प्रदूषण दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लाखों लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है। सरकारें और इसके आला अधिकारी प्रदूषण को कम करने के लिए उठाये गये क़दमों के बारे में दावे करते नहीं थकते। लेकिन वे इसका कोई जवाब नहीं दे पाते कि फिर भी आख़िर क्यों इतनी बड़ी आबादी दमघोटू और जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है।
अपने घर-गाँव को छोड़कर हर साल लाखों लोग रोज़गार की तलाश में दिल्ली-एनसीआर में आते हैं। इतने सालों में उन्होंने कड़ी मेहनत से यहां पर अपनी नौकरी, घर और व्यवसाय खड़ा किया है। लेकिन अब वे मजबूर हैं और स्वीकार करते हैं कि वे इस जगह को छोड़ना चाहते हैं और इसके पीछे सिर्फ़ एक कारण है, वह है प्रदूषण।
दिल्ली-एनसीआर में किये गये एक सर्वे में यह जानकारी सामने आई है कि 40% लोग प्रदूषण के कारण यहां से जाना चाहते हैं जबकि 16% लोग प्रदूषण के कारण हालात ख़राब होने के दौरान यहां से कहीं बाहर घूमने चले जाना चाहते हैं। सर्वे में 17 हज़ार लोगों से बातचीत की गई है। सर्वे में भाग लेने वाले 13% लोग मानते हैं कि लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से निपटने के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि वे इसका सामना करेंगे। www.localcircles.com ने यह सर्वे किया है।
पटाखों के बाद बढ़ा प्रदूषण
दिल्ली और नोएडा, गुड़गाँव, ग़ाज़ियाबाद और फ़रीदाबाद में हवा पहले से ही काफ़ी ख़राब थी लेकिन दीपावली में पटाखों के प्रदूषण के बाद यह बदतर हो गई है। छोटी दीपावली वाले दिन यानी शनिवार को दिल्ली का एक्यूआई 300 से ज़्यादा था। लेकिन दीपावली की रात को यह बेहद ख़राब हो गया और 999 तक पहुंच गया था। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है।201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। एक्यूआई 500 से ज़्यादा होने पर इसे बेहद गंभीर माना जाता है।
दिल्ली में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी ने केंद्र और दिल्ली सरकार को कई बार तलब किया है और कहा है कि इस दिशा में ठोस क़दम उठाये जायें, लेकिन साल दर साल हालात और ख़राब होते जा रहे हैं।
अस्पतालों में बढ़े मरीज
ख़बरों के मुताबिक़, डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में हालिया दिनों में 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर मरीज गले में जलन, आँखों से पानी आना, साँस लेने में दिक्कत, अस्थमा से परेशान हैं। डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली में एक्यूआई के ख़राब होने के कारण मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है और इससे बच्चे और वृद्ध सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं।कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से हर रोज़ कम से कम 80 मौतें होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि खाँसी, जुकाम जैसी मामूली बीमारी से लेकर दमा, कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक तक प्रदूषण की देन हैं।
उम्र घटा रहा प्रदूषण!
अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट यानी ईपीआईसी ने वायु प्रदूषण से उम्र पर पड़ने वाले असर को देखने के लिए एयर क्वालिटी लाइफ़ इंडेक्स यानी एक्यूएलआई तैयार किया है। इस एक्यूएलआई से पता चलता है कि सिंधू-गंगा समतल क्षेत्र यानी मोटे तौर पर उत्तर भारत में 1998 से 2016 तक प्रदूषण में 72% की वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में भारत की क़रीब 40% आबादी रहती है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 1998 में ख़राब हवा से लोगों के जीवन जीने की औसत उम्र 3.7 वर्ष कम हो गई होगी।देश के एक दर्जन से ज़्यादा शहर विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में हैं। दिल्ली से लेकर ग़ाज़ियाबाद और कानपुर के अलावा कई शहरों में सांस लेना बेहद मुश्किल हो गया है। लेकिन अगर अभी भी ठोस क़दम नहीं उठाये गये तो हालात इससे भी भयावह हो सकते हैं।
ये काम करें सरकारें
दिल्ली में हवा और ज़्यादा ख़राब न हो, इसके लिए गाड़ियों में साफ़ ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को बंद करना, अगर ज़रूरत हो तो ऑड-ईवन लागू करना, ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाना, सड़कों पर लगातार पानी का छिड़काव करना, सबसे अच्छे मॉस्क बांटना, कंस्ट्रक्शन को बंद करना व अन्य क़दम उठाये जाने चाहिये। क्योंकि दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण लगातार चिंताजनक होता जा रहा है और सरकारों के तमाम दावों के बाद भी यह हर साल बढ़ रहा है।
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