शूजीत सरकार के निर्देशन में विकी कौशल की फ़िल्म सरदार उधम ऐसे समय में आई है जब सावरकर को ‘वीर’ कहने और अंग्रेजों से उनकी माफ़ी का मुद्दा राष्ट्रवादी विमर्श के बहाने गरमाया हुआ है। गांधी जी भी लपेट लिये गये हैं।
उधम सिंह का नाम हमारी आज़ादी की लड़ाई के उन नायकों में लिया जाता है जिन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत के आगे झुकने और माफ़ी मांग कर जान बचाने के बजाय हँसते-हँसते मौत को गले लगाना क़ुबूल किया।
फ़िल्म में एक जगह ड्वायर की हत्या के लिए जेल में बंद उधम सिंह को उनकी विदेशी शुभचिंतक अंग्रेज़ सरकार से माफी मांगने की सलाह देती है। उधम सलाह ठुकरा देते हैं।
कोई बताये कि ऐसे शहीद को वीर उधम सिंह क्यों न कहा जाये, बजाय माफ़ी मांगकर जीने वाले किसी शख्स के, भले ही वह किसी के लिए कितना बड़ा चिंतक-विचारक क्रांतिकारी क्यों न हो।
सरदार उधम एक अच्छी फ़िल्म है। पौने तीन घंटे लंबी फ़िल्म को थोड़ा काट-छांट कर चुस्त बनाया जा सकता था, हालाँकि ऐसा विषय और उसका ट्रीटमेंट दर्शक से धैर्य की मांग करे, यह फ़िल्मकार की बिल्कुल जायज़ सी अपेक्षा हो सकती है। शूजीत सरकार और विकी कौशल की मेहनत की बदौलत यह फ़िल्म बायो-पिक कैटेगरी में ख़ास दर्जा हासिल करने की काबिलियत रखती है।
आख़िरी एक घंटे में जलियांवाला बाग़ नरसंहार की ऐतिहासिक घटना के फिल्मांकन में अद्भुत सिनेमा रचा है निर्देशक शूजीत और अभिनेता विकी कौशल ने।
एक क्रांतिकारी की जीवन गाथा होने के बावजूद यह फ़िल्म कोई अति नाटकीय, नारेबाज़ी वाला राष्ट्रवादी माहौल सृजित करने से बचती है। निर्देशक शूजीत सरकार की सूझबूझ और अभिनेता विकी कौशल ने फ़िल्म को कहीं भी लाउड नहीं होने दिया है।
विकी कौशल ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। यह फ़िल्म उनकी अब तक की अभिनय यात्रा में मील का पत्थर का दर्जा रखती है और मौजूदा दौर के सशक्त अभिनेता की उनकी छवि और प्रतिष्ठा को और मज़बूत करती है। युवावस्था से लेकर चालीस वर्ष के उधम सिंह को दर्शाने में उनकी शारीरिक तैयारी भी बहुत अच्छी तरह दिखाई दी है। विकी कौशल के उधम सिंह के आगे भगत सिंह की भूमिका में अमोल पाराशर प्रभाव नहीं छोड़ पाए।
फिल्म अमेज़न प्राइम पर देखी जा सकती है।
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