बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। एनडीए के लिए जेडीयू और महागठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी दिख रही हैं। अपने-अपने गठबंधन में इन दलों को जितना नुकसान, कम नुकसान या फायदा और अधिक फायदा होगा, उसी पर यह तय होगा कि पहले चरण में किसका पलड़ा भारी रहने वाला है। इस हिसाब से हम आगे देखेंगे कि पलड़ा महागठबंधन का भारी है और चुनाव नतीजों में दोनों गठबंधन में कम से कम 10 सीटों का फासला रह सकता है।
2015 का स्ट्राइक रेट
जेडीयू ने 2015 में महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ा था। तब उसने इस बार के पहले चरण की 71 सीटों में 29 पर उम्मीदवार उतारे थे और 18 सीटों पर उसकी जीत हुई थी और उसका स्ट्राइक रेट 62 फीसदी था। आरजेडी के मुकाबले यह स्ट्राइक रेट बहुत कम था। आरजेडी ने 29 सीटों में से 27 पर जीत हासिल की थी और उसका स्ट्राइक रेट 93 फीसदी था।
कांग्रेस ने महागठबंधन में रहते हुए पहले चरण की 13 में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसका स्ट्राइक रेट 69 फीसदी था।
गौर कीजिए कि पहले चरण की इन सीटों पर कांग्रेस का स्ट्राइक रेट भी जेडीयू से ज्यादा था। वहीं, बीजेपी को 40 में से 13 सीटें मिली थीं और उसका स्ट्राइक रेट सबसे कम यानी 32 फीसदी था।
जेडीयू के लिए मुश्किल
अगर जेडीयू अपना महागठबंधन वाला स्ट्राइक रेट बरकरार रखता है तो उसे ताजा चुनाव में पहले चरण की 35 में से 22 सीटें मिलनी चाहिए। जेडीयू का स्ट्राइक रेट बढ़ने की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती और वास्तव में उसका स्ट्राइक रेट 25 फीसदी तक गिर सकता है और वह 9 या 10 सीट के स्तर पर भी आ सकती है। इसके पीछे कई कारण हैं-
- जेडीयू के ख़िलाफ़ जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी
- जेडीयू को एलजेपी दो-चार सीटों पर हराने की स्थिति में
- जेडीयू के ख़िलाफ़ माले भी महागठबंधन की ताकत पाकर 2 या 3 सीटें जीतने की स्थिति में
- जेडीयू-आरजेडी की 24 सीटों पर सीधी लड़ाई है। बीजेपी के बागी 23 नेताओं में ज्यादातर इन्हीं सीटों पर हैं। जेडीयू को जीत का प्रतिशत बढ़ाने के लिए इनमें ज्यादा वोट बटोरने होंगे जो बेहद मुश्किल है।
- जेडीयू के लिए खुश होने की बात है कि उसके ख़िलाफ़ 11 सीटों पर कांग्रेस है। मगर, कांग्रेस भले ही बीजेपी की आसान शिकार हो लेकिन जेडीयू के लिए वह आसान नहीं शिकार नहीं है। महागठबंधन में भी कांग्रेस का स्ट्राइक रेट जेडीयू से ज्यादा था।
महागठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी
महागठबंधन में कांग्रेस कमजोर कड़ी है और उन सीटों पर एनडीए को सहूलियत है जहां कांग्रेस चुनाव मैदान में है। पहले चरण में कांग्रेस 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बीता स्ट्राइक रेट बरकरार रहे तो उसे 14 या 15 सीटें मिल सकती हैं। मगर कांग्रेस के लिए यह प्रदर्शन बरकरार रखना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उसे अब जेडीयू के वोट बैंक का फायदा नहीं मिलेगा। बीजेपी और जेडीयू के लिए चुनाव मैदान में प्रतिद्वंद्वी के रूप में कांग्रेस पसंदीदा पार्टी है। फिर भी कांग्रेस के हक में यह बात जाती है कि-
- ज्यादातर सीटों पर मुकाबले में बीजेपी न होकर जेडीयू है जिसके ख़िलाफ़ वोटरों में और खासकर युवाओं में जबरदस्त नाराज़गी है। कांग्रेस की लडाई जेडीयू से 11 सीटों पर है और बीजेपी से 7 सीटों पर है।
- कांग्रेस के लिए एक और राहत की बात यह है कि 3 सीटों पर उसके मुकाबले हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा है जिसने पिछले चुनाव में एक सीट हासिल की थी लेकिन इस बार वह एक सीट बचानी भी मुश्किल लग रही है।
एनडीए में बीजेपी की स्थिति वही है जो महागठबंधन में आरजेडी की थी। संयोग से 2015 में आरजेडी की ही तरह 2020 में बीजेपी 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सवाल यह है कि पहले चरण में क्या बीजेपी भी 2015 में आरजेडी की तरह 2020 में 27 सीटें जीत पाएगी? बीजेपी की मुश्किल यह है कि -
- पहले चरण में सहयोगी जेडीयू के 17 बागी नेता चुनाव मैदान में हैं। वहीं बीजेपी का 14 सीटों पर मुकाबला आरजेडी से है तो 11 पर कांग्रेस से और 4 सीटों पर भाकपा माले से।
- कांग्रेस आमने-सामने के चुनाव में बीजेपी के सामने कमजोर ज़रूर लगती है लेकिन जब महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर होती है तो उसकी ताकत कई गुणा बढ़ जाती है।
- भाकपा माले के साथ भी यही स्थिति है। सभी चार सीटों पर माले को हराना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।
- आरजेडी पहले से बीजेपी के लिए मुश्किल प्रतिद्वंद्वी है। ऐसे में बीजेपी अगर 2015 वाले अपने प्रदर्शन 32 फीसदी के रेट को दुगुना भी कर लेती है तो 64 फीसदी स्ट्राइक रेट के हिसाब से वह इस बार 29 में से 18 या 19 सीटें ही जीत सकेगी।
10-11 सीटों तक का फासला
एनडीए में बीजेपी 18 या 19 और जेडीयू 9 या 10 सीटें जीते तो पहले चरण का स्कोर 27-29 होता है। किसी भी सूरत में एनडीए को 30 सीटों से ज्यादा का अनुमान नहीं दिखता। जाहिर है कि पहले चरण में 71 सीटों पर हो रहे चुनाव में महागठबंधन और एनडीए के बीच मुकाबले में 10-11 सीटों तक का फासला रह सकता है।
जैसा कि आप ऊपर देख और समझ सकते हैं कि यह कोई अनुमान नहीं, बल्कि नये समीकरण, एंटी इनकंबेंसी, बागी नेता और दल और दूसरे तमाम फैक्टर्स के बीच पिछले स्ट्राइक रेट को ध्यान में रखते हुए किया गया आकलन है।
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