हर साल चमकी बुखार से मौतें होती रही हैं। इस बार भी इसका प्रकोप क़रीब एक पखवाड़ा पहले शुरू हो गया था लेकिन अफ़सोस की बात है कि जैसी तेज़ी अभी दिखाई जा रही है वह एक पखवाड़े पहले नहीं थी।
हाल में हुई कई घटनाओं को देखकर लगता है कि नीतीश कुमार और बीजेपी के संबंध बेहद ख़राब हो चले हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या नीतीश बीजेपी से नाता तोड़ लेंगे।
प्रधानमंत्री की रैली में ‘वंदे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारों के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चुप रहने को लेकर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।
सारे देश की नज़रें बेगूसराय सीट पर टिकी हुई हैं। कहा जा रहा है कि अगर कन्हैया कुमार मुसलिम मतों के विभाजन में सफल हो गए तो वह गिरिराज सिंह की जीत सुनिश्चित कर देंगे।
बिहार और झारखंड में लालू प्रसाद यादव की अपनी अलग पहचान है। लेकिन चारा घोटाले के मामले में सजायाफ़्ता लालू प्रसाद यादव अपने सबसे मुश्किल समय से गुजर रहे हैं।
बेगूसराय अब मार्क्स और लेनिन में नहीं, महादेव और शैलपुत्री में ज़्यादा विश्वास करता है। बेगूसराय के चुनाव में वामपंथी और भूमिहार समाज अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है।
‘शॉट गन’ के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा शनिवार को ही कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस ने उन्हें बिहार की पटना साहिब सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
यूपी, बिहार की सामाजिक न्याय की लड़ाई कुनबे की लड़ाई में तब्दील हो गई है। नेता वंचित तबके़ को एकजुट करने में नहीं बल्कि जातीय गोटियाँ बैठाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
मुज़फ़्फ़रपुर शेल्टर होम मामले ने जब तूल पकड़ा था तो मंजू वर्मा को बिहार सरकार से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। मंजू वर्मा के पति चन्द्रशेखर वर्मा पहले ही कोर्ट में आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
बिहार में मृत प्राय हो चुकी सीपीआई को इस बार कन्हैया कुमार से काफ़ी उम्मीदें दिख रही हैं। क्या जेएनयू का यह पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष पार्टी को पुनर्जीवित कर पाएगा?