लीजिए, अब छत्तीसगढ़ में भी आरक्षण 72 फ़ीसदी तक बढ़ाने की घोषणा कर दी गई। यानी इसके लागू होने पर देश में सबसे ज़्यादा आरक्षण इसी राज्य में होगा। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी की सीमा से 22 फ़ीसदी ज़्यादा है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा ओबीसी के आरक्षण को क़रीब दोगुना करने और अनुसूचित जाति के लिए एक फ़ीसदी आरक्षण बढ़ा देने की घोषणा करने से ऐसी स्थिति आई है। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस समारोह में इसकी घोषणा की।
बघेल सरकार के इस फ़ैसले के बाद पहले जहाँ राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 फ़ीसदी था अब यह बढ़कर 27 फ़ीसदी हो जाएगा। एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए भी एक फ़ीसदी आरक्षण बढ़ाया गया है। अब एससी के लिए 13 फ़ीसदी आरक्षण होगा। एसटी यानी अनुसूचित जनजाति के लिए राज्य में पहले से ही 32 फ़ीसदी आरक्षण है। अब इन तीनों वर्गों को जोड़ लें तो सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कुल 72 फ़ीसदी आरक्षण हो जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी की सीमा से 22 फ़ीसदी ज़्यादा है। यदि सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटे को लागू कर दिया जाए तो आरक्षण 82 फ़ीसदी पहुँच जाएगा। हालाँकि मुख्यमंत्री ने इस 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई फ़ैसला नहीं लिया है। बता दें कि पहले से तय नियमों के अनुसार ओबीसी के लिए 27 फ़ीसदी, एससी के लिए 15% और एसटी के लिए 7.5% का आरक्षण का प्रावधान है।
अब सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट इसको हरी झंडी देगा? हालाँकि कई राज्यों में विशेष परिस्थितियों में 50 फ़ीसदी की सीमा से ज़्यादा आरक्षण की छूट दी गई है। क्या बघेल सरकार इन विशेष परिस्थितियों का लाभ उठा पाएगी?
कम से कम राज्य के अधिकारी तो यही दावा करते हैं कि ये विशेष परिस्थितियाँ उनके पक्ष में हैं। अंग्रेज़ी अख़बार, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, राज्य के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय सीमा का सवाल एक जटिल मुद्दा है। ऐसा नहीं है कि राज्य इस सीमा को पार नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु को देखें। हम किसी भी क़ानूनी चुनौती के लिए तैयार हैं। लेकिन हमारे राज्य के बारे में जो सबसे अलग (यानी विशेष परिस्थिति) है, ओबीसी का प्रतिशत 47 प्रतिशत के क़रीब है, जो एसटी के साथ जनसंख्या का बड़ा हिस्सा बनता है। केवल 14 प्रतिशत आरक्षण उन्हें क्यों मिले? यह एक दशक से अधिक समय से ओबीसी समूहों की माँग है।’
क्या 82 फ़ीसदी होगा आरक्षण?
चूँकि सरकार ने 72 फ़ीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है, ऐसे में यदि सामान्य वर्ग के लिए भी केंद्र सरकार वाला 10 फ़ीसदी आरक्षण लागू हो जाता है तो यह 82 फ़ीसदी तक पहुँच जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि राज्य सरकार अभी भी सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत केंद्र के अनिवार्य ईडब्ल्यूएस कोटा पर विचार कर रही है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘यह सच है, अगर इसे लागू किया जाता है तो इससे आरक्षण 82 प्रतिशत तक पहुँच जाएगा। लेकिन हमें अपने राज्य के हितों को देखना होगा। हम प्रस्ताव का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं। लेकिन क्या होगा अगर ईडब्ल्यूएस के तहत अर्हता प्राप्त करने वाले सामान्य वर्ग के लोगों का प्रतिशत राज्य में 10 प्रतिशत से कम हो? क्या वह ग़रीब आदिवासी, या अन्य पिछड़ा वर्ग की सीट नहीं छीन सकता है?’
जिस तरह से बघेल सरकार ने आरक्षण को बढ़ाने की घोषणा की है यह कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले महाराष्ट्र में मराठाओं के लिए 12-13 फ़ीसदी आरक्षण देने को हरी झंडी मिलने के बाद वहाँ 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण हो गया है। तमिलनाडु में भी तय सीमा से ज़्यादा आरक्षण है।
दूसरे राज्यों में भी आरक्षण की माँगें
अधिकतर राज्यों में कई जातियाँ आरक्षण की माँग करती रही हैं और राज्य सरकारें और अलग-अलग दल भी इसका समर्थन करते रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फ़ीसदी तक आरक्षण की सीमा इसमें आड़े आ जाती है, क्योंकि ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण ही क़रीब 50 फ़ीसदी हो जाता है। यहीं पर पेच फँस जाता है। यही कारण है कि कभी गुजरात तो कभी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना आरक्षण की अधिकतम सीमा को पार करना चाहते हैं। कर्नाटक 70, आंध्र पदेश 55 और तेलंगाना 62 फ़ीसदी तक आरक्षण बढ़ाना चाहते हैं। राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में भी ज़ोरदार माँग की जाती रही है। इन राज्यों में हिंसक प्रदर्शन तक हुए।
किस आधार पर माँगते हैं आरक्षण?
आरक्षण 50 फ़ीसदी से ज़्यादा करने की माँग लगातार दो कारणों से होती रही है। एक तो यह कि नौवीं अनुसूची के प्रावधानों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला सिद्ध करना आसान नहीं है। दूसरा, विशेष परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट के 50 फ़ीसदी की तय सीमा को तोड़ा जा सकता है। इसका रास्ता सिर्फ़ संविधान की नौवीं अनुसूची से होकर जाता है। यह अनुसूची न्यायिक समीक्षा यानी सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी से राहत देती है।
तमिलनाडु में 69 फ़ीसदी आरक्षण
सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था का तमिलनाडु सरकार ने लाभ उठाया। 1993 में जब मद्रास हाई कोर्ट ने आरक्षण में अधिकतम सीमा पार करने से रोक लगा दी थी तो जयललिता ने संविधान की नौवीं अनुसूची में अवसर देखा। तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने 69 फ़ीसदी आरक्षण के लिए विधानसभा से विधेयक पास कराया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पर दबाव डलवाकर न सिर्फ़ विधेयक पर मुहर लगवा ली, बल्कि संविधान में संशोधन करवाकर इसे नौवीं अनुसूची में डलवा दिया।
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