फ़िल्म ‘बाला’ में कहानी है बालों की। जी हाँ, वही लंबे, घने, घुंघराले ख़ूबसूरत बाल जो कि सभी के सर का ताज होते हैं। फ़िल्म में गंजेपन की समस्या को लेकर दिखाया गया है।
फ़िल्म ‘मेड इन चाइना’ में सेक्स प्रॉब्लम्स के बारे में खुल कर बात करने के लिए प्रेरित करती है। सेक्स लाइफ़ या इससे जुड़ी परेशानी के बारे में किसी से बात करना क्यों पसंद नहीं करते?
फ़िल्म 'सांड की आँख' में कुछ पाने का जुनून है, जज़्बा है और सपने पूरे करने की ललक है। यह फ़िल्म दो तेज़-तर्रार शूटर चन्द्रो तोमर व प्रकाशी तोमर के जीवन और शूटर बनने की उनकी कहानी पर आधारित है।
स्पाई की निजी ज़िंदगी को समझना चाहते हैं तो एक वेब सीरीज़ आई है। नाम है ‘बार्ड ऑफ़ ब्लड’। लीड रोल में हैं इमरान हाशमी। और निर्माता शाहरुख ख़ान, गौरी ख़ान और गौरव वर्मा हैं।
जाने-माने अभिनेता अमिताभ बच्चन ने जीवन के 80 वर्ष पूरे कर लिए हैं। देश में सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान, दादा साहब फालके पुरस्कार भी अमिताभ बच्चन को मिल चुका है।
हल्की फुल्की मनोरंजन की फ़िल्म 'द ज़ोया फ़ैक्टर' में लकी चार्म के अंधविश्वास को दूर करने की कोशिश की गई है। फ़िल्म के विषय में नयापन है, लेकिन यह फ़िल्म न गंभीरता से बनाई गई है और न ही इसे याद रखा जा सकता है।
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के वक़्त होने वाली तकलीफ़ों और सैनेटरी पैड की अनुपलब्धता के कारण महिलाओं के होने वाली परेशानियों के बारे में है।
‘गली बॉय’ व्यवस्था को सीधी चुनौती नहीं देती, लेकिन बिना कुछ कहे भी कह जाती है कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ का नारा देने वाले नेता लोगों की जिंदगी नहीं बदल सकते।