यदि केंद्र सरकार के दावे और ज़िद के अनुसार कृषि क़ानून वाकई किसानों के हित में हैं और कृषि उत्पाद विपणन समिति क़ानून को ख़त्म करने से उन्हें बड़ा बाज़ार मिलेगा और ऊँची कीमतें मिलेंगी तो बिहार के किसान बदहाल क्यों हैं?
उन्हें क्यों न्यूनतम समर्थन मूल्य की आधी कीमत पर अपना उत्पाद बेचना पड़ रहा है? मोदी सरकार के दावे के उलट वहाँ तो बिचौलियों की पकड़ पहले से अधिक मजबूत हो चुकी है और उनके रहमो-करम पर निर्भर किसान अपनी लागत तक नहीं निकाल पा रहे हैं।
नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिन बाद ही कृषि उत्पाद विपणन समिति क़ानून ख़त्म कर दिया। इसका नतीजा यह निकला कि धान की कटाई के समय गाँव-गाँव में घूम कर खरीद करने वाले बिचौलिए प्रति क्विंटल 850 रुपए से शुरू करते हैं और औसत कीमत 900 रुपए तक जाती है। बाद में यह थोड़ी बढ़ती है, लेकिन 1,000 रुपए प्रति क्विंटल तक भी नहीं पहुँच पाती है।
ज़्यादातर किसान अपनी लागत भी नहीं निकाल पाते हैं, घाटे का सौदा करने को मजबूर हैं, लेकिन उनके पास कोई उपाय नहीं है। बिहार में यह हाल 14 साल से है। दूसरी ओर सरकार पंजाब के किसानों से 1,868 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदती है।
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
एपीएमसी क़ानून ख़त्म
एपीएमसी ख़त्म करने के नीतीश कुमार के फ़ैसले के पहले तक बिहार के किसान व्यापार मंडलों के ज़रिए अपने उत्पाद बेचते थे। हालांकि सारे किसान ऐसा नहीं कर पाते थे, पर जो वहाँ तक पहुँच जाते थे, उन्हें उचित कीमत मिल जाती थी। इसके अलावा बाज़ार तक पहुँचने वाले किसानों को भी उचित कीमत मिल जाती थी, वे अपने उत्पाद को वहां सुखा भी लेते थे।
अर्थशास्त्री डी. एम. दिवाकर ने 'डाउन टू अर्थ' से कहा,
“
"मोदी सरकार कहती है कि कृषि क़ानूनों का कोई बुरा असर किसानों पर नहीं पड़ेगा। इस तर्क के आधार पर तो बिहार के 94 प्रतिशत किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होना चाहिए था, क्योंकि वे न तो मंडी में जाते हैं न ही उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है। पर उनकी स्थिति पहले से बहुत ही बदतर हुई है।"
डी. एम. दिवाकर, अर्थशास्त्री
उन्होंने इसके साथ यह ज़ोर देकर कहा कि बिहार में खेती-बाड़ी अब मुनाफ़े का काम नहीं रह गया और यह एक बड़ी वजह है कि बिहार के किसान पंजाब-हरियाणा जाकर खेतों में मजदूरी करना बेहतर समझते हैं।
बिचौलिए मस्त, किसान पस्त!
एक व्यापार मंडल और मगध केंद्रीय सहकारिता बैंक के प्रमुख रह चुके बलिराम शर्मा ने 'डाउन टू अर्थ' पत्रिका से किसानों की स्थिति पर कहा, "बिहार के अधिकतर किसानों की आय का ज़रिया खेती ही है, वे उसी से बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकालते हैं या बेटी का ब्याह कराते हैं। ऐसे में वे औने-पौने दाम पर अपने उत्पाद बेचने को मजबूर हो जाते हैं।"
दिल्ली के पास डटे प्रदर्शनकारी किसान
बीते 50 साल में बिहार के किसानों की बदतर होती आर्थिक स्थिति पर एक उदाहरण देते हुए शर्मा ने कहा, "1968-69 में एक क्विंटल गेहूं की कीमत 76 रुपए थी जबकि एक सरकारी स्कूल शिक्षक का वेतन 70-80 रुपए मासिक था, यानी वह एक बार में एक क्विंटल गेहूं नहीं खरीद सकता था। आज गेहूं की कीमत 2,000 रुपए क्विंटल तक पहुँची है जबकि स्कूल शिक्षक का मासिक वेतन 70,000 रुपए हो चुका है।"
आन्दोलन क्यों नहीं?
लेकिन बिहार के किसान आन्दोलन क्यों नहीं कर रहे हैं, सवाल यह है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बिहार के अधिकतर किसानों के पास बहुत ही कम ज़मीन है। 'डाउन टू अर्थ' की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में किसानों के पास औसतन 0.9 हेक्टेअर ज़मीन है। उनके पास अतिरिक्त कृषि उत्पाद नहीं होता है। जिनके पास थोड़ी अधिक ज़मीन है, उनके पास जो उत्पाद होता है, वह सरकार नहीं खरीदती है, उस पर एमएसपी नहीं मिलता है। वह घाटे में ही बेचने पर मजबूर है। एमसपी है ही नहीं तो वे इसकी रक्षा के लिए सड़कों पर क्या उतरें?
जमुई ज़िले के किसान नरेश मुर्मू ने 'डाउन टू अर्थ' से कहा, "मैंने धान की खेती में 12,000 रुपए लगाए और उसके बदले मुझे 8,000 रुपए मिले, मुझे एक सीज़न में 4,000 रुपए का नुक़सान हुआ।"
नरेंद्र मोदी सरकार अपनी ज़िद पर अड़ी हुई है, कृषि क़ानूनों को वापस लेने से साफ इनकार कर रही है। क्या उसे इससे राजनीतिक नुक़सान होगा? क्या कहना है वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का, देखें।
यह हाल उस राज्य का है, जहां 70 प्रतिशत आबादी किसानी पर निर्भर है।
सवाल वहीं लौटता है। बिहार में हुऐ प्रयोग और उसके नतीजों की ओर केंद्र सरकार ने क्यों आँखें मूंद रखी हैं? वह क्यों नहीं मान रही है कि बिहार में बिचौलियों की पकड़ मजबूत हुई है, कृषि उत्पादों की कीमत कम हुई है, किसान घाटे की खेती कर रहे हैं और राज्य से पलायन का यह एक बड़ा कारण बन रहा है?
गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।
नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & Norms व Cancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 6 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 180 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 6 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 12 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से एक वर्ष के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 12 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष निमंत्रण (Special Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
* स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष आरक्षित प्रीमियम निमंत्रण (Specially Reserved Premium Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
अति विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
** स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
This membership is open only to Non Resident Indians (NRI), Persons of Indian Origin (PIO), Overseas citizens of India (OCI) or Indian Citizens currently staying abroad. If you are not belong to any of these categories, please do not proceed.
*Membership will be cancelled if the above declaration is found to be false and Membership Fee will be refunded to the source account which was used to pay it.
अपनी राय बतायें