सुशांत सिंह राजपूत की मौत की मिस्ट्री अब सीबीआई सुलझाएगी। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब सीबीआई हरकत में है। सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों की सुर्खियों में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर लंबी-चौड़ी बहस जारी है। सबसे ज़्यादा सरगर्मी सियासी गलियारे में है। बिहार में सुशांत सिंह राजपूत मामले की जाँच सीबीआई करे, सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को लेकर राजनीति चरम पर है। सभी दलों में इस बात का श्रेय लेने की होड़ मची है। हर दल अपनी पीठ थपथपा रहा है। सभी यही कह रहे हैं कि उसी के प्रयास से सुप्रीम कोर्ट ने इतना बड़ा फ़ैसला लिया। क्या सचमुच सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की होड़ मची है। क्या सचमुच यह बिहार की अस्मिता से जुड़ा सवाल है जिसको लेकर सभी राजनीतिक दल एक ही राग अलाप रहे हैं। राजनीति के जानकार तो कहते हैं कि असल में सारी बेचैनी वोट की राजनीति साधने को लेकर है।
सुशांत के बहाने सियासी दलों का निशाना कहीं और है
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला जैसे ही आया सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे लपक लिया। अमूमन मीडिया से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले नीतीश कुमार हर न्यूज़ चैनल पर फ़ोन पर बात करने को तैयार हो गए। नीतीश ने कहा कि इस केस में बिहार सरकार ने वही किया जो क़ानूनी रूप से सही था। नीतीश कहते हैं कि ‘सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद यह साफ़ हो गया कि बिहार सरकार की ओर से क़ानूनी और संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया है। इस केस में सुशांत सिंह के परिवार और उनके चाहने वालों को न्याय मिलेगा यह हम सबको विश्वास है।’
नीतीश जब टेलीविजन पर फोनो दे रहे थे उसी समय बीजेपी महाराष्ट्र की सरकार से माँग कर रही थी कि महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्री और मुंबई पुलिस के कमिश्नर को तत्काल इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। पटना से बीजेपी के सांसद और केन्द्र सरकार में क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा कि ‘न्याय की जीत हुई, अब सुशांत सिह की आत्मा को शांति मिलेगी।’
नीतीश की बात अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश पर हमला बोला। तेजस्वी कह रहे हैं कि सबसे पहले उन्होंने ही सीबीआई जाँच की माँग की थी। तेजस्वी कह रहे हैं कि ‘नीतीश कुमार सोए रहते तो सीबीआई जाँच नहीं होती, मैंने ही नीतीश को नींद से जगाया।’
तेजस्वी एक क़दम आगे बढ़कर कहते हैं कि वे तो हम ही हैं जिसने ‘सुशांत सिंह को न्याय दिलाने के लिए सड़क से लेकर संसद तक आन्दोलन को तेज़ किया। तब जाकर नीतीश की सरकार को कुंभकर्णी नींद से जागना पड़ा।’
उधर बिहार में एनडीए में शामिल लोजपा हो या महागठबंधन में शामिल ‘हम’ पार्टी, सब अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। इन सबके बीच कांग्रेस चुप है लेकिन दबी दुबान ही सही कांग्रेस के नेता भी कह रहे हैं कि सीबीआई जाँच से अब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
बहरहाल, सवाल है कि दो महीने के भीतर बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सूबे में चालीस लाख से ज़्यादा लोग बाढ़ की तबाही झेल रहे हैं। लाखों लोग बेघर हो गए हैं। उनके खेत-मकान सब बर्बाद हो गए हैं। इसके अलावा पूरा राज्य कोरोना संक्रमण से बेहाल है। कोरोना संक्रमण से निपटने में सरकारी तंत्र के पसीने छूट रहे हैं। ऐसे में इन अहम सवालों को दरकिनार कर सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक सभी सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की मुहिम में क्यों जी जान से लग गए हैं। हर कोई सुशांत सिंह राजपूत को बिहार का बेटा बता कर बिहार के मान-सम्मान के लिए लड़ने के लिए ताल ठोक रहा है। आख़िर इसके सियासी मायने क्या हैं।
नीतीश के तीर का निशाना कहाँ?
सुशांत सिंह राजपूत सिने जगत के जाने माने स्टार के साथ-साथ बिहार ही नहीं देश के मध्यम वर्ग के लाखों युवक-युवतियों के हीरो थे। उनके सपनों के साथ बिहार के लाखों युवकों के सपने जुड़े थे। ये युवक हर-जाति धर्म संप्रदाय के हैं। बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि असल में सियासी दलों को युवकों के सपनों से कोई लेना देना नहीं है बल्कि लोगों का ध्यान असल मुद्दों से भटकाना है। हर साल बाढ़ की तबाही झेल रहे लोग कोई सवाल न पूछ पाएँ, जानलेवा कोरोना संक्रमण से बेहाल जनता कुछ न बोले ना माँगे, इसलिए कोई बहाना ढूंढना है।
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में लाखों प्रवासी मज़दूरों के साथ नीतीश कुमार की सरकार ने जो व्यवहार किया वह लोगों को याद है। उस बात को लोगों के ज़हन से हटाना है। उधर सरकार पर लगातार हमलावर रहे तेजस्वी यादव चाहते हैं कि कोरोना संक्रमण से बेहाल जनता सब चीजों को याद रखे।
सुशांत के बहाने सवर्ण वोटों को साधने की तैयारी
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में चुनाव हमेशा ही जातिगत वोटों के समीकरण से ही लड़े जाते रहे हैं। जाति आधारित राजनीति के लिए मशहूर बिहार में वोटों की जातिगत ताक़त पर ग़ौर करें तो सबसे ज़्यादा ओबीसी की आबादी है -कुल 51 फ़ीसदी। 14.4 फ़ीसदी यादव, 6.4 फ़ीसदी कुशवाहा या कोईरी, 4 फ़ीसदी कुर्मी, 16 फ़ीसदी दलित और 17 फ़ीसदी सवर्ण वोटर हैं। सवर्णों में भी भूमिहार 4.7 फ़ीसदी, ब्राह्मण 5.7 फ़ीसदी, 5.2 फ़ीसदी राजपूत और 1.5 फ़ीसदी कायस्थ हैं। राज्य में 16 फ़ीसदी वोट मुसलिम वोटरों के हैं।
ग़ौर करने की बात है कि नीतीश कुमार के साथ कुर्मी वोटरों के अलावा दलित वोटरों का बड़ा वोट बैंक है। नीतीश कुमार ने मुसलिम वोट बैंक में भी सेंध लगा रखी है। सवर्ण वोटर अमूमन बीजेपी के साथ हैं ख़ास तौर पर शहरी आबादी में भूमिहार और कायस्थ बीजेपी के साथ हमेशा रहे हैं। माना जाता है कि राजपूत वोटरों का लगाव लालू प्रसाद यादव के साथ रहा है। लालू प्रसाद यादव ने इसीलिए जगतानंद सिंह, रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेताओं को हमेशा सम्मान दिया है।
सुशांत सिंह राजपूत केस में पूरे देश के राजपूत एकजुट हैं और बिहार में 5.2 फ़ीसदी राजपूत किसी भी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। राजपूतों की करणी सेना ने पहले ही राजपूतों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। अब हर दल राजपूतों को साधने की कोशिश में लगा हुआ है। युवा, महिला और सवर्ण वोटरों को जिसने साध लिया उसकी बल्ले-बल्ले समझिए।
महाराष्ट्र में बिहारियों के साथ व्यवहार भी मुद्दा
यहाँ इस बात का ज़िक्र भी बेहद ज़रूरी है कि महाराष्ट्र में बिहार - उत्तर प्रदेश के लाखों लोग रोज़गार करते हैं। उन लोगों के साथ महाराष्ट्र में ख़ास तौर पर ठाकरे परिवार और शिव सेना का जो रवैया रहा है उसके ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्सा है। सुशांत सिंह मामले में महाराष्ट्र सरकार और पुलिस के रवैये ने इस ग़ुस्से को और हवा दे दी है। बिहार की सियासी पार्टियाँ लोगों के इस ग़ुस्से को वोट में कैश करना चाहती हैं। कोरोना संक्रमण के कारण अपनी रोज़ी-रोटी गँवा कर घर लौटे लाखों बिहारी महाराष्ट्र की सरकार के ख़िलाफ़ आग बबूला हैं। सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के बहाने बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियाँ लोगों के भीतर इस ग़ुस्से और आग को ज़िंदा रखना चाहती हैं। यही कारण है कि बीजेपी ने बड़ा पासा फेंका है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस को बिहार में चुनाव प्रभारी बनाए जाने के पीछे यही मंशा है कि सुशांत सिंह राजपूत के केस का राजनीतिक लाभ किस तरह से लिया जाए।
डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय की भी नज़र जदयू के टिकट पर
ग़ौरतलब है कि बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय भी सुशांत सिंह मामले को लेकर बेहद आक्रामक रूख़ अपनाए हुए हैं। महाराष्ट्र पुलिस पर बिहार के पुलिस अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार को हथियार बनाकर गुतेश्वर पाण्डेय महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर हैं। सूत्रों की मानें तो गुप्तेश्वर पाण्डेय अब रिटायर्ड होने वाले हैं। अवकाश लेने के बाद वह राजनीति में भाग्य आजमाना चाहते हैं। हालाँकि इसके पहले भी वह चुनाव लड़ने के लिए नौकरी से वीआरएस तक ले चुके हैं। अब चर्चा है कि गुप्तेश्वर पाण्डेय जदयू के टिकट पर शाहपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं। सुशांत सिंह को न्याय दिलाने के बहाने ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत समेत सवर्ण वोटरों की बहुलता वाले इस क्षेत्र में गुप्तेश्वर पाण्डेय अपनी ज़मीन तैयार करने में जुटे हैं। यही कारण है कि गुप्तेश्वर पाण्डेय खुलेआम बिहार के मुख्यमंत्री के पक्ष में जमकर बयानबाज़ी कर रहे हैं।
बिहार में तीसरे फ्रंट का भविष्य तलाश रहे यशवंत सिन्हा भी सुशांत केस को भुनाने की फिराक में हैं।
बिहार के लाखों लोग वर्षों से यह माँग करते रहे हैं कि बिहार में फ़िल्म सिटी बने। बिहार के भोजपुरी, मैथिली और मगही कलाकारों को मान-सम्मान के साथ अपनी कला के प्रदर्शन करने का मौक़ा मिले और लाखों लोगों को रोज़गार मिले। लाखों बिहारी लड़के लड़कियाँ मुंबई में अपने सपने लेकर जाते हैं और अपमान और जिल्लत की ज़िंदगी झेल कर कभी आत्महत्या कर लेते हैं तो कभी सबकुछ गँवाकर घर लौट जाते हैं। ऐसे लोगों की माँग पर बिहार की कोई भी सरकार इतनी गंभीर पहले कभी नहीं दिखी जितनी आज सुशांत सिंह राजपूत के केस को लेकर है। नीतीश कुमार कई बार अपने गृह ज़िले में फ़िल्म सिटी बनाने की बात कह चुके हैं लेकिन उस पर काम कुछ नहीं हुआ। अब सूबे की राजनीति में अपनी ज़मीन तलाश रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने एलान किया है कि राज्य के सुल्तानगंज में सुशांत सिंह राजपूत के नाम पर फ़िल्म सिटी बनेगी। इसके पीछे भी कहीं ना कहीं सुशांत सिंह राजपूत के पक्ष में जो जनभावना उमड़ी है उसे भुनाने की कोशिश भर ही है।
बहरहाल, सुशांत सिंह राजपूत केस की जाँच अब सीबीआई के हवाले है। देखना होगा कि मुंबई पुलिस जिस केस में दो महीने में भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाई उसमें सीबीआई क्या कर पाती है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा यही है कि बिहार में चुनाव आने तक इस मुद्दे को बनाए रखने की चाहत सभी राजनीतिक दलों में है ताकि इसका लाभ चुनाव के समय लिया जा सके।
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