बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जेडीयू के ख़राब प्रदर्शन के बाद से ही पार्टी के मुखिया नीतीश कुमार ने दूर जा चुके सहयोगियों को क़रीब लाने की कोशिश शुरू कर दी थी। इनमें पहला नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का था। नीतीश को उनकी इन कोशिशों में कामयाबी मिलती दिख रही है क्योंकि बहुत जल्द कुशवाहा वापस आ सकते हैं। कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय होगा, यह बात भी कही जा रही है।
ख़बरों के मुताबिक़, कुशवाहा को जेडीयू में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 74, आरजेडी को 75 और जेडीयू को 43 सीटें मिली थीं।
अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के छह विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार परेशान दिख रहे हैं। कैबिनेट के विस्तार के लिए उन्हें लंबे वक़्त तक बीजेपी का मुंह देखना पड़ा था। इससे पहले जब भी वे बीजेपी के साथ रहे, कभी भी इतने कमजोर नहीं दिखाई दिए। नीतीश ने बीते दिनों संगठन की कमान अपने क़रीबी आरसीपी सिंह को सौंप दी थी।
ऐसे में जब बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है तो नीतीश कुमार अपने सियासी कुनबे को मजबूत करने में जुटे हैं और पुराने सहयोगियों को पार्टी में वापस ला रहे हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, बीते कुछ दिनों में कुशवाहा और जेडीयू के राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह की कई बार मुलाक़ात हो चुकी है। कुशवाहा के साथ आने से नीतीश का कुर्मी-कोइरी-कुशवाहा गठजोड़ मजबूत होगा। इन बिरादरियों का वोट नीतीश के साथ ही खड़ा रहा है।
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2013 में बनाई थी आरएलएसपी
कुशवाहा कभी नीतीश कुमार के ही साथ थे लेकिन मार्च 2013 में उन्होंने आरएलएसपी का गठन किया था और 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में तीन सीटें जीती थीं। उसके बाद वे मोदी सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन 2019 में सीट बंटवारे से नाख़ुश होकर उन्होंने एनडीए छोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने यूपीए के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन उनकी पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी।
2020 के विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था। इस फ्रंट में बीएसपी, एआईएमआईएम सहित कुछ और दल शामिल थे। कुशवाहा इस फ्रंट की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे।
बिहार की सियासी चर्चाएं
बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी नीतीश को दबाव में रखना चाहती है। बीजेपी ने सबसे पहले नीतीश के सबसे प्रबल समर्थक माने जाने वाले सुशील मोदी को दिल्ली भेज दिया, संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले दो लोगों को डिप्टी सीएम बना दिया और फिर जेडीयू के कोटे से मंत्री मेवालाल चौधरी का इस्तीफ़ा लेने को भी नीतीश को मजबूर कर दिया।
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