इससे पहले मंगलवार को नर्सों की हड़ताल को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने सख़्त रूख दिखाया था। अदालत ने नर्सों की हड़ताल पर 18 जनवरी तक के लिए रोक लगा दी थी और उनसे काम पर लौटने के लिए कहा था। 18 जनवरी को ही मामले में अगली सुनवाई होगी।
एम्स की नर्सिंग यूनियन ने संस्थान के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया को लिखे खत में छठे वेतन आयोग के तहत सैलरी दिए जाने का मुद्दा उठाया था। उनका कहना था कि एम्स प्रशासन और भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार उनकी मांगों की अनदेखी करता रहा। अंत में उन्हें मजबूर होकर हड़ताल पर जाना पड़ा।
स्वास्थ्य मंत्रालय का भी कड़ा रूख़
नर्सों की हड़ताल से परेशान भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सख़्ती दिखाई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एम्स प्रशासन को निर्देश दिया था कि वह अदालत के आदेशों का पालन करवाए।
संकट के बीच डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि महामारी के दौरान नर्सों का हड़ताल पर चले जाना ग़लत है। उन्होंने कहा था कि नर्सिंग यूनियन की सभी 23 मांगों को एम्स प्रशासन और भारत सरकार ने मान लिया है। उन्होंने कहा था कि जहां तक छठे वेतन आयोग के हिसाब से सैलरी देने की मांग है, तो ऐसे वक़्त में इस मांग को उठाना जब देश महामारी से जूझ रहा है, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
गुलेरिया ने कहा था कि यूनियन के साथ उनकी मांगों को लेकर कई बार बैठक हो चुकी है और उन्हें छठे वेतन आयोग की सिफ़ारिशों को लेकर उनकी ग़लत व्याख्या के बारे में बताया जा चुका है। इसके बाद भी सरकार उनकी मांगों पर विचार करने के लिए तैयार है। उन्होंने अपील की थी कि यूनियन हड़ताल को ख़त्म कर दे।
नर्सिंग यूनियन के हड़ताल पर चले जाने के कारण मरीजों को ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
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