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प्रतीकात्मक और फाइल फोटो

2022 से 24 के बीच 55 कंपनियों ने 7.5 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा चंदा राजनैतिक दलों को दिया 

2022-24 के बीच 55 कंपनियों ने अपने शुद्ध मुनाफे के अधिकतम 7.5 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा चंदा या दान राजनैतिक दलों को दिया है। 

इनमें से 2023-24 में पांच और 2022-23 में आठ कंपनियां ऐसी भी हैं जिनका शुद्ध मुनाफा शून्य या नकारात्मक था उन्होंने भी मोटा चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनैतिक दलों को दिया है। इन कंपनियों ने तो 7.5 प्रतिशत की सीमा से ज्यादा चंदा भी दिया है।  

आंकड़े बताते हैं कि जिन कंपनियों का शुद्ध लाभ शून्य था, यानी वे घाटे में चल रही थी वे भी राजनैतिक दलों को करोड़ों रुपये चंदे दे रही थी। इनके द्वारा दिये गये चंदे की बड़ी राशि भाजपा को मिली है। 

द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि चुनावी बांड या इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी के फैसले ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 (1) में निहित एक प्रावधान को हटाने पर रोक लगा दी थी, जो राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदा देने को "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन" के रूप में सक्षम बनाता था। 

इस प्रावधान ने कॉर्पोरेट कंपनियों से मिलने वाले दान को पिछले तीन वित्तीय वर्षों में दानदाता कंपनियों के औसत शुद्ध लाभ के 7.5 प्रतिशत की सीमा तक सीमित कर दिया था। लेकिन वित्त अधिनियम, 2017 ने इस प्रावधान को हटा दिया था।

यह रिपोर्ट कहती है कि चुनावी बॉन्ड के डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि 55 कंपनियों ने 2022-23 और 2023-24 में 7.5 प्रतिशत की इस सीमा से अधिक दान किया था। 

वहीं रद्द की गई 7.5 प्रतिशत सीमा से ऊपर दान की गई कुल राशि 1,377.9 करोड़ रुपये थी, जो उनके कुल दान 1,993 करोड़ रुपये का 69 प्रतिशत से अधिक थी। इसमें अकेले भाजपा को कुल दान का लगभग 71 प्रतिशत, या 1,414 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। 
यह रिपोर्ट कहती है कि द हिंदू और एक स्वतंत्र शोध टीम द्वारा किया गया विश्लेषण 385 फर्मों में से 221 के लिए बांड डेटा और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वित्तीय जानकारियों पर आधारित था। 

यह रिपोर्ट कहती है कि द हिंदू और एक स्वतंत्र शोध टीम द्वारा किया गया विश्लेषण 385 फर्मों में से 221 के लिए बांड डेटा और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वित्तीय जानकारियों पर आधारित था। 

विशेष रूप से, इन फर्मों के 2019-20 से 2023-24 तक के इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े चंदे के डेटा का मिलान 2016-17 से 2022-23 तक के उनके वित्तीय डेटा से किया गया था। 

द हिंदू की यह रिपोर्ट कहती है कि इनमें से 55 कंपनियों ने अकेले दो वर्षों (2022-23 और 2023-24) में 7.5 प्रतिशत की सीमा से अधिक दान दिया। इस सीमा से ऊपर दान की गई कुल राशि 1,377.9 करोड़ रुपये थी। जो उनके कुल दान  1993 करोड़ रुपये का 69 प्रतिशत से अधिक था।

इसमें अकेले बीजेपी को कुल चंदे का करीब 71 फीसदी (1,414 करोड़ रुपये) मिला। वहीं कांग्रेस को 10 प्रतिशत (199.5 करोड़ रुपये) मिले। जबकि तृणमूल कांग्रेस को 5.6% (113.5 करोड़ रुपये) और बीआरएस को 5.2 प्रतिशत (105 करोड़ रुपये) मिले थे।

33 कंपनियों ने वित्त वर्ष 2023-24 में कुल मिलाकर 1225.7 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दान दिया। इसमें से  933.8 करोड़ रुपये (76.2 प्रतिशत) इन कंपनियों के पिछले तीन साल के औसत शुद्ध लाभ की 7.5 प्रतिशत सीमा से अधिक थे। 
इन 33 कंपनियों से 2023-24 में मिले कुल चंदे 1225.7 करोड़ रुपये में से 829.5 करोड़ रुपये या 67 प्रतिशत भाजपा को मिले हैं। 
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राजनीतिक दलों को चंदे पर 7.5% की सीमा क्या है?

द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182(1) तीन साल से कम पुरानी कंपनी को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों को चंदा देने की अनुमति देती है, बशर्ते कि चंदे की राशि तीन वित्तीय वर्षों के दौरान उस कंपनी के औसत शुद्ध लाभ के 7.5 प्रतिशत से अधिक न हो।
हालांकि, इस प्रावधान को वित्त अधिनियम, 2017 में हटा दिया गया था। भारत के चुनाव आयोग के निदेशक (चुनाव व्यय) ने इस प्रावधान को हटाने पर आपत्ति जताई थी और चेतावनी दी थी कि इससे राजनीतिक दलों को चंदा देने के एकमात्र उद्देश्य के लिए फर्जी कंपनियों की स्थापना की संभावना खुल सकती है।
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क़मर वहीद नक़वी
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