ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश को ही बिहार में एनडीए का चेहरा बताया है। लेकिन नीतीश की इस कुर्सी पर फिर से न बैठने की इच्छा व्यक्त करने का क्या सियासी मतलब है।
ऐसे समय जब पूरी दुनिया में वामपंथ का मर्सिया पढ़ दिया गया है, भारत में दक्षिणपंथी और विभाजनकारी ताक़तें हावी हैं और बीजेपी व नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, इसके उलट वामपंथी दलों ने बिहार में ज़बरदस्त चुनावी नतीजे लाकर सबको हैरत में डाल दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में राष्ट्रीय जनता दल ने 144 सीटों पर लड़कर सर्वाधिक 23.1 प्रतिशत मत प्राप्त किये और इसे सर्वाधिक 75 सीटें मिली हैं। दूसरी ओर महज एक सीट पीछे रही बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़कर 19.5 प्रतिशत वोट के साथ 74 सीटें जीती हैं।
एनडीए व महागठबंधन के बीच काँटे की टक्कर है, स्थिति पेचीदिगियों से भरी हुई है। इस बीच यह भी ख़बर मिल रही है कि 123 ऐसी सीटें हैं, जहां एनडीए-महागठबंधन के बीच 3,000 से भी कम वोटों का अंतर है।
तीन चरणों में हुए बिहार विधानसभा चुनावों के वोटों की गिनती जारी है। कुल 243 सीटों पर चुनाव हुए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल युनाइटेड की अगुआई में एनडीए एक तरफ है तो तेजस्वी यादव वाले राष्ट्रीय जनता दल की अगुआई में महागठबंधन मैदान में है।
तमाम एग़्जिट पोल यही बता रहे हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए चारों खाने चित्त होने जा रहा है। यह सवाल पूछा जाएगा कि आख़िर क्या हो गया कि देश के सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू बिहार में नहीं चला?
आज तक- एक्सिस माइ इंडिया के एग़्जिट पोल से यह तसवीर उभर कर सामने आई है कि जिस बिहार में सबसे ज़्यादा संख्या युवाओं की है, वहां युवा मतदाताओं ने राष्ट्रीय जनता दल और उसके नेता तेजस्वी यादव को सबसे ज़्यादा पसंद भी किया है।
बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान हुए जबरदस्त घमासान के बाद अब नतीजों का इंतजार है। लेकिन एग्जिट पोल इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि राज्य में महागठबंधन के नेतृत्व में सरकार बन सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदान ख़त्म हो चुका है और इन वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी। लेकिन कई टेलीविज़न चैनलों ने अलग-अलग एजेन्सियों के साथ मिल कर एग़्जिट पोल किए हैं। इनके नतीजे दिलचस्प हैं।