यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित पूरे उत्तर भारत में जिस तरह से चुनाव में वोट देने के लिए मुख्य तौर पर जाति का मुद्दा छाया रहता है, क्या उस तरह से जाति का मुद्दा दिल्ली में है? यदि ऐसा नहीं है तो फिर आख़िर किस आधार पर आप और बीजेपी के बीच वोटर बँटे हुए हैं? क्या वोटर सामाजिक-आर्थिक आधार पर बँटे हुए हैं और इसी आधार पर राजनीतिक दलों को वोट देते हैं?
इसको समझने के लिए राजीतिक दलों के घोषणा-पत्र, पिछले चुनावों में वोटिंग का पैटर्न और राजनीतिक दलों द्वारा उतारे जाने वाले उम्मीदवारों को देखा जा सकता है। वैसे, इन मामलों में यूपी-बिहार जैसे उत्तर भारत के राज्यों में तो मतदाता साफ़ तौर पर जाति आधार पर बँटे दिख जाते हैं, लेकिन दिल्ली के मामले में ऐसा नहीं दिखता। दिल्ली में वोटर जाति से ज़्यादा सामाजिक आर्थिक आधार पर बँटे दिखते हैं।
दिल्ली में पिछले कुछ चुनावों से तो आम आदमी पार्टी ही चुनाव का एजेंडा सेट करती रही है। इसके एजेंडे का असर कैसा है, यह इससे ही समझा जा सकता है कि इस चुनाव में आप, बीजेपी और कांग्रेस के घोषणा पत्रों में ज़्यादा अंतर नहीं रह गया है। आम आदमी पार्टी ने मुफ़्त बिजली व पानी, मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य योजनाओं को शुरू किया है तो बीजेपी लगतार विज्ञापन और हर माध्यमों से यह कहने में जुटी है कि वह इन योजनाओं को जारी रखेगी। कांग्रेस ने भी कुछ ऐसे ही वादे किए हैं। महिलाओं के लिए नकद राशि की योजना के वादों में भी ज़्यादा अंतर नहीं है।
चुनावी घोषणाएँ भले ही एक जैसी हैं, लेकिन वोटों का विभाजन सामाजिक-आर्थिक आधार पर है। यानी मतदाताओं के वोट सामाजिक-आर्थिक वर्ग के आधार पर पड़ते हैं, न कि उनकी जाति के आधार पर। जाति के आधार पर आमतौर पर कई हिंदी भाषी राज्यों में वोट पड़ते हैं। वोटिंग पैटर्न, चुनावी सर्वेक्षणों और मतदाताओं से बातचीत में पता चलता है कि आप को अपनी सामाज कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों का समर्थन प्राप्त है। हालाँकि, कुछ ट्रेंड दिखाते हैं कि उच्च मध्यम वर्ग उससे धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के निर्वाचन क्षेत्रों की भीड़भाड़ वाली गलियों से लेकर मध्य दिल्ली की सरकारी कॉलोनियों और दक्षिण-पश्चिम दिल्ली निर्वाचन क्षेत्रों की अनधिकृत कॉलोनियों तक में वोटों का ऐसा ही विभाजन दिखता है।
आम तौर पर निम्न मध्यम वर्ग के मतदाता आप सरकार की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा पहलों की खुलकर तारीफ़ करते हैं, जबकि उच्च मध्यम वर्ग के वोटर ऐसा नहीं करते हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विपरीत, दिल्ली में चुनाव जाति-केंद्रित नहीं होते हैं। हालाँकि, कुछ क्षेत्रों में पार्टियाँ टिकट बाँटते समय जाति को ध्यान में रखती हैं, खासकर जाट और गुज्जर बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में। लेकिन आप की नयी राजनीति के साथ दिल्ली की राजनीति अब सामाजिक-आर्थिक वर्ग पर केंद्रित हो गई है।
दिल्ली के मतदाताओं से बात करने पर सामाजिक-आर्थिक आधार पर बँटे होने की बात साफ़ होती है। मूल रूप से बिहार के रहने वाले प्रमोद दक्षिण पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ गांव के मुख्य बाजार में एक छोटी सी पान की दुकान चलाते हैं। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार प्रमोद कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निजी मित्र हैं और उन्होंने सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक की है। लेकिन उनसे दिल्ली के लिए उनकी वोटिंग प्राथमिकता के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं कि वे आम आदमी पार्टी सरकार की उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, जिसने उनके तीन बच्चों के लिए अच्छे स्कूल सुनिश्चित किए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार एक शोरूम के मालिक बलजीत खस्ताहाल सड़कों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, 'पिछले पांच सालों में कुछ नहीं किया गया। आप सरकार ने केवल अपने पहले कार्यकाल में काम किया।'
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार सीमापुरी में प्रोविजन स्टोर चलाने वाले प्रकाश कहते हैं, 'मेरे बच्चे यहाँ एक अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। मैं और मेरी पत्नी नियमित पैरेंट-टीचर मीटिंग के लिए स्कूल जाते हैं और शिक्षक हाल ही में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए विदेश गए हैं। कम से कम कोई तो हमें देखता है और हमारी समस्याओं को पहचानता है।'
रिपोर्ट के अनुसार शाहदरा की निवासी जाहिदा के लिए आप की स्वास्थ्य सेवा शानदार रही है। अनवर कहते हैं, 'उसे मोहल्ला क्लीनिक के बारे में बताओ। हमें जीटीबी अस्पताल नहीं जाना पड़ता। स्थानीय डॉक्टर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कैंसर का भी निदान किया।' हालांकि, निवासियों के अनुसार सड़कों की स्थिति बहुत खराब है। बाबरपुर के निवासी मोहन यादव कहते हैं कि कॉलोनियों के अंदर कोई काम नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि वह एक कट्टर आप समर्थक हैं।
नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के मंदिर मार्ग क्षेत्र में सरकारी कर्मचारियों में साफ़ असंतोष है, जो दक्षिणी दिल्ली की उच्च मध्यम वर्गीय कॉलोनियों में और भी बढ़ जाता है। मुनिरका में, निवासियों का कहना है कि नगर निगम पर नियंत्रण पाने के बाद आप ने बहुत काम नहीं किया है। उन्होंने कूड़े के ढेर, आवारा पशु और गड्ढों वाली सड़कों को प्रमुख मुद्दे बताया।
सामाजिक-आर्थिक आधार पर विभाजन दिल्ली के वोटिंग पैटर्न में भी देखा जा सकता है। वोटर लोकसभा चुनावों में रणनीतिपूर्वक भाजपा को वोट देते हैं जबकि छह महीने बाद विधानसभा चुनावों में आप के पक्ष में भारी मतदान करते हैं।
मई 2014 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा का वोट शेयर 46.63% और आप का 33.08% था। लेकिन छह महीने बाद, 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में, भाजपा को 32.19% वोट मिले, जबकि आप को 54.34% वोट मिले। 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी यही स्थिति रही थी।
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