क्या बिहार पहुंचे प्रवासी मजदूरों को वहां के क्वारेंटीन सेंटर्स में अच्छी सुविधा नहीं मिल रही है। क्योंकि बीते कई दिनों में क्वारेंटीन सेंटर्स में रह रहे मजदूरों ने वीडियो जारी कर बताया है कि वे बेहद ख़राब हालात में वहां रह रहे हैं।
देश भर के कई राज्यों में काम कर रहे बिहार के प्रवासी मजदूरों ने पहले उन्हें घर पहुंचाने के लिए उग्र प्रदर्शन किया। सूरत से लेकर अहमदाबाद और लुधियाना से लेकर मुंबई में वे कई बार सड़कों पर सिर्फ़ यह बताने के लिए उतरे कि लॉकडाउन के कारण काम-धंधा बंद होने से उन्हें खाने के भी लाले पड़ गए हैं। ऐसे में राज्य सरकार उन्हें यहां से निकालकर उनके घर पहुंचाए।
पहले तो राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय तक प्रवासियों को घर वापस लाने के मुद्दे पर अनमना रूख अपनाते रहे। लेकिन राज्य में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव और विपक्षी राजनीतिक दल आरजेडी द्वारा इसे मुद्दा बनाए जाने के बाद नीतीश कुमार इसके लिए तैयार हुए।
प्रवासी मजदूरों का हंगामा
अब जब प्रवासी मजदूर राज्य में पहुंच गए तो क्वारेंटीन सेंटर्स के बदतर हालातों के कारण उनका पारा चरम पर है। मधुबनी, सहरसा, बेगूसराय से लेकर कई अन्य जगहों पर बने क्वारेंटीन सेंटर्स में रुके प्रवासी मजदूरों का कहना है कि उन्हें बेहद ख़राब खाना दिया जा रहा है और बाक़ी इंतजाम भी ठीक नहीं हैं। बेगूसराय में तो मजदूरों ने जमकर हंगामा भी किया।
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव लगातार नीतीश कुमार पर हमला बोल रहे हैं। प्रवासी मजदूरों के ट्रेन भाड़े से लेकर क्वारेंटीन सेंटर्स की बदहाली को तक, तेजस्वी लगातार उठा रहे हैं।
सहरसा के क्वारंटाइन सेंटर में अप्रवासी श्रमिकों को खाने के लिए मात्र “सूखा चूरा, नमक और मिर्च” दिया जा रहा है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) May 17, 2020
शर्म करो, ये ग़रीब मज़दूर भी इंसान है पशु नहीं।
15 वर्षों में 55 घोटाले कर पूर्णत: बिहार को चूसने वाली नीतीश-भाजपा सरकार बिहार के लिए ख़ुद सबसे बड़ी विपदा बन चुकी है। pic.twitter.com/cMIPQCM1f4
प्रवासी मजदूरों से बढ़ा संक्रमण
बिहार में कोरोना संक्रमण के अब तक 1326 मामले सामने आए हैं। इनमें से लगभग आधे मामले प्रवासी मजदूरों के हैं। अभी तक कुल 651 प्रवासी मजदूर कोरोना पॉजिटिव मिले हैं और 2 हज़ार से ज़्यादा लोगों की रिपोर्ट आनी बाक़ी है। ज़्यादातर प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र, मुंबई, दिल्ली से आ रहे हैं। ये इलाक़े पहले से ही रेड ज़ोन बने हुए हैं।
राज्य में बाहर से लाखों प्रवासी मजदूरों का आना जारी है। राज्य सरकार इतनी सक्षम नहीं है कि वह सभी के कोरोना टेस्ट कर सके। टेस्टिंग की स्थिति भी राज्य में बेहद दयनीय है। लेकिन उससे बड़ी चुनौती इन लोगों को 21 दिन तक क्वारेंटीन सेंटर्स में रखना है। क्योंकि लॉकडाउन के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था बदहाल है और ऐसे में नीतीश के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं।
पटना, रोहताश, सारण, नालंदा, मुंगेर, बक्सर, बेगूसराय, मधुबनी, कैमूर, भागलपुर, सिवान, खगड़िया, भोजपुर, नवादा, बांका, गोपालगंज जिलों में कोरोना संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा है।
लगातार आलोचना का शिकार हो रहे नीतीश कुमार की सरकार अब डैमेज कंट्रोल की कोशिश में है। राज्य सरकार का कहना है कि वह वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को उनकी योग्यता के आधार पर रोज़गार उपलब्ध करवाएगी और स्वरोज़गार के लिए प्रेरित कर रही है।
क्वारेंटीन सेंटर्स की बदहाली के वीडियो नीतीश के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं और सरकार से उनकी विदाई का कारण बन सकते हैं क्योंकि इससे सीधा संदेश यही जा रहा है कि ‘सुशासन बाबू’ कोरोना संकट को संभाल पाने में फ़ेल साबित हो रहे हैं।
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