विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का सारा विकास तो बीजेपी ने बुधवार को अपने नाम कर लिया और वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को ‘हम रह गये अकेले’ गीत गाने पर मजबूर कर दिया। अब बिहार विधानसभा में बीजेपी 77 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई है और आरजेडी 75 विधायकों के साथ दूसरे नंबर की।
हर हाल में तीसरे नंबर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहेंगे जिनकी पार्टी- जनता दल यूनाइटेड के पास फिलहाल 43 विधायक हैं।
बिहार के राजनीतिक हलकों में यह सवाल तेज हो गया है कि नीतीश कुमार अब मुख्यमंत्री रहेंगे या बीजेपी उन्हें किसी विकल्प के सहारे हटाकर खुद बिहार की सत्ता पर काबिज होने की रणनीति पर आगे बढ़ेगी। इस विकल्प की चर्चा कुछ दिनों पहले बिहार की राजनीति में हो चुकी है और वह विकल्प है नीतीश कुमार के लिए राष्ट्रपति का पद जिसकी संभावना से वे साफ तौर पर इनकार कर चुके हैं।
आम तौर पर समझा जा रहा था कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी बिहार में कोई ‘खेला’ करेगी। इस ‘खेला’ का पहला दृश्य तो मुकेश सहनी को हैसियत बताना था, जो बीजेपी ने बहुत जल्द प्रस्तुत कर दिया। मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश चुनावों में बीजेपी
को हराने के लिए उम्मीदवार खड़े किये थे। उस समय तो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन बिहार बीजेपी के कई नेता यह संकेत दे रहे थे कि ‘वीआईपी’ की विदाई होने वाली है।
इसका अंदाजा खुद मुकेश सहनी को भी हो चुका था मगर उनके हाथ से मामला निकल चुका था।
बिहार में होने वाले विधान परिषद चुनावों में मुकेश सहनी की पार्टी को कोई टिकट नहीं देना या मुजफ्फरपुर जिले की बोचहां विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में बीजेपी द्वारा अपनी पार्टी से उम्मीदवार देना इस बात का संकेत था कि वीआईपी के एनडीए में दिन गिने-चुने रह गए हैं।
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मुकेश सहनी ने मंगलवार को फेसबुक लाइव के दौरान कहा था कि उनके बढ़ते कद और पार्टी के क्षेत्र विस्तार के कारण सहयोगी दल द्वारा उन्हें दबाया जा रहा है और एक तरह से एनडीए से बाहर कर दिया गया है। इसके बावजूद उन्होंने यह दावा किया था कि वे नीतीश सरकार का हिस्सा हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे खुद इस्तीफा देते हैं या उन्हें बर्खास्त किया जाता है।
उनका यह भी कहना था कि चुनाव तो उत्तर प्रदेश में जद(यू) ने भी लड़ा था लेकिन उन्हें कुछ नहीं बोला जा रहा। शायद मुकेश सहनी की यही गलती थी कि उन्होंने खुद को नीतीश कुमार जैसा नेता और अपनी पार्टी को जद(यू) जैसा समझ लिया।
उन्हें इस बात का भी ध्यान नहीं रहा कि एक तो वे खुद चुनाव हार कर अल्प अवधि के लिए एमएलसी बनकर मंत्री बने थे, दूसरी ओर जो उम्मीदवार उनकी पार्टी के टिकट से चुनाव जीतकर आये थे वे वास्तव में बीजेपी के ही लोग थे। इस बात का अंदाजा तो उन्हें तब भी हो गया होगा जब उनकी पार्टी के विधायक उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने पर सार्वजनिक रूप से उनके फैसले से अलग राय दे रहे थे।
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मांझी क्या करेंगे?
वीआईपी के तीनों विधायकों के पार्टी छोड़ने की घोषणा के तुरंत बाद जद(यू) के साथ खड़े जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने इसे बीजेपी का आपसी मामला बताते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार पर किसी असर से साफ इनकार कर दिया। मगर सवाल यह है कि अगर बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद से विदा करने की रणनीति पर अमल करती है तो मांझी के पास क्या विकल्प होगा।
बीजेपी के लिए मांझी की पार्टी को तोड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि एक तरह से उनके अलावा उनके बाकी तीन विधायक घर के ही लोग हैं।
कुर्सी छोड़ेंगे नीतीश?
यह सवाल भी है कि क्या नीतीश कुमार इतनी आसानी से मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार हो जाएंगे। इस मुद्दे पर कुछ जानकार यह कहते हैं कि बीजेपी के पास नीतीश कुमार की कौन सी कमजोर कड़ी है, यह अभी उजागर नहीं है। बीजेपी के स्थानीय नेता चाहे जो कहें, इसके शीर्ष नेतृत्व के लिए सार्वजनिक तौर पर यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि नीतीश कुमार अब बिहार की गद्दी छोड़ दें। यह जरूर है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व खुद नीतीश कुमार से ऐसी कोई घोषणा करा दे कि वे पहले भी कह चुके थे और अब भी मुख्यमंत्री बने नहीं रहना चाहते तो शायद ही किसी को ताज्जुब हो।
122 विधायक चाहिए
इस समय बिहार विधानसभा की क्षमता 242 है, जबकि सदस्यों की कुल संख्या 243 है। एक सीट पर उपचुनाव होना है। इस तरह सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत होगी। इस अंकगणित में बीजेपी जद(यू) के दो तिहाई विधायकों को तोड़कर भी बहुमत हासिल नहीं कर सकती। खुद के 77 और मांझी के चार विधायकों को जोड़कर 81 विधायक होते हैं। इसमें कांग्रेस के विधायकों के दो-तिहाई जोड़ दें तब जाकर बीजेपी नीतीश के न चाहते हुए भी अपनी सरकार बना सकती है, जिसकी संभावना बहुत ही कम है।
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जाहिर है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी तरफ से भी सारा जोड़-घटाव कर रहे होंगे। अगर बीजेपी उन पर दबाव डाले और वे इसके आगे नहीं झुकने पर अड़ जाएं तो बिहार में तेजस्वी यादव के लिए रास्ता बन सकता है या फिर राष्ट्रपति शासन की स्थिति बन सकती है।
तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री बनने का एक ही तरीका है और वह है जद(यू) का पूर्ण समर्थन या कम से कम 29 विधायकों को तोड़ना, यह संभावना भी कम ही लगती है।
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