मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनने के बाद जो पहला भाषण दिया था, उसमें उन्होंने कहा था, 'आप देखेंगे कि वक़्त के साथ देश के नागरिक की हैसियत से हिन्दू, हिन्दू नहीं रहेगा मुसलमान, मुसलमान नहीं रहेगा। धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं क्योंकि ये हर व्यक्ति का व्यक्तिगत ईमान है, बल्कि सियासी हैसियत से।'
प्रमोद मल्लिक
केंद्रीय मंत्री और बिहार से बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने विधानसभा चुनाव के दौरान पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का मुद्दा उठा कर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिन्ना, पाकिस्तान और मुसलमान, ये तीन ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें गिरिराज सिंह ही नहीं, बीजेपी के दूसरे बड़े नेता भी इसके पहले कई बार उठा चुके हैं। बीजेपी जिन्ना और पाकिस्तान का मुद्दा उठा कर ख़ास समुदाय को निशाने पर लेने की कोशिश करती है और इसके पीछे उसकी रणनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की होती है। इससे उसे चुनावों में फ़ायदा होता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि खुद बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने अलग-अलग समय और शायद अलग-अलग कारणों से जिन्ना की तारीफ की है और ऐसा एक नहीं, कई बार हुआ है। इसके बावजूद बीजेपी चुनाव के पहले जिन्ना का जिन्न निकालने की कोशिश क्यों करती है, सवाल यह भी है।
गिरिराज सिंह ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा है कि उसने जाले विधासभा क्षेत्र से उस उम्मीदवार को टिकट बनाया है जो जिन्ना से सहानुभूति रखते हैं। कांग्रेस ने उस सीट से मशकूर उस्मानी को खड़ा किया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'हमें यह जानना चाहिए कि कांग्रेस उम्मीदवार उस्मानी क्या जिन्ना से सहानुभूति रखते हैं।'
इसके पहले बिहार से सांसद बने एक दूसरे केंद्रीय मंत्री नृत्यानंद राय ने कहा था कि यदि राष्ट्रीय जनता दल की सरकार बनती है तो जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी बिहार में शरण लेंगे।
बीजेपी ने बिहार चुनाव से पहले जिन्ना का जिन्न क्यों बोतल से बाहर निकाला, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
गिरिराज सिंह इस तरह के विवादास्पद बयान पहले भी दे चुके हैं, पर इस बार मामला थोड़ा टेढ़ा है। क्या उन्हें यह नहीं पता कि लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह जैसे लोग मुहम्मद अली जिन्ना की तारीफ कर चुके हैं।
आडवाणी
भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 2005 में अपने पाकिस्तान दौरे पर मुहम्मद अली जिन्ना को श्रद्धांजलि दी थी। वह जिन्ना के मज़ार पर गए थे और उन्होंने क़ायदे आज़म को धर्मनिरपेक्ष बताया था। जिन्ना को एक 'अलग शख़्सियत' क़रार देते हुए कहा था कि जिन्ना ने इतिहास बनाया था।
आडवाणी ने मज़ार पर रखी डायरी में जिन्ना के उस मशहूर उद्धरण का हवाला दिया था जो क़ायदे आज़म ने पाकिस्तान की स्थापना के बाद अपने पहले भाषण में कहा था।
आडवाणी के इस बयान के बाद देश में हंगामा मच गया था। बीजेपी और आरएसएस इतने नाराज़ हुए थे कि आडवाणी को बीजेपी अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। समझा जाता है कि वह उसी समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आँख की किरकिरी बन गए।
क्या कहा था जिन्ना ने?
मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान बनने के बाद जो पहला भाषण दिया था, उसमें उन्होंने कहा था, 'समय के साथ-साथ हिन्दू - मुलमान, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के फ़र्क ख़त्म होंगे। क्योंकि मुसलमान की हैसियत से आप पठान, पंजाबी, शिया या सुन्नी हैं। हिन्दुओं में आप ब्राह्मण, खत्री, बंगाली और मद्रासी हैं। अगर ये समस्या नहीं होती तो भारत काफ़ी पहले आज़ाद हो जाता।'
उन्होंने कहा था,
“
'आप देखेंगे कि वक़्त के साथ देश के नागरिक की हैसियत से हिन्दू, हिन्दू नहीं रहेगा मुसलमान, मुसलमान नहीं रहेगा। धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं क्योंकि ये हर व्यक्ति का व्यक्तिगत ईमान है, बल्कि सियासी हैसियत से।'
मुहम्मद अली जिन्ना, 15 अगस्त, 1947
साफ़ है, जिन्ना एक ऐसे पाकिस्तान की कल्पना करते थे, जिसमें सभी धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में रहेंगे और धर्म उनका निजी मामला बन कर रह जाएगा।
जसवंत सिंह
बीजेपी के बड़े नेताओं में एक और, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा राज्य मंत्री रह चुके जसवंत सिंह ने मुहम्मद अली जिन्ना की जम कर तारीफ की थी। उन्होंने तो एक किताब ही उन पर लिख डाली थी। उन्होंने अपनी पुस्तक 'जिन्ना- भारत, विभाजन और स्वतंत्रता' में कहा था कि भारत में जिन्ना को खलनायक के तौर पर पेश किया गया है।
जसवंत सिंह ने अपनी किताब में भारत के विभाजन के लिए मुहम्मद अली जिन्ना को पूरी तरह ज़िम्मेदार न ठहराकर इसके लिए वल्लभ भाई पटेल, जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस को भी ज़िम्मेदार बताया है।
जसवंत सिंह ने कहा है कि उनकी किताब शुद्ध रूप से एक बौद्धिक काम है जिसे पढ़कर समझा जाना चाहिए।एक टीवी चैनल से उन्होंने कहा, 'मेरी किताब का उद्देश्य किसी को नीचा दिखाना या किसी का महिमामंडन करना नहीं है।'
इसका नतीजा यह हुआ कि नई दिल्ली में जसवंत सिंह की पुस्तक के विमोचन के मौक़े पर बीजेपी का कोई भी नेता मौजूद नहीं था। उनकी जब़रदस्त आलोचना हुई थी। और बाद में उन्हे पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया था।
सुदर्शन ने भी की थी तारीफ
जिन्ना की तारीफ़ करने वाले संघ परिवार के अकेले आदमी जसवंत सिंह नहीं थे। जसवंत सिंह के कुछ दिन बाद ही सितंबर 2009 में आरएसएस के पूर्व प्रमुख के. एस. सुदर्शन ने भी ऐसा ही एक बयान दिया था।मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में पत्रकारों से बात करते हुए सुदर्शन के कहा था कि जिन्ना राष्ट्र के प्रति समर्पित थे।
साथ ही उन्होंने कहा,
“
'जिन्ना पहले राष्ट्रवादी थे, लेकिन बाद में नाराज़ हो गए और अंग्रेज़ों ने उनके मन में विभाजित राष्ट्र के बीज बो दिए।'
के. एस. सुदर्शन, पूर्व प्रमुख, आरएसएस
क्या वह जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं, इस सवाल पर उन्होंने कहा था, 'जिन्ना के अनेक रूप हुए हैं, वो कभी लोकमान्य तिलक के साथ थे और पूरी तरह राष्ट्र के प्रति समर्पित थे।'
स्वामी प्रसाद मौर्य
इसके अलावा साल 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि जिन्ना भारत के महापुरुष थे और उनका भारत में भी बड़ा योगदान रहा है। दरअसल अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के कार्यालय में मुहम्मद अली जिन्ना की तसवीर लगाये जाने पर विवाद हुआ था। स्थानीय बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने इस पर आपत्ति जताते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिख कर तसवीर हटाये जाने की मांग की थी।
बिहार चुनाव में बीजेपी की क्या रणनीति है, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
पाकिस्तान का मुद्दा
बीजेपी चुनाव के समय पाकिस्तान को पहले भी मुद्दा बनाती रही है।
2015 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी जेडीयू से अलग होकर चुनाव लड़ रही थी तो तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि अगर बीजेपी बिहार में हार गई तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे। अभी बिहार में उसी जेडीयू के साथ बीजेपी सरकार में शामिल है।
उरी में हुए आतंकी हमले में 19 जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने सितंबर 2016 में पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। उसके बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कई अन्य नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को अपनी अहम उपलब्धि बताते हुए वोट माँगे थे। तब बीजेपी को इसका ख़ासा फ़ायदा मिला था और उसे उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर 312 सीटों पर जीत मिली थी।
गिरिराज सिंह का बयान उसी कोशिश में बढ़ाया गया कदम है।
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प्रमोद मल्लिक
लेखक पत्रकार हैं, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं। और पढ़ें »
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