बिहार की सियासत में एक बार फिर उफान आया है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के द्वारा रविवार को की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहे जाने पर कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी कुछ तय नहीं हुआ है, इससे तमाम बड़े सवाल खड़े हो गए हैं। नीतीश कुमार के द्वारा मंगलवार को पार्टी के सांसदों, विधायकों की बैठक बुलाए जाने को लेकर भी पटना का माहौल गर्म है।
जेडीयू की सहयोगी बीजेपी की नज़र तेज़ी से बदल रहे तमाम घटनाक्रमों पर लगी हुई है।
ललन सिंह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनावी गठबंधन को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि कौन जानता है कि कल क्या होगा। जबकि कुछ दिन पहले ही पटना पहुंचे गृह मंत्री अमित शाह ने एलान किया था कि बीजेपी और जेडीयू 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे।
ललन सिंह का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे आरसीपी सिंह ने पार्टी छोड़ दी है। ललन सिंह ने यह भी साफ किया कि जेडीयू केंद्रीय कैबिनेट में शामिल नहीं होगी।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नीति आयोग की बैठक को छोड़कर बिहार में आयोजित कार्यक्रम में जाने को लेकर भी तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं कि नीतीश ने इस बैठक से किनारा क्यों किया?
ललन सिंह ने बीजेपी पर भी सीधा निशाना साधते हुए कहा कि कोई षड्यंत्र अब नहीं चलेगा, 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान मॉडल इस्तेमाल किया गया था और दूसरा चिराग मॉडल तैयार किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि वह आगे बताएंगे कि षड्यंत्र कैसे-कैसे हुआ और कहां-कहां हुआ।
नीतीश के खिलाफ अभियान
2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर हमला बोला था और इसका असर जेडीयू के प्रदर्शन पर पड़ा था। बीजेपी को चुनाव में 74 सीटों पर जीत मिली थी जबकि नीतीश कुमार की पार्टी सिर्फ 43 सीटों पर ही आकर अटक गई थी। जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 71 सीटें मिली थीं। उसके बाद जेडीयू की ओर से दबी जुबान में यह सवाल उठता रहा था कि आखिर चिराग पासवान ने किसके इशारे पर नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव में अभियान चलाया।
पिछले 3 महीने से बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फिर से करवट लेने की आहट सुनाई दे रही है। नीतीश कुमार ने आरजेडी की इफ्तार पार्टी में शिरकत की थी और अपने आवास पर रखी इफ्तार पार्टी में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को बुलाया था।
खटपट की प्रमुख वजहें
- नीतीश कुमार चाहते थे कि बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय कुमार सिन्हा को उनके पद से हटा दिया जाए। स्पीकर से उनकी कई बार तनातनी हो गई थी। लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी।
- 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्रीय कैबिनेट में सिर्फ एक सीट दिए जाने को लेकर भी नीतीश कुमार की नाराजगी देखने को मिली थी। तब जेडीयू कैबिनेट में शामिल नहीं हुई थी।
- नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के ‘एक देश एक चुनाव’ के विचार के भी खिलाफ हैं। कई विपक्षी दल भी इसका विरोध कर चुके हैं।
- 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से दूर कर दिया था और दो नेताओं को उप मुख्यमंत्री बना दिया था, इसे लेकर नीतीश के नाराज होने की खबर आई थी।
- आरसीपी सिंह के मोदी कैबिनेट में शामिल होने को लेकर भी नीतीश नाराज थे। जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के मुताबिक, नीतीश ने 2019 में यह फैसला लिया था कि जेडीयू केंद्रीय कैबिनेट में शामिल नहीं होगी बावजूद इसके आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए।
जाति जनगणना के मुद्दे पर भी नीतीश बीजेपी के सामने नहीं झुके। बिहार में अग्निपथ योजना के हिंसक विरोध के बाद बीजेपी-जेडीयू आमने-सामने आ गए थे।
महाराष्ट्र में शिवसेना में हुई टूट के बाद भी नीतीश कुमार और जेडीयू सतर्क थे। क्योंकि यह चर्चा थी कि बीजेपी जेडीयू और कांग्रेस के विधायकों में सेंध लगाकर अकेले दम पर सरकार बनाने का दावा कर सकती है।
बता दें कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू की राहें पहले भी अलग हो चुकी हैं। 2015 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन के साथ लड़ने वाले नीतीश 2017 में फिर से एनडीए में लौट आए थे। सीएए, एनआरसी जैसे कई मामलों में नीतीश कुमार की बीजेपी से दूरी जगजाहिर है।
आरसीपी सिंह के इस्तीफे और ललन सिंह के चिराग मॉडल और एक नया मॉडल तैयार किए जाने वाले बयान के बाद बिहार की सियासत में सवाल यही है कि बीजेपी-जेडीयू कितने दिन और साथ रहेंगे।
अगर नीतीश कुमार एक बार फिर आरजेडी और महागठबंधन के साथ आए तो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होगा और निश्चित रूप से इसका असर बिहार के साथ ही देश की राजनीति पर भी पड़ेगा।
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