बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2005 से बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार के गठन के इतने दिनों के बाद भी कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पा रहा है।
14 जनवरी के बाद कभी भी कैबिनेट का विस्तार हो सकता है। कैबिनेट के विस्तार में बिहार से सुशील मोदी के अलावा चिराग पासवान को मंत्री बनाए जाने की प्रबल संभावना है।
बिहार की राजनीति में 2021 नई चुनौतियाँ लेकर आया है। राज्य में 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू का शर्मनाक प्रदर्शन रहा। अब आरसीपी सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन देश भर में फैलता जा रहा है। मंगलवार को पटना में वाम दलों से जुड़े लोग सड़क पर उतरे और राजभवन की ओर मार्च किया।
पटना में जनता दल यूनाइटेड की दो दिनों की बैठक के बाद नीतीश कुमार का जो बयान सामने आया है उसमें अरुणाचल प्रदेश की घटना का दर्द साफ़ झलक रहा है। क्या बिहार की राजनीति में कुछ नया होने वाला है?
क्या बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव सुपर सीएम के रोल में आ गये हैं और नीतीश कुमार को लगभग हर फ़ैसले के लिए उनकी ‘हां’ या हरी झंडी का इंतजार करना पड़ रहा है।
यदि केंद्र सरकार के दावे और ज़िद के अनुसार कृषि क़ानून वाकई किसानों के हित में हैं और कृषि उत्पाद विपणन समिति क़ानून को ख़त्म करने से उन्हें बड़ा बाज़ार मिलेगा और ऊँची कीमतें मिलेंगी तो बिहार के किसान बदहाल क्यों हैं?
अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगता है कि अपराधियों में कानून का भय और रात्रि गश्ती बढ़ाने की ज़रूरत है तो यह सोलहवें साल में पहुंचे उनके शासन काल पर एक गंभीर सवाल है।