बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को सीबीआई ने डीएलएफ़ घूस मामले में क्लीन चिट दे दी है। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से यह ख़बर दी है। लालू को हाल ही में चारा घोटाला मामले में जमानत मिली थी। चारा घोटाला मामले में लालू तीन साल तक जेल में रहे थे।
सीबीआई की आर्थिक अपराध शाखा ने जनवरी, 2018 में इस मामले में लालू यादव और डीएलफ़ ग्रुप के ख़िलाफ़ जांच शुरू कीथी।
इस मामले में आरोप यह था कि डीएलएफ़ ग्रुप की नज़र मुंबई के बांद्रा में रेलवे के एक प्रोजेक्ट और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के नवीनीकरण के प्रोजेक्ट पर थी। इन प्रोजेक्ट्स को हासिल करने के लिए डीएलएफ़ ग्रुप ने पूर्व रेल मंत्री लालू को घूस दी थी। इसके साथ ही ग्रुप ने दक्षिणी दिल्ली में भी एक प्रॉपर्टी भी आरजेडी मुखिया लालू को दी थी।
विपक्षी नेता निशाने पर
जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से विपक्षी नेताओं को जांच एजेंसियों की ओर से समन भेजे जाने, पूछताछ की कार्रवाई शुरू होने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। कई नेताओं के ख़िलाफ़ ये कार्रवाई तब होती है, जब उनके राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले होते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लालू यादव के ख़िलाफ़ ऐसा ही माहौल बनाया गया था तो पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीबीआई और ईडी ने ममता सरकार के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, पूर्व मंत्री मदन मित्र को समन भेजा था। इसके अलावा सीबीआई ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से कोयला चोरी के मामले में पूछताछ की थी और उनकी साली मेनका गंभीर, उनके पति अंकुश अरोड़ा और ससुर पवन अरोड़ा को भी समन भेजा था।
इसी तरह हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश-मायावती को, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार, सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा सहित कई और नेताओं और आम आदमी पार्टी के कई विधायक इन जांच एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर चुके हैं।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या केंद्र सरकार सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स जैसी प्रतिष्ठित जांच एजेंसियों का अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए बेजा इस्तेमाल कर रही है।
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