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दिल्ली: फ़ोटोग्राफ़र ने बताई दास्तां, कहा - उपद्रवियों ने पूछा - तुम हिंदू हो या मुसलमान

दिल्ली में हिंसा का मंजर बेहद ख़ौफनाक है। अब तक 10 लोगों की मौत हो चुकी है और 150 से ज़्यादा लोग घायल हो चुके हैं। हिंसा के तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं और इनमें देश की राजधानी में जली हुई गाड़ियां और मरते-घायल लोग दिखाई दे रहे हैं। कई वीडियो में उन्मादी नारे लगाते हुए लोग भी दिखे हैं, जो हिंसा करने पर आमादा दिखते हैं। 

दिल्ली में हो रही हिंसा की कवरेज करने जाफ़राबाद गये अंग्रेजी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के एक फ़ोटोग्राफ़र भी उपद्रवियों के बीच फंस गये। उन्होंने अपनी जो कहानी बताई है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। अख़बार ने अपने फ़ोटोग्राफ़र की पूरी कहानी को छापा है। फ़ोटोग्राफ़र बताते हैं, ‘मैं सोमवार दिन में 12.15 बजे मौजपुर मेट्रो स्टेशन पहुंचा। तभी हिंदू सेना का एक सदस्य मेरे पास आया और मेरे माथे पर तिलक लगाते हुए बोला कि इससे आपका काम आसान होगा। उसने देखा कि मेरे पास कैमरा था और वह समझ गया कि मैं फ़ोटो जर्नलिस्ट हूं। वह तिलक लगाने पर जोर दे रहा था। उसने पूछा - भैया आप भी हिंदू हो, इसमें (तिलक लगाने में) क्या परेशानी है।’ 

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वह आगे बताते हैं, ‘15 मिनट बाद इलाक़े में दो गुटों के बीच पत्थरबाज़ी शुरू हो गई। इस दौरान मोदी-मोदी के नारे भी लगे और मैंने आसमान में काला धुआं उठते देखा। जिस मकान में आग लग रही थी, मैं उस तरफ दौड़ा लेकिन कुछ लोगों ने मुझे पास के शिव मंदिर से पहले रोक लिया। मैंने उन्हें बताया कि मैं फ़ोटो लेने जा रहा हूं तो उन्होंने मुझसे कहा कि मैं वहां नहीं जाऊं।’ 

फ़ोटोग्राफ़र के साथ यहां भी वही हुआ, जो थोड़ी देर पहले हुआ था। यहां खड़े लोगों में से एक शख़्स ने फ़ोटोग्राफ़र से कहा, ‘भाई आप भी तो हिंदू हो? क्यों जा रहे हो? आज हिंदू जाग गया है।’

फ़ोटोग्राफ़र ने आगे बताया है कि वह वहां से थोड़ा किनारे हटे और थोड़ी देर बाद जैसे-तैसे मौक़े पर पहुंच ही गये। वह आगे बताते हैं, ‘जैसे ही मैंने फ़ोटो लेने शुरू किये, बांस के डंडे और रॉड लिये कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। उन्होंने मेरा कैमरा छीनने की कोशिश की लेकिन मेरे साथ मौजूद पत्रकार साक्षी चंद आगे आये और उन लोगों से कहा कि वे मुझे छुने की हिम्मत न करें। तब वे लोग वहां से खिसक लिये।’ 

'पैंट उतारने की दी धमकी' 

फ़ोटोग्राफ़र ने बताया कि लेकिन वे लोग उनका पीछा कर रहे थे और थोड़ी देर बाद इनमें से एक लड़के ने उन्हें टोका और पूछा, ‘भाई तू ज़्यादा उछल रहा है। तू हिंदू है या मुसलमान? उन लोगों ने मेरा धर्म पता करने के लिये मेरी पैंट उतारने की धमकी दी। तब मैंने उनके सामने हाथ जोड़े और कहा कि मैं एक मामूली सा फ़ोटोग्राफ़र हूं। इसके बाद उन्होंने मुझे और धमकियां दीं लेकिन मुझे जाने दिया।’ 

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फ़ोटोग्राफ़र बताते हैं कि वह बहुत ज़्यादा डर गये थे और वहां से निकलना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘मैंने अपनी ऑफ़िस की गाड़ी को खोजने की कोशिश की लेकिन मुझे गाड़ी नहीं मिली। इसके बाद मैं जाफ़राबाद तक थोड़ी दूर तक पैदल ही चला और तभी एक ऑटो रिक्शा वाला मिला और वह मुझे आईटीओ तक ले जाने के लिये तैयार हो गया।’

उन्होंने आगे बताया, लेकिन ऑटो में बैठते ही मुझे लगा कि ऑटो पर लिखा इसके ड्राइवर का नाम मेरे लिये और मुसीबत खड़ी कर सकता है और थोड़ी ही देर बाद चार लोगों ने हमें रोक लिया। उन्होंने हमारे कॉलर पकड़कर ऑटो से बाहर खींच लिया। मैंने उनसे विनती की कि हमें जाने दें और उन्हें बताया कि मैं पत्रकार हूं और ऑटो ड्राइवर निर्दोष है। इस पर उन्होंने हमें जाने दिया।’ 

फ़ोटोग्राफ़र ने कहा है कि जब ड्राइवर ने आईटीओ पर उन्हें उतारा तो वह बुरी तरह कांप रहा था। फ़ोटोग्राफ़र ने अपनी आपबीती के अंत में जो बताया है, वह और भयावह है। ऑटो ड्राइवर के जाने से पहले फ़ोटोग्राफ़र ने उससे कहा, ‘मुझसे जिंदगी में किसी ने भी इतने वहशी ढंग से मेरा धर्म नहीं पूछा था।’

फ़ोटोग्राफ़र की आपबीती पढ़ने के बाद सबसे पहला सवाल पुलिस पर खड़ा होता है। आख़िर हाथों में डंडे-रॉड लिये लोग सड़कों पर गुंडागर्दी कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई रोकने वाला क्यों नहीं है। इसी तरह अपने काम से निकले कई लोग ऐसे उपद्रवियों के बीच फंसे होंगे। आख़िर क्यों पुलिस दंगा फैलाने वालों से सख़्ती से नहीं निपट रही है और इस वजह से लगातार देश की राजधानी का माहौल बिगड़ता जा रहा है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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