लालू प्रसाद के कहे अनुसार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पेट में दांत हों या ना हों लेकिन नीतीश ने यह जरूर साबित किया है कि इस समय बिहार की राजनीति में उनसे बड़ा खिलाड़ी कोई नहीं है। ऐसे समय में जबकि जदयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह के बारे में यह नारा लग रहा था कि 'बिहार का मुख्यमंत्री कैसा हो आरसीपी सिंह जैसा' हो, जदयू ने शुक्रवार को एक ऐसा पत्र जारी किया जिसमें बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं। और कोई यह नहीं मान सकता कि यह काम नीतीश कुमार के प्लान से अलग किया गया होगा।
इस पत्र के आधार पर दैनिक भास्कर ने सुर्खी लगाई है' "आरसीपी परिवार ने 9 साल में 58 प्लॉट खरीदे।"
नीतीश कुमार के खास और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने आरसीपी सिंह को यह पत्र भेजा है जिसमें उन्होंने लिखा कि नालंदा जिला जदयू के दो साथियों का साक्ष्य के साथ परिवाद पत्र प्राप्त हुआ है। इसमें उल्लेख है कि अब तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार आपके और आपके परिवार के नाम से वर्ष 2013 से 2022 तक अकूत संपत्ति निबन्धित कराई गई है।
पत्र में यह भी लिखा गया कि जिन संपत्तियों की चर्चा है, उस में अनियमितता है। पत्र में यह अपेक्षा की गई है कि इस परिवाद के बिंदुओं पर आरसीपी बिंदुवार अपनी स्पष्ट राय से पार्टी को तत्काल अवगत कराएंगे।
जदयू ने आरसीपी पर जिन प्लॉटों को वाजिब आमदनी के बिना खरीदने का आरोप लगाया है, उनमें से अधिकांश उनकी पत्नी गिरजा सिंह और दो बेटियों लिपि सिंह और लता सिंह के नाम बताई जा रही हैं। ये जमीनें आरसीपी सिंह के गृह प्रखंड अस्थावां और नालन्दा जिले के ही एक और प्रखंड इस्लामपुर में बताई जा रही हैं। इन दोनों जगहों की जमीनों का क्षेत्रफल लगभग 40 बीघा बताया गया है।
यह बात तो जगजाहिर है कि आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के बीच अब कोई नज़दीकी नहीं बची है।
इधर, भाजपा इस कोशिश में लगी हुई है कि आरसीपी सिंह को अपनी पार्टी के हित में इस्तेमाल किया जाए। आरसीपी सिंह भी लगातार प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते आ रहे हैं।
इसके अलावा यह चर्चा भी काफी जोरों पर थी कि भाजपा जदयू में फूट डालकर अपनी अलग सरकार बनाने की कोशिश में है। यह माना जा रहा था कि जदयू के बड़े धड़े को भाजपा में शामिल कराने की जिम्मेदारी आरसीपी सिंह को दी गई है।
आरसीपी परिवार के बारे में जमीनों की जानकारी वास्तव में नीतीश कुमार के लिए दो राहतें लाने वाली हैं। पहली राहत तो यह है कि आरसीपी की यह कोशिश फिलहाल बड़े सवालों के घेरे में आ गयी है कि वे नीतीश का विकल्प बनकर बिहार में उभर रहे हैं। यानी पार्टी में रहकर वे नीतीश कुमार के सामने खड़े नहीं हो सकते। अब या तो पार्टी आरसीपी को निकाल दे या आरसीपी खुद यह फैसला करें कि उन्हें अब जदयू से त्यागपत्र दे देना है।
दूसरी बात यह है कि भाजपा आरसीपी का इस्तेमाल करके जदयू में फूट डालने की जो कोशिश कर रही थी, फिलहाल उसकी संभावना क्षीण हो गयी है।
जदयू ने आरसीपी के बारे में यह विस्फोटक जानकारी उजागर करने के साथ-साथ यह भी कहा है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जीरो टोलरेंस पॉलिसी है और उनकी यह हरकत उस पॉलिसी के खिलाफ है।
इन आरोपों के बारे में आरसीपी या उनके खेमे की ओर से अब तक कोई ठोस जवाब नहीं आया है। आरसीपी को हर तरह से सहयोग दे रही भाजपा ने भी अब तक इस बारे में कोई बयान जारी नहीं किया है। अलबत्ता नीतीश कुमार के समर्थक माने जाने वाले जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने यह बयान जरूर दिया है कि एनडीए में किसी तरह के भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करने की पॉलिसी के तहत ही यह मामला उजागर किया गया है।
आरसीपी के पास वाजिब आमदनी से अधिक की संपत्ति उजागर होने के बाद आरसीपी टैक्स की चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है। आरसीपी टैक्स के आरोप में यह बात कही जाती थी कि उनके द्वारा विभिन्न जगहों से नाजायज रकम की वसूली की जाती है। ये अलग बात है इस बारे में कभी किसी ने कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया।
अब आरसीपी के पास इतनी संपत्ति होने और उसके लिए कोई वाजिब आमदनी नहीं होने के आरोप के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा इसकी जांच ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय से करने की मांग की जा सकती है।
आरसीपी सिंह के बारे में वाजिब आमदनी से अधिक संपत्ति होने का मामला उस समय उजागर किया गया है जब पिछले कई सप्ताह से यह बात चर्चा में है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की नजदीकी काफी बढ़ रही है।
डॉक्टरों ने उन्हें किसी से मिलने जुलने से मना कर दिया था। 31 जुलाई को पटना पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी उनकी मुलाकात नहीं हो पाई थी।
राजनीतिक हलकों में उसे राजनैतिक क्वारेन्टीन भी कहा गया।
पटना में अब भी इस बात की चर्चा जोरों पर है कि नीतीश कुमार किसी भी समय एक ऐसे फैसले का ऐलान कर सकते हैं जो चौंकाने वाला तो होगा ही साथ ही भाजपा के लिए धक्के के जैसा होगा। यह भी हो सकता है कि जदयू की ओर से ही इस मामले की जांच की मांग की जाए। जदयू इस मामले को तेजस्वी यादव के साथ जाने का बहाना भी बना सकता है।
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