फ़िल्म- शकुंतला देवी
डायरेक्टर अनु मेनन
स्टार कास्ट- विद्या बालन, सान्या मल्होत्रा, अमित साध, जिशू सेनगुप्ता
स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म- अमेज़न प्राइम वीडियो
रेटिंग- 3.5/5
ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अमेज़न प्राइम पर बायोपिक फ़िल्म 'शकुंतला देवी' रिलीज़ हो गई है। इस फ़िल्म का सभी को बेसब्री से इंतज़ार था। फ़िल्म का निर्देशन अनु मेनन ने किया है और ‘ह्मयूमन कंम्प्यूटर’ कही जाने वाली गणितज्ञ शकुंतला देवी का किरदार एक्ट्रेस विद्या बालन ने निभाया है। विद्या के अलावा फ़िल्म सान्या मल्होत्रा, अमित साध और जिशू सेनगुप्ता भी लीड रोल में हैं। यह फ़िल्म शकुंतला देवी की बायोपिक है लेकिन किसी गणितज्ञ की ज़िंदगी भी इतनी मजेदार हो सकती है क्या, ये आपको फ़िल्म देखने के बाद पता चलेगा। तो आइये जानते हैं फ़िल्म 'शकुंतला देवी' की कहानी के बारे में-
फ़िल्म में क्या है ख़ास?
फ़िल्म की शुरुआत होती है एक छोटी बच्ची से जो कि गणित के सवाल पलक झपकते ही हल कर देती है। उसके पिता (प्रकाश बेलावाड़ी) को जब यह बात पता चलती है तो वो बेटी 'शकुंतला देवी' (विद्या बालन) के मैथ्स के शो लगवा देते हैं। गणित के शो से पैसे आने लगते हैं और परिवार का जीवन-यापन होने लगता है। इसी तरह से शकुंतला बड़ी होती हैं और वो अलग-अलग देशों में अपनी काबिलियत को साबित करती हैं। शकुंतला को एक पेड़ की तरह खड़ा होना पसंद नहीं है उसे हर जगह घूमना और अलग-अलग जगहों पर रहने का शौक है, जो वो अपने शो के माध्यम से पूरा करती है।
इसी बीच शकुंतला की मुलाक़ात आईएएस अफ़सर परितोष बनर्जी (जिशू सेनगुप्ता) से होती है और दोनों शादी कर लेते हैं। शकुंतला परितोष की बेटी अनु (सान्या मल्होत्रा) होती है। आमतौर पर महिलाएँ बच्चे होने के बाद करियर और नौकरी को छोड़ देती हैं लेकिन शकुंतला ने ऐसा नहीं किया और इससे अनु नाराज़ रहती है। क्योंकि उसे एक नॉर्मल ज़िंदगी चाहिए। अनु अजय (अमित साध) से शादी करती हैं और वो अपनी माँ से अलग रहने लगती हैं। इसका असर शकुंतला पर पड़ता है लेकिन इसके बाद क्या? आख़िर में फ़िल्म में क्या होगा? 'शकुंतला देवी' की ज़िंदगी में और क्या उतार-चढ़ाव आये? यह जानने के लिए आपको अमेज़न प्राइम पर फ़िल्म 'शकुंतला देवी' देखनी पड़ेगी। फ़िल्म की अवधि 125 मिनट की है।
कौन थीं शकुंतला देवी?
बेंगलुरु में जन्मी शकुंतला देवी गणित के सवाल सिर्फ़ देखकर ही उनके जवाब दे दिया करती थीं और इसी वजह से उन्हें ‘ह्यूमन कम्प्यूटर’ बुलाया जाने लगा। शकुंतला देवी कभी भी स्कूल में जाकर और बच्चों की तरह शिक्षा हासिल नहीं की क्योंकि उनका परिवार बेहद ग़रीब था। लेकिन फिर भी उनका दिमाग़ काफ़ी तेज़ था और वो गणित में सबसे तेज़ थीं। एक ऐसी महिला जिसे लोगों के कुछ भी कहने का फर्क नहीं पड़ता था और जिसे सिर्फ़ अपने सपने ही दिखाई देते थे। शकुंतला देवी कभी भी हारना नहीं जानती थीं, वो हमेशा जीतना ही जानती थीं।
शकुंतला देवी की गणित में उनकी कैलकुलेशन की तकनीक और क्षमता की वजह से उनका नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। इतना ही नहीं, शकुंतला देवी ने चुनावी मैदान में भी खुद को आजमाया। उन्होंने साल 1980 के लोकसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार साउथ मुंबई और तेलंगाना के मेदक से चुनाव लड़ा था और उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को चुनौती दी थी। साल 1977 में ही 'शकुंतला देवी' ने समलैंगिकता पर किताब लिखी थी और इसके लिए उनकी काफ़ी आलोचना भी हुई थी।
निर्देशन
शकुंतला देवी के जीवन के बारे में ख़ुद उनकी बेटी अनुपमा बनर्जी द्वारा बताई गई बातों पर ही डायरेक्टर अनु मेनन ने फ़िल्म को बनाया है। इसलिए इतना साफ़ है कि जो भी फ़िल्म में दिखाया गया है वो सही है। निर्देशन अनु मेनन ने फ़िल्म की कहानी को बेहद ही सलीके से पेश किया है। कई बार बायोपिक फ़िल्में बोर कर देती हैं लेकिन 'शकुंतला देवी' की कहानी को काफ़ी अच्छे से लिखा गया है। साथ ही डायरेक्टर द्वारा कलाकारों का चुनाव भी अच्छे से किया गया है। इसके अलावा कैमरा, सिनेमेटोग्राफ़ी और फ़िल्म का म्यूजिक हर जगह फिट बैठता है।
एक्टिंग
विद्या बालन की जब भी कोई फ़िल्म आने को होती है तो लोगों को उसका इंतज़ार बेसब्री से होता है क्योंकि वो अच्छी कहानी चुनने के साथ ही अच्छी एक्टिंग करती हैं। 'शकुंतला देवी' के किरदार में विद्या ने जवान लड़की से उम्रदराज़ होने तक का रोल निभाया है। हर एक सीन में विद्या ने अपनी एक्टिंग से किरदार में जान डाल दी। सान्या मल्होत्रा ने बेटी का किरदार बख़ूबी निभाया। अमित साध की एक्टिंग भी कमाल की है। वो हर एक सीन को परफेक्ट तरीक़े से पेश करते हैं। जिशू सेनगुप्ता, प्रकाश बेलावाड़ी, शीबा चड्ढा और अन्य कलाकारों ने भी अपने किरदार को अच्छे से निभाया।
फ़िल्म भले ही एक गणितज्ञ की बायोपिक हो लेकिन फ़िल्म को देखते वक़्त आपको मैथ्स से भी प्यार होने लगेगा। इस तरह से फ़िल्म में नंबर्स के साथ जादू किया गया है। वहीं फ़िल्म में विद्या की एक लाइन है कि 'क्या इतना अजीब है एक महिला को मैथ्स करते हुए देखना?' यह लाइन इस तरह से सामने आती है कि एक महिला जब कुछ बड़ा करने लगती है तो कुछ लोगों को उससे परेशानी होने लगती है। सान्या मल्होत्रा की एक लाइन है कि 'मैंने हमेशा एक माँ को ही देखा कभी आपको एक औरत के रूप में देखा ही नहीं।' यह सही बात है कि हम अपनी माँ को बस माँ तक ही सीमित रहने देते हैं, कभी उनकी खुशी या उनकी रुचि के बारे में जानने की कोशिश नहीं करते। कई और भी बातें हैं जिनपर फ़िल्म ध्यान खींचती है।
फ़िल्म में छोटी सी कमी यह है कि जब हम शकुंतला के मैथ्स के जादू को और देखना चाहते हैं तो वहाँ से वो सीन ख़त्म हो जाता है और ऐसा लगता है कि फ़िल्म थोड़ा जल्दी भाग रही है। बायोपिक में किसी बड़ी शख्सियत के बारे में सब कुछ उतने ही वक़्त में समेटना आसान काम नहीं है और इसलिए ऐसा लगता है कि फ़िल्म तेज़ी से चल रही है। यह अलग बात है कि 125 मिनट की इस बायोपिक में सभी भाव को दिखाया गया। फ़िल्म को एक बार ज़रूर देख सकते हैं, यह आपको बोर नहीं करेगी, 'विद्या कसम'।
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