नीतीश कुमार ने बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। नीतीश आठवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। जबकि तेजस्वी यादव ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। उधर, नीतीश कुमार के द्वारा गठबंधन तोड़ने के फैसले के विरोध में बीजेपी ने पटना में प्रदर्शन किया और इस फैसले को जनता और जनादेश के साथ धोखा बताया।
शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि वह 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे। उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी के साथ जाने से उन्हें नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ रहते हुए जेडीयू के नेताओं के मन में असंतोष था और नई सरकार लंबे वक्त तक चलेगी।
नीतीश ने कहा कि प्रधानमंत्री पद पर उनकी कोई दावेदारी नहीं है और जो भी फैसला उन्होंने लिया है वह पार्टी के नेताओं से बातचीत के बाद ही लिया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि विपक्ष खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होगा।
नीतीश ने कहा कि जल्द ही विधानसभा का सत्र बुलाया जाएगा। माना जा रहा है कि बिहार में जल्द ही नीतीश की कैबिनेट का विस्तार होगा।
नीतीश ने मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। नीतीश और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव राज्यपाल से मिलने पहुंचे और सरकार बनाने का दावा पेश किया। नीतीश को महागठबंधन का नेता भी चुन लिया गया था।
बताया जा रहा है कि नीतीश शपथ लेने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली जा सकते हैं।
इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू के विधायकों, सांसदों और विधान परिषद सदस्यों के साथ बैठक की और इस बैठक में ही गठबंधन तोड़ने का फैसला लिया गया। बैठक में नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी ने हमें अपमानित किया और जेडीयू को कमजोर करने की कोशिश की।
जेडीयू और बीजेपी के बीच रिश्ते बिगड़ने की चर्चा पटना से लेकर दिल्ली तक के मीडिया और सियासी गलियारों में पिछले 3 महीने से थी और अंत में यह सच साबित हुई।
शाह ने की थी बात
सोमवार को यह खबर आई थी कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार से बात की और बिहार बीजेपी के भी कई नेता मुख्यमंत्री से मिले थे। यह भी खबर आई थी कि नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बात की है।
पहले भी अलग हो चुके हैं नीतीश
बता दें कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू की राहें पहले भी अलग हो चुकी हैं। 2013 में नरेंद्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद नीतीश एनडीए से बाहर निकल गए थे और उन्होंने महा गठबंधन के दलों आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाई थी। 2015 का विधानसभा चुनाव उन्होंने महागठबंधन के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन 2017 में नीतीश फिर से एनडीए में लौट आए थे।
किसके पास कितने विधायक
243 सदस्यों वाली बिहार की विधानसभा में अभी 242 विधायक हैं। अनंत सिंह की विधानसभा सदस्यता ख़त्म की जा चुकी है। आरजेडी के पास 79, बीजेपी के पास 77, जेडीयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, सीपीआई (एमएल) के पास 12, एआईएमआईएम के पास 1, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के पास 4, सीपीएम के पास 2, सीपीआई के पास 2 और एक निर्दलीय विधायक हैं। सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत है। जो नीतीश कुमार और आरजेडी के साथ आने से बन जाएगी। इसके बाद कांग्रेस और वामदलों का समर्थन भी इस सरकार को मिलेगा। क्योंकि महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं।बिहार की राजनीति में यह साफ है कि नीतीश कुमार जिस ओर जाएंगे सरकार उसी की बनेगी। नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ आते हैं तो एनडीए की सरकार बनती है और जब महागठबंधन के साथ जाते हैं तो महागठबंधन में शामिल दल राज्य में सरकार बनाते हैं।
नीतीश कुमार का महागठबंधन के साथ आना 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है और निश्चित रूप से इसका असर बिहार के साथ ही देश की राजनीति पर भी पड़ेगा।
साजिश का इशारा!
जेडीयू ने रविवार को इस ओर संकेत किया था कि नीतीश कुमार के खिलाफ साजिश रची जा रही है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने बीजेपी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा, कोई षड्यंत्र अब नहीं चलेगा, 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान मॉडल इस्तेमाल किया गया था और दूसरा चिराग मॉडल तैयार किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि वह आगे बताएंगे कि षड्यंत्र कैसे-कैसे हुआ और कहां-कहां हुआ।
ललन सिंह ने यह भी कहा था कि भविष्य में होने वाले चुनाव में गठबंधन के लिए अभी कुछ तय नहीं हुआ है। जेडीयू का कहना है कि आरसीपी सिंह बिना नीतीश कुमार की स्वीकृति के मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए थे।
खटपट की प्रमुख वजहें
- नीतीश कुमार चाहते थे कि बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय कुमार सिन्हा को उनके पद से हटा दिया जाए। स्पीकर से उनकी कई बार तनातनी हो गई थी। लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी।
- 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्रीय कैबिनेट में सिर्फ एक सीट दिए जाने को लेकर भी नीतीश कुमार की नाराजगी देखने को मिली थी। तब जेडीयू कैबिनेट में शामिल नहीं हुई थी।
- नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के ‘एक देश एक चुनाव’ के विचार के भी खिलाफ हैं। कई विपक्षी दल भी इसका विरोध कर चुके हैं।
- आरसीपी सिंह के मोदी कैबिनेट में शामिल होने को लेकर भी नीतीश नाराज थे। जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के मुताबिक, नीतीश ने 2019 में यह फैसला लिया था कि जेडीयू केंद्रीय कैबिनेट में शामिल नहीं होगी बावजूद इसके आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए।
- 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से दूर कर दिया था और दो नेताओं को उप मुख्यमंत्री बना दिया था, इसे लेकर नीतीश के नाराज होने की खबर आई थी।
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