बिहार में बीजेपी और उसकी सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) का गठबंधन क्या नवंबर, 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक चल पाएगा? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि पिछले कुछ दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो साफ़ पता चलता है कि जेडीयू-बीजेपी के रिश्ते सामान्य नहीं हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून का समर्थन करने को लेकर जेडी (यू) के भीतर ही उथल-पुथल शुरू हुई और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के पार्टी से इस्तीफ़ा देने तक की ख़बरें आईं।
प्रशांत किशोर ने इस क़ानून का खुलकर विरोध किया तो पार्टी के भीतर उनके ख़िलाफ़ भी आवाज़ें उठीं। लेकिन नीतीश कुमार ने बात को बिगड़ने से पहले ही संभाल लिया और कहा कि बिहार में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) को लागू नहीं किया जाएगा। यहां से बीजेपी-जेडीयू के बीच थोड़ी तकरार शुरू हुई क्योंकि अमित शाह कह चुके हैं कि मोदी सरकार देश भर में एनआरसी को लागू करेगी। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यह बयान कि उनकी सरकार बनने के बाद एनआरसी को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हुई है, इस पर सरकार की ख़ासी किरकिरी हुई।
रविवार को प्रशांत किशोर ने कहा था, ‘2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे का जो फ़ॉर्मूला था, वह 2014 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखे बिना किया गया था। लेकिन मेरे हिसाब से इसका कोई कारण नहीं है कि भविष्य में होने वाला चुनाव 2019 के फ़ॉर्मूले के आधार पर हो।’ 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू ने बिहार में 17-17 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। किशोर का कहना साफ़ था कि जेडीयू को बिहार विधानसभा चुनाव में ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए।
ताज़ा घटनाक्रम यह हुआ कि बिहार की सरकार में उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने किशोर के इस बयान पर जोरदार पलटवार किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘2020 का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाना तय है। सीटों के तालमेल का निर्णय दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व समय पर करेगा। कोई समस्या नहीं है।’
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सुशील मोदी ने एक और ट्वीट कर कहा, ‘बीजेपी और जेडीयू के बीच चंद वर्षों को छोड़ कर आपसी विश्वास का रिश्ता दो दशक पुराना और जांचा-परखा है।’ मोदी ने कहा कि एनडीए पूरी तरह एकजुट है।
प्रशांत के इस बयान पर जेडी (यू) के भीतर से भी आवाज़ उठी है। नीतीश कुमार के क़रीबी माने जाने वाले और राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह ने कहा, ‘पार्टी के भीतर कोई भी इस मुद्दे पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं है। कुछ लोग ऐसे हैं जो चर्चा में बने रहने के लिए इस तरह के बयान देते हैं जबकि सीटों का बंटवारा सौहार्द्रपूर्ण माहौल में होगा।’
कई दलों के लिए काम कर रहे पीके
प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC (आई-पैक) सिर्फ़ जेडी (यू) के लिए ही नहीं कई अन्य राजनीतिक दलों के लिए भी काम कर रही है। इसमें कई ऐसे दल भी हैं, जिनसे बीजेपी की कट्टर सियासी प्रतिद्वंद्विता है। प्रशांत किशोर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। इससे बीजेपी का नाराज होना तय है। कहा जाता है कि महाराष्ट्र में शिवसेना को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर अड़ने का सुझाव भी उन्होंने ही दिया था। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उन्होंने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात भी की थी।
पश्चिम बंगाल में किशोर ममता बनर्जी के लिए काम करने वाले हैं। जबकि बंगाल में बीजेपी किसी भी क़ीमत पर ममता को हटाना चाहती है। किशोर अगर ममता के लिए काम करेंगे तो फिर बीजेपी नाराज होगी। ऐसे में सवाल यह है कि किशोर बिहार के विधानसभा चुनाव में जेडी (यू) को समय दे पायेंगे। इसके अलावा उनकी कंपनी आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के लिए भी काम कर चुकी है।
शिवसेना और आजसू के साथ छोड़ने और अकाली दल के नाराजगी जताने के बाद माना यह जा रहा है कि बीजेपी पर दबाव बनाने की किसी रणनीति के तहत तो नीतीश के इशारे पर किशोर ऐसे बयान नहीं दे रहे हैं?
ऐसा नहीं है कि प्रशांत किशोर का जेडी (यू) में विरोध नहीं है। प्रशांत के नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने पर वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह ने कहा था कि अगर प्रशांत किशोर पार्टी छोड़कर जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। आरसीपी सिंह ने तंज कसते हुए कहा है कि वैसे भी प्रशांत किशोर को अनुकंपा के आधार पर पार्टी में शामिल किया गया था। आरसीपी सिंह के दोनों बयानों का मतलब साफ़ है कि पार्टी के अंदर किशोर का विरोध है।
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क्या किशोर पर कार्रवाई करेंगे नीतीश?
अब ऐसे में सवाल यह है कि क्या पार्टी किशोर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी। नीतीश कुमार को विधानसभा चुनाव में किशोर की काफ़ी ज़रूरत है। किशोर ने 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के लिए काम किया था और बीजेपी से अलग होने के बाद भी जेडीयू-आरजेडी गठबंधन को जीत दिलाई थी। किशोर का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर रहा है और कुछ मौक़ों को छोड़ दें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए रणनीति बनाने से लेकर आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को जीत दिलाने तक उनका रिकॉर्ड शानदार रहा है। किशोर को लेकर सुशील मोदी का क़रारा वार इन दोनों दलों के बीच उलझनों को बढ़ाएगा ही। अब या तो यह होगा कि नीतीश कुमार को किशोर पर कार्रवाई करनी होगी या फिर बीजेपी-जेडीयू गठबंधन तोड़कर अलग होंगे। बिहार में अगले विधानसभा चुनाव से पहले कई बड़े राजनीतिक घटनाक्रम होने तय हैं और देखना होगा कि आख़िर होता क्या है?
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