है, उस पर दिल्ली की एक अदालत ने बेहद अहम फ़ैसला सुनाते हुए मीडिया की तीखी आलोचना की है। यह बात उसने दिल्ली दंगों में गिरफ़्तार उमर ख़ालिद के मसले पर कही है।
बेसिरपैर की टीवी बहस
दिल्ली की एक अदालत में मुख्य मेट्रोपोलिट मजिस्ट्रेट ने मीडिया को फटकार लगाते हुये कहा है कि दोषी साबित होने तक अभियुक्त के निर्दोष माने जाने के अधिकार को खत्म नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि पुलिस के सामने दिए गए अभियुक्त के बयान को सबूत नहीं माना जाना चाहिए।
पूर्वग्रह से ग्रस्त कवरेज
पिछले दिनों ये देखने में आया है कि कुछ टीवी चैनेल पुलिस को दिये बयान के आधार पर अभियुक्त को सीधे अपराधी ठहरा देते हैं, भले ही बाद में अभियुक्त बाइज़्ज़त बरी हो जाये। हाल में इस तरह की कवरेज वैचारिक आधार और पूर्वग्रह से प्रेरित होकर हो रही है।
उमर ख़ालिद मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने मीडिया पर तल्ख टिप्पणी की हे कि उसे "आत्म नियंत्रण से काम करना चाहिए क्योंकि नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका आत्म नियंत्रण ही है।"
उमर खालिद का मामला
कोर्ट ये दोनों ही बातें उमर ख़ालिद मामले की सुनवाई करते हुए कही हैं।
अदालत ने मीडिया पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि उसे "आत्म नियंत्रण से काम करना चाहिए क्योंकि नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका आत्म नियंत्रण ही है।"
क्या कहा अदालत ने?
दिल्ली दंगों के अभियुक्त उमर ख़ालिद के मामले में मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि उन्होंने दंगों में अपनी भूमिका होने की बात कबूल कर ली है और इस आधार पर उसे अपराधी करार दे दिया गया। उमर ख़ालिद ने अदालत से अपील की थी कि ऐसी कवरेज करके टीवी उसकी छवि को ख़राब कर रहा है और इस निष्पक्ष न्याय पर असर पड़ सकता है।
मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहा, "प्रेस और समाचार माध्यम को लोकतांत्रिक समाज का चौथा खंभा माना जाता है। इसे समाज की रक्षा करने वालों में माना जाता है।"
उन्होंने कहा, "लेकिन यदि प्रेस और समाचार माध्यम अपना काम सावधानी से करने में कामयाब नहीं होते हैं तो इससे ख़तरा पैदा होता है। इनमें से एक ख़तरा मीडिया ट्रायल का है।"
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा,
“
"आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद बात है कि जब तक अपराध साबित नहीं होता तब तक अभियुक्त निर्दोष है। इसे शुरू में ही मीडिया ट्रायल कर नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।"
मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली की एक अदालत
अदालत ने कहा कि समाचार में यह कहा गया कि उमर ख़ालिद ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, लेकिन इसके साथ यह नहीं बताया कि यदि ऐसा हुआ भी है तो उसे सबूत नहीं माना जा सकता है।
मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि मीडिया की इस तरह की रिपोर्टिंग से संविधान में दिए गए अधिकार का उल्लंघन होता है।
अदालत ने यह भी कहा कि एक समाचार की शुरुआत ही होती है, 'कट्टरपंथी इसलामवादी और हिन्दू विरोध दंगों के अभियुक्त उमर खालिद' से, जबकि इस दंगे से समाज का हर समुदाय प्रभावित हुआ था।
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उमर पर हमला
इसके पहले उमर ख़ालिद ने एक याचिका में कहा था कि मीडिया का एक हिस्सा जानबूझ कर उनके ख़िलाफ़ पूर्वग्रह से ग्रसित विचार फैला रहा है और ऐसा जानबूझ कर किया जा रहा है।
उन्होंन यह आरोप भी लगाया था कि उनके मामले की चार्जशीट को जानबूझ कर लीक कर दिया गया था।
याद दिला दें कि उमर खालिद के अलावा ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां मीडिया ने ग़ैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से रिपोर्टिंग की है और अभियुक्त को शुरू में दोषी बता दिया है। उमर ख़ालिद जवाहर लाल नेहरू में पढ़ाई कर रहे हैं। उनपर यह आरोप भी लगा था कि उन्होंने कुछ कश्मीरी छात्रों के साथ 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' के नारे लगाये थे। उमर के ख़िलाफ़ एक तरफ़ा टीवी कवरेज से प्रभावित एक लड़के ने दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के बाहर जान लेवा हमला भी किया गया था।
रीया चक्रवर्ती का मीडिया ट्रायल
सुशांति सिंह राजपूत की महिला मित्र रीया चक्रवर्ती के मामले में ऐसा ही हुआ जब मीडिया के एक हिस्से में उन्हें उस फ़िल्म अभिनेता की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया। मीडिया ने यह भी कहा कि रीया ने सुशांति सिंह को नशीली दवाएं दी थीं और नशीली दवाओं के सिंडिकेट से जुड़ी हुई थीं। नारोकोटिक्स ब्यूरो की लंबी पूछताछ और छानबीन में भी यह साबित नहीं किया जा सका।इसी तरह फ़िल्म निर्देशक करण जौहर के घर पर बने एक विडियो को दिखा कर फिल्म इंडस्ट्री पर यह आरोप लगाया गया था कि ये सब नशेड़ी हैं।
इस विडियो में करण जौहर, शाहिद कपूर, अर्जुन कपूर, विकी कौशल को साफ देखा जा सकता था। करण जौहर के बार बार सफाई देने के बावजूद इन लोगों पर कीचड़ उछाले गये और विडियो के आधार पर कहा गया कि ये ड्रग पार्टी थी। रिपब्लिक टीवी और टाइम्स पर इन विडियो के आधार पर गंभीर आरोप लगाये गये और एकतरफ़ा डिबेट की गयी।
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इससे नाराज़ मुंबई के 34 फ़िल्म निर्माताओं ने अदालत में अर्जी देकर कहा था कि इन दोनों समाचार चैंनलों ने कई फ़िल्मी हस्तियों के ख़िलाफ़ बेबुनियाद, ग़ैर-जिम्मेदाराना और अवमाननापूर्ण सामग्री चलायी है और उनका मीडिया ट्रायल किया है। याचिका दायर करने वालों में कई यूनियनें और प्रोडक्शन हाउस भी शामिल हैं।
इस याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने टेलीविज़न चैनल 'रिपब्लिक टीवी' और 'टाइम्स नाउ' को निर्देश दिया था कि पूरे बॉलीवुड को आरोपों के कठघरे में खड़े करने वाले ग़ैर-ज़िम्मेदाराना, अपमानजनक या मानहानि करने वाली सामग्री न चलाएं। अदालत ने इन टीवी चैनलों से यह भी कहा है कि वे बॉलीवुड की हस्तियों का मीडिया ट्रायल न करें।
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इसी तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार के बारे में भी यह रिपोर्ट की गई थी कि उन्होंने 'भारत तेरे टुकड़े होंगे', के नारे लगाए थे। उनके 'हमें चाहिए आज़ादी' के नारे को एक टीवी चैनल ने एडिट कर ग़लत ढंग से पेश किया था।
नतीजा यह हुआ था कि कन्हैया को गिरफ़्तार किया गया और अदालत में उन पर हमला हुआ था। कन्हैया कुमार पर ये आरोप अब तक साबित नहीं हुए हैं, उन पर तो मुक़दमा की सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है।
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