बिहार चुनाव में पहली बार मत डालने वाले लोगों की संख्या में पिछले चुनाव की तुलना में 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा की कमी आई है। यह कमी क्या दिखाता है? क्या राजनीतिक दलों पर इसका असर पड़ेगा?
चुप और गंभीर रहने वाले, नपा-तुला और बेहद ज़िम्मेदारी से बोलने वाले और राजनीतिक विरोधियों पर भी संतुलित टिप्पणी करने वाले नीतीश कुमार को क्या हो गया है? वह क्यों बार-बार आपा खो रहे हैं?
एबीपी न्यूज़-सी वोटर का दावा है कि यह सर्वे बिहार की सभी 243 सीटों पर किया गया और इस दौरान 30 हजार 678 लोगों से बात की गई। सर्वे 1 अक्टूबर से लेकर 23 अक्टूबर के बीच किया गया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहें या न चाहें, पर विधानसभा चुनाव में बेरोज़गारी एक मुद्दा बन ही गया है। राष्ट्रीय जनता दल ने शनिवार को जारी घोषणा पत्र में औपचारिक रूप से यह कहा गया है कि उसकी सरकार बनी तो 10 लाख लोगों को रोज़गार दिया जाएगा।
बिहार में 15 से 29 साल की उम्र के लगभग 27.6 प्रतिशत लोग ही किसी तरह के रोज़गार में है। बिहार को सोचना है कि उसका विधानसभा अनुच्छेद 370 पर काम करेगा या रोज़गार पर।
बीजेपी के बड़े नेता चाहे वो जेपी नड्डा हों या फिर अमित शाह, भूपेंद्र यादव हों या फिर देवेंद्र फडणवीस- यह नहीं बता पाए हैं कि एलजेपी से एनडीए का नाता खत्म हो चुका है या नहीं।
क्या कोरोना की फ्री वैक्सीन का वादा किसी चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा हो सकता है? क्या होना चाहिए? यह सवाल देश में हर औसत बुद्धि का व्यक्ति भी बीजेपी से पूछ रहा है।
बीजेपी की नौकरियों के सपने में एक पेच है। पार्टी के मुताबिक़, सिर्फ चार लाख नौकरियां सरकारी होंगी और बाकी पंद्रह लाख आईटी हब और कृषि हब बनने के बाद मिलेंगी।
पटना से मुज़फ्फरपुर होते हुए मधुबनी और वहां से मोतिहारी के सफर के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग बुरे हाल में मिले। ट्रकों पर लदे दिल्ली की तरफ जाते मजदूर मिले।