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प्रतीकात्मक और फाइल फोटो

जाति सर्वेक्षण के नतीजे अब 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को देंगे चुनौती 

बिहार सरकार की ओर से कराए गए जाति सर्वेक्षण के आंकड़े 2 अक्टूबर को जारी कर दिए गए हैं। जातियों की गणना और उसके आंकड़े जारी करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया है।  
ये आंकड़े बताते हैं कि बिहार में सबसे ज्यादा आबादी अति पिछड़ा वर्ग की 36.01 प्रतिशत है। इसके साथ ही  पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 प्रतिशत है। दोनों की आबादी को जोड़ दिया जाए तो इनकी आबादी 63 प्रतिशत से अधिक हो जाती है। वहीं अनुसूचित जाति की आबादी भी 19.65 प्रतिशत है। दूसरी तरफ सामान्य वर्ग की आबादी मात्र 15.52 प्रतिशत है। 
ऐसे में अब सवाल उठता है कि अब ये आंकड़े आने के बाद आगे क्या होगा और इसको कराने का जदयू-राजद का मकसद क्या था? बिहार में किस जाति के कितने लोग हैं यह संख्या तो अब सामने आ चुकी है लेकिन इस आंकड़े से आगे किसे क्या नफा और किसे क्या नुकसान होगा?
राजनीति की नब्ज पर पकड़ रखने वाले मानते हैं कि अब इन आकंड़ो का इस्तेमाल जदयू, राजद और कांग्रेस समेत अन्य दल अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करेंगे। इसमें उन्हें बड़ी सफलता भी मिल सकती है। 
माना जा रहा है कि बिहार में अब पहली मांग यह उठ सकती है कि सरकारी नौकरियों में मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को खत्म किया जाए और आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। यह जाति आधारित सर्वे आरक्षण की सीमा को चुनौती देने का रास्ता तैयार करेगा।
पिछड़े वर्ग और अत्यंत पिछड़े वर्ग के बीच से अब अगली मांग यह आएगी कि उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में और अधिक आरक्षण दिया जाए। इन दोनों की आबादी बिहार में 63 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में उनका तर्क हो सकता है कि उन्हें उनकी आबादी के मुताबिक आरक्षण दिया जाना चाहिए जो कि उनकी आबादी से अभी आधे से भी कम दिया जा रहा है। 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि बिहार में जाति आधारित सर्वे एक बार हो जाएगा तो 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ाया जा सकेगा। इसे देशभर में होना चाहिए ताकि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ाया जा सके।  
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पूरे देश में जातिगत जनगणना करवायेंगे

जाति सर्वे के आंकड़े आने के बाद राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि आज गांधी जयंती पर इस ऐतिहासिक क्षण के हम सब साक्षी बने हैं। बीजेपी की अनेकों साजिशों, कानूनी अड़चनों और तमाम षड्यंत्र के बावजूद आज बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे को रिलीज किया। ये आंकडे वंचितों, उपेक्षितों और गरीबों के समुचित विकास और तरक़्क़ी के लिए समग्र योजना बनाने एवं हाशिए के समूहों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने में देश के लिए नज़ीर पेश करेंगे।
लालू यादव ने कहा है कि सरकार को अब सुनिश्चित करना चाहिए कि जिसकी जितनी संख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी हो। हमारा शुरू से मानना रहा है कि राज्य के संसाधनों पर न्यायसंगत अधिकार सभी वर्गों का हो। केंद्र में 2024 में जब हमारी सरकार बनेगी तब पूरे देश में जातिगत जनगणना करवायेंगे और दलित, मुस्लिम, पिछड़ा और अति पिछड़ा विरोधी भाजपा को सता से बेदखल करेंगे। 
इसकी रिपोर्ट जारी होने के चंद घंटे बाद ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग कर दी है। उन्होंने कहा है कि बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आ चुकी है। सूबे में एससी,एसटी, ओबीसी और ईबीसी की आबादी तो बहुत है पर उनके साथ हक़मारी की जा रही है। उन्होंने एक्स पर लिखा है कि  नीतीश कुमार से आग्रह करता हूं कि राज्य में आबादी के प्रतिशत के हिसाब से सरकारी नौकरी - स्थानीय निकायों में आरक्षण लागू करें, वही न्याय संगत होगा। 
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1990 के दशक की मंडल राजनीति लौट सकती है

ये आंकड़े सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को चुनौती देने का द्वार खोल सकते हैं। साथ ही 1990 के दशक की मंडल राजनीति का पुनर्मूल्यांकन होगा। राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि ये आंकड़े आने वाले दिनों में मंडल कमीशन के बाद हुई राजनीति जैसा माहौल बना सकते हैं। 
अगर ऐसा होता है तो ओबीसी राजनेताओं को इसका राजनैतिक फायदा होगा। कितना लाभ उन्हें होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि अगले कुछ दिनों में ओबीसी राजनीति के केंद्र में होगा। एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस सर्वे का प्रभाव अब इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे मतदाता तक कितनी अच्छी तरह पहुंचाया जाता है। अगर कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया गठबंधन इसे मजबूत तरीके से उठाता है और देश भर में जाति सर्वे की मांग करता है तो यह उसके पक्ष में जा सकता है। 

महिला आरक्षण में ओबीसी कोटे की बढ़ेगी मांग 

जाति सर्वेक्षण के आकंड़े सामने आने के बाद पिछले दिनों बनाए गए महिला आरक्षण कानून के भीतर ओबीसी कोटे की मांग अब बढ़ेगी। कई दशकों तक यह सिर्फ इसलिए संसद से पास नहीं हो पाया था क्योंकि कई दल और नेताओं की मांग थी कि इसमें ओबीसी कोटा तय किया जाए। अब बिना ओबीसी कोटा तय किए महिला आरक्षण कानून बना है।  
कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियां अब मांग करेंगी कि महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाए। यह मांग अब तेज होगी। भाजपा के लिए अब इस मांग को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। 
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क़मर वहीद नक़वी
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