बिहार विधानसभा चुनाव में जीत का जश्न बीजेपी ने क़रीब-क़रीब उसी अंदाज में मनाया जिस तरह से लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी सरकार को मिली दूसरी सफलता के समय मनाया गया था। लेकिन क्या बिहार की जीत इतनी बड़ी है? या फिर मोदी 2.0 में आर्थिक मोर्चे पर विफलता, कोरोना महामारी के संकट में स्वास्थ्य सेवा के ढांचे की नाकामी, मजदूरों के पलायन, बेरोज़गारी, सीमा पर चीनी सैनिकों की घुसपैठ जैसे मुद्दों पर जवाब देने में असहज पा रही सरकार इस जीत के माध्यम से यह बताने की कोशिश कर रही है कि जनता ने उसकी नीतियों पर ठप्पा लगा दिया है!
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने तो अपने भाषण में इस बात का जिक्र भी किया कि यह जीत "कोरोना महामारी में मोदी सरकार द्वारा किये गए कार्यों पर जनता की मुहर है।”
पीएम मोदी ने कहा, “बीजेपी की सफलता के पीछे उसका गवर्नेंस मॉडल है। जब लोग गवर्नेंस के बारे में सोचते हैं, तो बीजेपी के बारे में सोचते हैं। बीजेपी सरकारों की पहचान ही है- गुड गवर्नेंस।” उन्होंने आगे कहा, “बीजेपी ही देश की एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है, जिसमें गरीब, दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, अपना प्रतिनिधित्व देखते हैं।”
सत्ता की सफलता और विफलता का फासला महज 12,774 वोटों के अंतर से ही तय हुआ। यानी जीत-हार का अंतर मात्र 0.03 प्रतिशत वोटों से निर्धारित हुआ।
इतनी कड़ी स्पर्धा वाले इस चुनाव में 7,06,252 यानी करीब 1. 7 फीसदी वोट NOTA को पड़े हैं जो यह दर्शाता है कि लोगों में सरकार के कामकाज और राजनीतिक विकल्प को लेकर नाराजगी भी कम नहीं है।
बीजेपी भले ही इस जीत को बड़ी बताने में जुटी है क्योंकि इस चुनाव में उसे सीटें पिछली बार के मुकाबले ज्यादा मिल गयी हैं लेकिन उसका मत प्रतिशत घटा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 53 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। तब उसे 24.42% वोट मिले थे, लेकिन इस बार उसे 19.46 प्रतिशत मत मिले हैं।
2015 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से तुलना करें तो इस बार एनडीए गठबंधन का कम अंतर से जीत/हार वाली सीटों का औसत करीब दो गुना हो गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन 2 प्रतिशत से कम मतों से करीब 10 फीसदी सीटें जीता या हारा था। जबकि इस बार यह आंकड़ा करीब 16 फीसदी तक पंहुच गया है।
आरजेडी को मिले ज़्यादा वोट
2015 विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 18.4 फीसदी मत मिले थे जो इस बार बढ़कर 23.1 हो गए। इन दोनों विधानसभा चुनाव में अंतर यह रहा है कि सीटों की संख्या और पार्टियों के गठबंधन में बदलाव हुआ है। नीतीश कुमार पिछली बार महागठबंधन के साथ लड़े थे जबकि इस बार वह बीजेपी के साथ खड़े थे।
देखिए, बिहार के नतीजों पर चर्चा-
2015 के चुनाव में बीजेपी ने 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि इस बार 110 पर। तकरीबन यही स्थिति आरजेडी की भी रही। उसने पिछली बार 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि इस बार 144 सीटों पर।
चुनाव पूर्व सत्ताधारी गठबंधन और विपक्षी महागठबंधन की विधानसभा में सीटों की स्थिति में भी कमोबेश कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। एलजेपी को छोड़ दें तो बीजेपी और जेडीयू के पास कुल 125 ही विधायक थे।
एनडीए अपनी सीटों में कमी को लेकर एलजेपी को जिम्मेदार बता रहा है जबकि महागठबंधन एआईएमआईएम को। लेकिन दोनों दलों के मत औसत को देखें तो वह पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले एक-एक फीसदी बढ़ा है। उदाहरण के लिए एलजेपी को पिछली बार 4.8 फीसदी वोट मिले थे जबकि इस बार 5.6 फ़ीसदी।
ज़ाहिर है कि आंकड़े एक अलग कहानी कह रहे हैं जबकि मोदी सरकार और बीजेपी एक दूसरी कहानी कह कर अपनी कमियों को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं।
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