loader

छत्तीसगढ़: आरक्षण के विधेयक पर दस्तखत क्यों नहीं कर रही हैं राज्यपाल? 

भीषण बेरोज़गारी के दुश्चक्र में फँसे देश में रोज़गार की राह में अड़ंगा डालने से बड़ा गुनाह शायद ही कोई हो। ये अड़ंगा अगर केंद्र पर क़ाबिज़ दल की ओर से आये तो गुनाह कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि इस दुश्चक्र से देश को निकालने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उस पर ही है। अफ़सोस कि छत्तीसगढ़ में यही हो रहा है।

3 जनवरी को रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित जन अधिकार रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो कहा उसने संघीय ढाँचे के तहत राज्यों को मिले अधिकार को सीमित करने का भी सवाल उठा दिया है। उन्होंने कहा कि नये आरक्षण प्रावधानों पर ‘एक मिनट में हस्ताक्षर की बात कहने वाली राज्यपाल ने एक महीने के ऊपर हो जाने पर भी हस्ताक्षर नहीं किये। महीना भी बदल गया और साल भी बदल गया।’

यह हमला देखने पर राज्यपाल अनुसूइया उइके पर था, लेकिन हक़ीक़त में इसका संबंध केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ बीजेपी के रवैये से है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी के दबाव की वजह से ही राज्यपाल विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित नये आरक्षण प्रावधानों पर हस्ताक्षर नहीं कर रही हैं।

ताज़ा ख़बरें
दरअसल, बीते 2 दिसंबर को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक और शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक पारित किया था। इन दोनों विधेयकों में आदिवासी वर्ग को 32%, अनुसूचित जाति को 13% , अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण देने का प्रावधान है। इन संशोधनों से छत्तीसगढ़ में 76% आरक्षण हो जाएगा। बीजेपी के विधायकों ने इन संशोधनों पर विधानसभा के अंदर तीखे सवाल उठाये, लेकिन बाद में इन्हें सर्वसम्मत तरीके  से पारित कर दिया गया।
Chhattisgarh 76% reservation bill in jobs - Satya Hindi

इसके पहले छत्तीसगढ़ की सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 58% आरक्षण था। अनुसूचित जाति को 12%, अनुसूचित जनजाति को 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 14%  और सामान्य वर्ग के ग़रीबों के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था थी। भूपेश बघेल सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिए इन वर्गों के आरक्षण में बढ़ोतरी की और कुल आरक्षण 82 फ़ीसदी हो गया।

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने तब इस अध्यादेश पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिये थे। पर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी और 19 सितम्बर को आए बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया। हाईकोर्ट ने अध्ययन और आँक़ड़ों का सवाल उठाया था। उसके बाद सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग और अन्य संस्थाओं के आँकड़ों के आधार पर नया विधेयक लाकर आरक्षण बहाल करने का फैसला किया। 

विधानसभा की कार्यवाही समाप्त होने के तुरंत बाद राज्य के पाँच मंत्री पारित दोनों विधेयक की प्रति लेकर राजभवन पहुँचे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि राज्यपाल ने संशोधन विधेयकों पर तुरंत हस्ताक्षर करने का आश्वासन दिया था लेकिन अब तक उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसकी वजह से कालेजों में प्रवेश और नई भर्तियों की प्रक्रिया रुक गयी है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से अलग एक सवाल तो उठता ही है कि राज्यपाल को अगर विधेयकों पर आपत्ति है तो वे इसे राज्य सरकार को वापस भेज सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। विधेयक के राज्यपाल के पास पड़े रहने का मतलब पूरी प्रक्रिया का स्थगित होना है। ऐसे में बीजेपी के दबाव की बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
वैसे तो राज्यपाल को लेकर राजनीतिक विवाद उचित नहीं है लेकिन हाल में प.बंगाल से लेकर केरल तक में जो कुछ देखने को मिला है, उसके बाद यह सिर्फ एक ‘पवित्र इच्छा’ ही लगती है। मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो राज्यपाल कमला बेनीवाल पर वे किस तरह से आरोप लगाते थे, वह इतिहास का हिस्सा है। तब वे राजभवन पर ‘कांग्रेस’ भवन होने का आरोप लगाते थे। ऐसे में अगर कांग्रेस आज छत्तीसगढ़ के राजभवन को ‘बीजेपी भवन’ कह रही है तो बीजेपी को सवाल उठाने का नैतिक हक़ नहीं है।
कुछ ऐसा ही हाल झारखंड में भी देखने को मिल रहा है जहाँ आरक्षण संशोधन विधेयक पारित होने के बावजूद लटका हुआ है। जबकि गुजरात जैसे प्रदेशों में आरक्षण संबंधी सरकार के फ़ैसलों पर राज्यपाल की मुहर लगते देर नहीं लगती।
इसका सीधा मतलब यही है कि बीजेपी नहीं चाहती कि छत्तीसगढ़ और झारखंड में सत्तारूढ़ दलों को आरक्षण विस्तार का राजनीतिक लाभ मिलने पाये। यह इन आदिवासी बहुल राज्यों में बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा करेगा।
लेकिन बेरोज़गारी का दंश, बीजेपी की राजनीतिक महात्वाकांक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। नोटबंदी और बिना विचारे जीएसटी लागू करने की वजह से कोरोना काल के पहले ही भारत 45 सालों में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी दर का शिकार बन गया था। 2019 में सरकारी आँकड़ों में भी इसे स्वीकार करते हुए बेरोज़गारी दर को 6.1 फ़ीसदी माना गया था। वहीं सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताज़ा आँकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2022 में भारत की बेरोज़गारी दर 8.3 फ़ीसदी हो गयी है जो स्थिति की गंभीरता बताती है। परेशान करने वाली बात ये भी है कि शहरी बेरोज़गारी की दर दिसंबर में बढ़कर 10.09 फ़ीसदी हो गयी जो एक महीने पहले 8.96 फ़ीसदी थी।
छत्तीसगढ़ से और खबरें

कुल मिलाकर 2023 में बेरोज़गारी एक बड़ी चुनौती रहेगी जिसे पार पाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा, लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखते हुए आरक्षण प्रावधानों को लागू होने से रोका जा रहा है, उसने सरकारी भर्तियों की राह में रोड़ा अटका दिया है।

वैसे तो आरक्षण बेहद सीमित रूप से सिर्फ़ सरकारी क्षेत्र मे लागू है लेकिन देश के नौजवानों के बीच इसका संदेश बड़ा होता है। पिछले साल अग्निवीर योजना के प्रावधानों को लेकर जिस तरह कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले थे, वह युवा आक्रोश की बानगी है। बेहतर हो कि रोज़गार सृजन को लेकर राजनीतिक लाभ-हानि के पार जाकर गंभीरता दिखाई जाए वरना युवाओं में मायूसी बढ़ी तो हालात किसी के क़ाबू में नहीं रहेंगे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
पंकज श्रीवास्तव
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

छत्तीसगढ़ से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें