दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर प्रतिक्रिया जताते हुए नाराज़गी भरे लहज़े में कहा कि मैं तो एक चपरासी का भी तबादला नहीं कर सकता। उन्होंने पूछा कि मुख्यमंत्री के पास अगर एक चपरासी तक का तबादला करने की ताक़त नहीं है तो वह कैसे काम करेगा? केजरीवाल ने कहा कि यह फ़ैसला अलोकतांत्रिक और दिल्ली की जनता के ख़िलाफ़ है।
केजरीवाल की इस पीड़ा के पीछे लंबे समय से केंद्र सरकार के साथ चल रही उनकी लड़ाई है। केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त लेफ़्टीनेंट गवर्नर से उनकी अदावत पुरानी है। उन्होंने इसे दिल्ली की प्रतिष्ठा से जोड़ कर लंबा अभियान चलाया। उनके और लेफ़्टीनेंट गवर्नर के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष में पलड़ा कभी उनकी ओर झुका तो कभी केंद्र सरकार की ओर।
गुरुवार के फ़ैसले से कुछ चीजें दिल्ली सरकार के पास रहीं तो कुछ दूसरी चीजें केंद्र के हवाले कर दी गईं। इसे केजरीवाल के लिए झटका कहा जा सकता है। इससे पहले सर्वोच्च अदालत की पाँच सदस्यों वाले खंडपीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के साल 2016 में दिए गए उस फ़ैसले को उलट दिया था, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, लिहाज़ा तमाम अधिकार लेफ़्टीनेंट गवर्नर के पास ही रहेंगे। इस संविधान खंडपीठ के प्रमुख उस समय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा थे।
अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, उस समय यहाँ लेफ़्टीनेंट गवर्नर नजीब जंग थे। जंग के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री ने लंबी जंग लड़ी थी। जंग हटे और अनिल बैजल ने उनकी जगह ली तो लगा कि अब मामला ठीक हो जाएगा। पर कुछ दिन बाद ही फिर टकराव शुरू हो गया था।
गुरुवार के फ़ैसले से मामला सुलझने के बजाय और उलझ गया है। सेवाओं के मामले को अब तीन सदस्यों वाले खंडपीठ को सौंपा जाएगा। दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा ही है कि सरकार वहाँ लड़ेगी।
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